पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१३३

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भामा मायले ७ प्रधान लाना। ४ पक्की या ते को हुई बात । कौल करार । ५ झगडा । विवाद । मामूल-वि० जिसपर अमल किया जाय । अमल किया हुआ । मुकदमा। मामूली-वि० [अ० मामूल +ई ] १ निर्यामत । नियत । २. सामान्य । साधारण । मुहा०-दे० 'मुकदमा' के मुहा० । ६ वात । घटना । उ०—कुंअर को देखते ही बधाई का चारो माय- अव्य० [ वि० मध्य, प्रा० मज्म ] दे॰ 'माहि' । अोर से शोर मच गया । कुँअर बहुत चकपकाया कि यह मामला मायण'सशा स्त्री० [स० मातृ ] १ माता। माँ । जननी । उ०- क्या है । -भारतेंदु ग्र०, भा०, ३, पृ० ८०८ । जसुमति माय लाल अपने को शुभ दिन होल मुलायो ।-सूर विषय । मुख्य बात । ८ सुदर स्त्रो । युवती । (बाजारू) । ६ (शब्द०) । २ किमी बडो वा प्रादरणीय स्त्री के लिये सबोधन समाग | स्त्रोप्रमग। का शब्द । उ०-~-नव जानकी सामु पग लागो। मुनिय माय मुहा०-मामला बनाना = संभोग करना । प्रसग करना । मैं परम अभागी ।—तुलसी (शब्द॰) । मामा-सञ्ज्ञा पु० [ अनु० मि० स० मातुल ] [ सी० मामी ] माता माय-सञ्ज्ञा स्त्री० [ म० माया ] दे० 'माया'। उ०—(क) ईश माय का भाई। मा का भाई विलो के के उपजाइयो मन पूत। केशव (शब्द०) । मामा-सशा स्त्री॰ [फा०] १ माता। मा। उ०-मादम आदि (ख) मुनि वेप किए किवी ब्रह्म जीव माय हैं। तुलसी सिद्धि नहिं पावा। मामा हौवा कहं ते पावा।-कबीर (शब्द०)। ( शब्द०)। २ रोटी पकानवाली स्त्री। माय-अव्य० [सं० मध्य ] दे० 'माहि' । उ०—पाये लोक पाल सव जीते सुरपति दियो उठाय । वरुण कुबेर अग्नि यम मारुत यौ-मामागीरी = दूसरो की राटी पकाने का काम । स्ववम किए क्षण माय ।-सूर (शब्द०)। ३ वुड्ढो स्त्री । बुढिया। ४ नौकरानो । दाई । दासी । लींही। माय-मशा पुं० [सं०] १. पीतावर । २ अमुर । मामिला-सज्ञा पु० [अ० मुशामिला ] दे० 'मामला'। माय - वि० [सं० ] मायावी । माया करनेवाला [को०] । मामी-सज्ञा सी० [सं० मा (= निषेधार्थक ) ] आरोप को ध्यान मायक'-वि०, सशा पुं० [सं०] माया करनेवाला । मायावी । उ०- मे न लाना । अपने दोप पर ध्यान न देना। (क) सायक सम मायक नयन रंगे विविध रंग गात । झरनौ मुहा०-मामी पीना = दोपारोपण को ध्यान मे न लखि दुरि जाति जल लसि जलजात लजात ।--विहारी मुकर जाना । अपने दोप पर ध्यान न देना । उ०—(क) ऊधो (शब्द०) । (ख ) हस गति नायक कि गूढ़ गुण गायक कि हरि काहे के अतर्यामी । अजहु न पाइ मिले यहि प्रोसर अवधि श्रवण सुहायक कि मायक है मय के ।-केशव (शब्द॰) । बतावत लामी। कोन्ही प्रीति पुहुप सहा की अपने काज के मायक-सज्ञा पुं० [ स० मातृ+ क ] दे० 'मायका' । कामी । तिनको कौन परेखा की जे हैं गरुड के गामी । पाई उछरि प्रीति कलई सी जैसे खाटी प्रामी। सूर इते पर खुनमनि मायका-सञ्ज्ञा पु० [सं० मातृ+का (प्रत्य॰)] नहर । पीहर । उ० - (क) पठई समुझाय सहेलिन यो कोऊ मायके मे मिलती न मरियत कयो पीवत मामी । —सूर (शब्द०)। (ख) लाज कि और कहा काहे केशव जे मुनिए गुण ते सब ठाए। मामो पिए कहा |-दूलह (शब्द॰) । (ख) सो जा सखी भरमै मति री यह साजा हमार ही मायक वारो। दुलह (शब्द०)। (ग) इनको मेरी माइ को हे हरि पाठहू गांठ अठाए । केशव मायके मे मन भावन को रति कीरति शभु गरा हू न गावति । (शब्द०)। -शभु (शब्द०)। मामी-सञ्चा खी० [हिं० मामः ] मातुलानी । मामा की स्त्री। मायण-सज्ञा पुं० [ से० ] वेद का भाष्य करनेवाले सायण और मामी-वि० [सं०] हामी। स्वीकृति । उ०—यानदघन अघग्रोध माधव के पिता का नाम । इन्हे मायन भी कहत थे। बहावन सुदृस्टि जियावन वेद भरत है मामी ।-धनानद, मायन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मातृका+पानयन ] १ वह दिन वा पृ० ४१८। तिथि जिसमे विवाह मे मातृकापूजन और पितृनिमत्रण होता माम-संशा स्त्री॰ [अनु० मि० स० मातुल ] [ सी० ममानी ] माता है। उ०~वनि वनि पावत नार जान गृह मायन हो।- का भाई । (मुसलमान )। तुलसी (शब्द०) . २ उपर्युक्त दिन का कृत्य । मातृकापूजन या मामूर-वि० [अ० ] पावाद । भरा हुया । समृद्ध । उ०—हो मुक्ति पतृनिमत्रण आदि कार्य । उ० - अभ्युदयिक करवाय श्रास से मामूर मारी जमीन ।- कबीर म०, पृ० १३१ । विधि सब विवाह के चारा । कृत्य तेल मायन करव, व्याह मामूल'--सञ्ज्ञा पुं० [अ० ] टेव । लत। विधान अपारा ।-रघुराज (शब्द०)। उ०-इनका दीवानखाने में बैठकर खाना खाने का मामूल है।-प्रेमघन०, भा०२, मायनी-सज्ञा स्त्री० [सं० मा यन् ] दे॰ 'मायाविनी' । उ०- पृ० ५५ । २ रीति । रिवाज । परिपाटी। ३. वह धन जो प्रचड कोप ताडका अखड प्रोज मायनी। गिरी धरा धडाक किसी को रवाज प्रादि के कारण मिलता हो। ४ समोहित द सुरेश शाक दायनी । -रघुराज (शब्द॰) । या वशोकृत व्यक्ति। वह व्यक्ति जिसके ऊपर समोहन किया मायनी-सशा स्त्री॰ [ म० मानी] अर्थ । मतलव । आशय । गया हो (को०)। मायल-वि० [अ० माइल, फ्रा०] १ झुका हुआ। रुजू । प्रवृत्त ।