पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१३०

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मानिद ३९०७ मानु मर्दन मयातीत माया रहित मंजु मानाय पायोज पानी। - मानिकचदी-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० मानिफचंद ] साधारण छोटी सुपारी । तुलसी (शब्द०)। मानिकजोड़-सज्ञा पुं० [हिं० मानिक + जोड़ ] एक प्रकार का वडा मानिद - वि० [फा० ] समान । तुल्य । सदृश । जैसे, - वे भी आपके वगुला जिसकी चोच और टाँगे लवी होती हैं। ही मानिंद शरीफ हैं । उ.-क्यो न हम शर्म को मानिंद जलें मानिकजोर - सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'मानिकजोड' । दूर खडे । जव उदू वायसे गरमी हो तेरी मजलिस के ।- मानिकदोप- सज्ञा पुं० [सं० माणिक्य+दीप ] एक प्रकार का दीपक । श्रीनिवास ग्र०, पृ० ८६ । पूजन, मगल कार्य, विवाह प्रादि पर प्राटे या पिसान का सादे मानि-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० मान ] समान । दे० 'मान-३'। उ०- ढग का बना हुआ दीपक जिसमे चार वत्तियां रहती हैं जिन्हे मानि महातम कळू न चाहै, एक दसा सदा निरवाहै।- प्रज्वलित कर आरती की जाती है। उ०-मानिक दीप वराय रामानद० पृ० ५३ । बैठि तेहि आसन हो |-तुलसी ग्र०, पृ० ३ । मानिक'-सज्ञा पु० [ म० माणिक्य ] एक मणि का नाम । मानिकरेत-सञ्ज्ञा सी० [हिं० मानिक+रेत ] मानिक का चूरा विशेप-यह लाल रग का होता है और हीरे को छोडकर जिससे गहने आदि साफ किए जाते हैं और उनपर चमक लाई सबसे कडा पत्थर है। रासायनिक विश्लेपण द्वारा मानिक में जाती है। दो भाग अल्यूमिनम और तीन भाग प्राक्सिजन का पाया मानिका-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १. मद्य । २ आठ पल या साठ तोले जाता है, जिससे रसायनशास्त्रियो के मत से यह कुरड की का एक मान। जाति का पत्थर प्रतीत होता है। इसमे एक और विशेषता मानिटर-सञ्ज्ञा पुं० [अ० ] पाठशाला को कक्षा मे वह प्रधान छात्र यह भी है कि बहुत अधिक ताप से सुहागे के योग से यह कांच जो अन्य छात्रो पर कुछ विशिष्ट अधिकार रखता हो । की भाँति गल जाता है और गलने पर इसमे कोई रग नही रह समानित । प्रतिष्ठित । पाहत । जाता । अाजकल के रासायनिको ने कांच से नकली मानिक मानित-वि० [ स० बनाया है जो असलो मानक से बहुत कुछ मिलता जुलता होता मानिता-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स०] १. मानिस्व । समान | आदर । २ है । मानिक पत्थर गहरे लाल रग से लेकर गुलाबी रग और गौरव । ३ अहकार । गर्व । नारगी से लेकर वैगनी रग तक के मिलते हैं। मानिक मानित्व-पज्ञा पुं॰ [सं०] दे० 'मानिता । की दो प्रधान जातियां हैं-नरम चुन्नी और मानिक । मानिनी'-वि० स्त्री० [सं० ] १ मानवती। गर्ववती। अभिमान नरम चुन्नी का विश्लेपण करने से मैग्नेशियम, अल्यूमिनम और युक्त । २. मान करनेवाली । रुष्टा । भाक्सिजन मिलते है। उसपर यदि मानिक से रगडा जाय, तो मानिनी'—सच्चा स्त्री० साहित्य मे वह नायिका जो नायक के दोप को लकीर पड जाती है। देखकर उससे रूठ गई हो। उ०—मान करत वरजत न हों अगस्त जी के मत से मानिक के तीन प्रधान भेद हैं-पद्मराग, उलाटे दिवावत सौह । करी रिसाही जायेंगी सहज हंसोही कुरुविंद और सौगविक । कमल पुष्प के समान रगवाला पराग भौह । —बिहारी (शब्द०)। गाढ रक्तवर्ण सा ईपत् नील वर्ण सौगविक और टेसू के फूल मानी'-वि० [ सं० मा.नन् ] [ वि० स्त्री० माननी ] १ अहकारी। के रग का कुरुविद कहलाता है। इनमे सिंहल मे पद्मराग, घमडी। २ समानित। गौरवान्वित । ३ मनायागी । ४ और प्राध्र मे कुरुविंद और तुकर मे सौगधिक उत्पन्न मान करनेवाला (को०) । ५ माननेवाला। समझनवाला । जैसे, कालपुर होता है। मतातर से नालगधिक नामक एक और जाति का पाडतमानी, भटमानी। उ०-अब जाने कोउ भाख भटमानी। मानिक होता है जो नीलापन लिए रक्तवर्ण या लाखी रग का -मानस, १०२५२ । माना गया है। इसकी खाने बरमा, स्याम, लका, मध्य एशिया मानी-सञ्ज्ञा पु. १ सिंह । २ साहित्य मे वह नायक जो नायिका से यूरोप प्रास्ट्रेलिया आदि अनेक भूभागो में पाई जाती हैं। जिस अपमानित होकर रूठ गया हो। मानिक मे चिह्न नहीं होते और चमक अधिक होती है, वह माना-सञ्ज्ञा भी० [सं०] १ कुभ । घडा। २ प्राचीन काल का उत्तम माना जाता है और अधिक मूल्यवान् होता है। वैद्यक एक प्रकार का मानपाय जिसमे दा अजुली या आठ पल आता मे मानिक को मधुर, स्निग्ध और वात-पित्त-नाशक लिखा है। था। ३ चकी के ऊपर के पाट म लगा हुई वह लकड़ी जिसके पर्या–पद्मराग । कुरुविद । शोणरएन । सौगधिक । लौहितक । छद मे काली रहती है। जूमा न हान पर यह लकडा पर के तरुण । शृगारी । रविरत्नक । पाट के छेद मे जडो रहती है। ४ कुदाल, बसुले श्रादि का वह छद जिसम बेंट लगाइ जाता ह। ५ किसा चीज में बनाया मानिक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] आठ पल का एक मान । हुआ छेद जिसम कुछ जडा जाय। ६ अन्न का एक मान जो मानिकखभ-सज्ञा पुं० [हिं० मानिक+खमा ] १. वह खूटा जो सोलह सर का होता ह। ७ साधारण वेद । कातर के किनारे गडा रहता है और जिसमे घुसे को रस्सी से वाँधकर जाठ के सिरे पर अटकाते है । मरखम । २. वह खभा मानी -सज्ञा स्त्री॰ [ प्र०] १ अर्थ। मतलब । तात्पर्य । २ तत्व । जो विवाह मे महप के बीच मे गाडा जाता है। ३. मालखभ । रहस्य । ३ प्रयोजन । ४. हेतु । कारण । मानु-संज्ञा पुं० [ स० मान ] ८० 'मान' । उ०-मानु जनावति मलखम।