पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१२९

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मानसत्रत ३६०६ मानाथ जल वहुत ही मुदर, स्वच्छ और गुणकारी है तथा इसके चारो श्रोर की प्राकृतिक शोभा बहुत ही अद्भुत है। हमारे यहां के प्राचीन ऋपियो ने इसके पास पास की भूमि को स्वर्ग कहा है। मानसबत-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं०] अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य आदि का पालन या व्रत। मानसशास्त्र-सज्ञा पुं० [सं० ] वह शास्त्र जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि मन किस प्रकार कार्य करता है और उसकी वृत्तियां किस प्रकार उत्पन्न होती हैं । मनोविज्ञान । मानसशास्त्री-सज्ञा पुं० [सं०] मानसणाल का मनोवैज्ञानिक । सानससन्यासी-सचा पुं० [ स० दसनामी सन्यासियो के अंतर्गत एक प्रकार के सन्यासी। विशेष-ऐसे सन्यासी मन मे सच्चा वैराग्य उत्पन्न होने पर गृहस्थाश्रम का त्याग करके जगल मे जा रहते हैं और वहीं तपस्या करते हैं। ये लोग गैरिक वस्त्र आदि नहीं धारण पडित। करते। मानसूत्र-सज्ञा पु० [सं०] १ करधनी । २. नापने का फीता। मानसून सज्ञा पुं० [अ० मि० अ० मौसिम ] १ एक प्रकार की वायु जो भारतीय महासागर मे अप्रैल से अक्टूबर मास तक बरावर दक्षिणपश्चिम के कोण से चलती है और अक्तूबर से अप्रैल तक उत्तरपूर्व के कोण से चलती है। अप्रैल से अक्टूबर तक जो हवा चलती है, प्राय उसी के द्वारा भारत मे वर्षा भी हुया करती है। क्रि० प्र०-थाना ।--उठना । -दवना । २ वह वायु जो महादेशो और महाद्वीपो तथा अनेक ग्राम पात के समुद्रो मे पडनेवाले वातावरण सबंधी पारस्परिक अतर के कारण उत्पन्न होती है और जो प्राय छह माम तक एक निश्चित दिशा मे और छह मास तक उसकी विपरीत दिशा मे वहती है। मानसीका-सज्ञा पुं० [सं० मानमौकम ] म । मानगचारी। मनोनिवामी। मानहस-सज्ञा पुं० [ स०] एक वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण मे स ज ज भ र होते हैं। इसके अन्य नाम 'रणहम' और 'मानमहम' भी हैं। मानहानि-मश सी० [सं०] अप्रतिष्ठा । अनादर । अपमान । वेइजती । हतक इजत । मानहुँ@-अव्य [हिं० ] दे० 'मानो' । माना-सञ्ज्ञा पुं॰ [ इदरानी ] एक प्रकार का मीठा निर्याम । विशेष—यह निर्याम इटली और एशिया माइनर आदि देशो के कुछ विशिष्ट वृक्षो मे रो छेव लगाकर निकाला जाता है, अथवा कभी कभी उन वृक्षो पर कुछ कीडो आदि की कई क्रियायो से उत्पन्न होता है और जो पीछे से कई रामायनिक क्रियायो मे शुद्ध करके प्रोपधि के रूप मे काम में लाया जाता है। भारत के कई प्रकार के वांसो तथा दूसरे अनेक वृक्षो पर भी यह कभी कभी पाया जाता है। यह रेचक होता है और इसके व्यवहार के उपरात मनुष्य विशेष निर्मल नहीं होता। देखने मे यह पीले रंग का, पारदर्शी और हलका होता है और प्राय वहृत महंगा मिलता है। माना-सचा पुं० [सं० मान] अन्नादि नापने का एक पात्र । विशेप-इसमें पाव भर अन्न प्राता है। यह लकडी, मिट्टी या धातु का बना होता है । इमसे तरल पदार्थ भी नाप जाते हैं। माना३-क्रि० स० [सं० मान अथवा हिं० मापना ] १. नापना । तौलना । उ० - देखि विवरु सुधि पाय गीध मे सवनि अपनो वलु मायो ।—तुलसी (शब्द०) । २ जाँचना । परीक्षा करना । मानाg:-क्रि० अ० दे० 'समाना' या 'अमाना'। उ०-(क) इतनो वचन श्रवण सुनि हरण्यो फूल्यो अग न मात । लै लै चरन रेनु निज प्रभु को रिपु के शोणित न्हात । —सूर (शब्द॰) । (ख) माई कहां यह माइगी दीपति जो दिन दो यहि भांति बढेगी।-केशव (गन्द०)। मानाथ-मशा पुं० [सं० ] लक्ष्मी के पति, विष्णु । उ०-मदन मानससर-सज्ञा पुं० [ 10 ] मानसरोवर । मानस सरोवर। मानसहस-सज्ञा पुं० [ स० ] एक वृत्त का नाम । इसके प्रत्येक चरण में 'स ज ज भ र' होता है। इसका दूसरा नाम 'मानहस' या 'रणहस' है। मानसा-सज्ञा सी० [सं०] पुराणानुसार एक नदी का नाम । विशेष - कहते हैं, तृणविंदु नामक एक ऋपि इसे मानसरोवर से लाए थे मानसालय-सज्ञा पुं० [सं० ] हस । मानसिक-वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० मानसिकी ] १ मन की कल्पना से उत्पन्न । २ मन सवधी । मन का । जैसे, मानसिक कष्ट, नमिक चिंता। मानसिक'--सज्ञा पुं॰ [ ] विप्णु । मानसी'--सज्ञा स्त्री॰ [ ] १ मानस पूजाँ। वह पूजा जो मन ही मन की जाय । उ०--प्राभरण नाम हरि साधु सेवा कर्ण फूल मानसी सुनथ सग अजन वनाइए ।-प्रियादास (शब्द०)। २ पुराणानुसार एक विद्या देवी का नाम । मानसी-वि० मन का। मन से उत्पन्न । उ०-मानमी स्वरूप मे अग्रदास जवै करत बयार नाभा मधुर संभार सो। प्रियादास (शब्द०)। मानसीगगा-सज्ञा सी० । स० मानसीगङ्गा ] गोवर्धन पर्वत के पास के एक सरोवर का नाम । उ०-सो एक समै देसाधिपति के डेरा गोवर्द्धन मे मानसी गगा पर भए ।-दो सौ बावन०, भा० १, पृ० १४२। मानसीपूजा-सञ्ज्ञा पुं० [ सं० मानसी + पूजा ] दे० 'मानसपूजा' । सोलह घडी तथा तीस पल अक्षर चार और मानसी पूजा सोहम् भाव से पूजना ।-कबीर म०, पृ० ३१६ । I