पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१३२

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म० मापत्य ३३०४ मामला विशेष-प्राचीन काल मे भारत मे अन्न तुला से नही तोला जाता यौ० - माफीदार = माफी की भूमि का मालिक । जिसकी भूमि था। भिन्न भिन्न तौलो के बरतन "हते थे, उन्ही मे अनाज भर को मालगुजारी सरकार ने माफ की हो । भरकर वेचा जाता था । कौटिल्य ने लिखा है कि माप मे ३ वह भूमि जो किसी को बिना कर के दी गई हो। भेद माने पर २०० पण जुरमाना किया जाता था। क्रि० प्र०-देन |-पाना ।—मिल्ना । मापत्य-सज्ञा पुं० [ स० ] कामदेव [को॰] । मावत-सज्ञा पुं० [अ० मवूद ] ईश्वर । परमात्मा । वह जिसकी मापन-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १ नपना । तराजू । उपासना की जाय।-दादू०, पृ० १०८ । मापना-सशा स्री० [ म० ] दे० 'मापन' (को०)। माम'-मा पु० [सं० मामक ] १ ममता । अहकार । उ०- मापना-क्रि० स० [ ० मापन ] १ कसी पदार्थ के विस्तार, रहहु संभारे राम बिचारे कहत अहाँ जो पुकारे हो । मूड आयत वा वर्गन्व पीर घनाव का किमी नियत भान से परिमाण मुडाय फूलि के वैठे मुद्रा पहिर मजूसा हो। ता ह उपर कछु करना। नापना। जैसे,-अगुल के मान म किमी पटरी को छार लपेटे भितर भितर घर मूला हो। गाउ बसत है गर्व नवाई और चौडाई का मान निकालना कि इसकी लवाई इतने भारती माम काम हकारा हो । मोहनि जहाँ तहां ले जैहै नाही अगुल वा चौडाई इतने अगुल है। किसी कोठरी के वर्गत्व का हे तुम्हारा हो ।-कबीर (शब्द०)। २ शक्ति । अधिकार । मान करना कि वह इतने वग गज की है। उ०--(क) कहि धी इख्तियार । उ०-भगी साह मेना तज ग्रब्ध माम ।-पृ० शुक्र कहा घी को प्रापुन भए भिखारा । जं जैकार भयो भुव रा०, ५७/२०८ । ३. प्रिय मित्र वा दोस्त (को०)। ४ चाचा । मापत तीन पैड भइ सारी ।-मूर (गब्द०) । (ख) बावन को ताऊ । ( सवाबन मे प्रयुक्त )। पद लोकन मापि ज्यो बावन के वपु मांह मिधायो । केशव मामक'-सज्ञा पुं० [ ] १ मेरा। हमारा या अपना की बुद्धि । (शब्द०)। (ग) हंमन लगी महचरि सवै देखहिं नयन दुराइ । स्व की बुद्धि । २ मातुल । मामा । ३ पृ.परा । व जूम (को०] । मानो मापति लोयननि कर परसनि फैलाइ।-गुमान (शब्द०)। मामक-वि० [वि० सी० मामिका ] १ मेरा। स्वय का। २ २ किसी मान वा पैमाने मे भरकर द्रव वा चूर्ण वा अन्नादि लालची। स्वाथी । ३ ममतायुक्त [को०)। पदार्थों का नापना । जमे, दूध मापना, चूना मापना । मामकीन-वि० [स०] मेरा । स्वय का (को०] । ३. पदार्थ के परिमाण को जानने के लिये कोई ।क्रया करना। मामता-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ममता ] १ अपनापन । यात्मीयता। २ नापना। प्रेम । मुहव्वत । अनुराग । मापना-क्रि० प्र० [स० मत्त ] मतवाला होना । उ०—नयन मजल मामरी-सच्चा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का पेड । तन थर थर कॉपी। मांजहि खाइ मीन जनु मापी।–तुलमी विशेप-यह हिमालय की तराई मे रावी नदी से पूर्व की ओर (शब्द०)। तथा मद्रास और मध्य भारत मे होता है। इसकी लकडी बहुत माफ-वि० [ अ० मुश्राफ ] जो क्षमा कर दिया गया हो । क्षमित । मजबूत और चिकनी होती है, जिसपर रोगन करन से बहुत मुहा०-माफ कर-I = क्षमा करना । उ.-(क) प्रभु जू में ऐसी अच्छी चमक आती है । इसकी लकडी से मेज, कुरसी पालमारी अमल कमायो । साविक जमा हुती जो जोरी मीजा कुल तल आदि पारायशी चीजें बनाई जाती है। इसकी छाल श्रोपव के वडो तुम्हार बरामद हू को लिखि कीन्हों है काम मे पाती है और जब माँप के काटने की छोपधि है। यह साफ। सूरदास को वह मुहासिवा दस्तक कीजो माफ।-सूर बीजो से उगता है। इसे 'चौरी' और 'ही' भी कहते है। (शब्द०)। (ख) खलनि को योग जहाँ नाज ही मे देखियतु मामलत-मज्ञा स्त्री॰ [अ॰ मुश्रामिल त् ] दे० 'मालति' । माफ करिवेही माहं होत कर नाशु है ।- गुमान (शब्द०)। मामलति-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० मुशामिलत्] १ मामिला। व्यवहार माफकत-मज्ञा स्त्री० [अ० मुनाफिक्त ] १ अनुकूल होने का भाव । की बात । २ विवादास्पद विषय । उ०-वही जो मामलति अनुकूलता । २ मेल । मंत्री। पहले चुकाई । करी सो जइ तेरे हाथ भाई ।—सूदन यौ०-मेल माफकत । (शब्द०)। माफल-सज्ञा पुं० [7] एक प्रकार का खट्टा नोवू । मामना-सज्ञा पुं० [अ० मुशामिलह, ] १. व्यापार | काम धधा। माफिका-वि० [अ० मुश्राफिक ] १ अनुकूल । अनुमार । उद्यम। क्रि० प्र०-श्राना ।-पढ़ना। होना। मुहा०-मामला बनाना = काम सावना । २ योग्य । मुनासिव । २ पारस्परिक व्यवहार । जमे, लेन देन, क्रय विक्रय इत्यादि । माफिकत-सज्ञा स्त्री० [अ० मुशाफिकत ] दे० 'माफकत' । ३ व्यावहारिक, व्यापारिक या विवादास्पद विपय । माफी-सञ्ज्ञा सी० [ मुश्राफी ] १ क्षमा । मुहा०-मामना करना = (१) बातचीत करना । बात पक्की मुहा०-माफी चाहना वा माँगना = क्षमा माँगना। माफ किए करना । (२) पारस्परिक वैपम्य दूर करके निश्चयपूर्वक कुछ जाने के लिये प्रार्थना करना । निर्धारण करना। फैसला करना। मामला बनाना काम २. वह भूमि जिसका कर सरकार से माफ हो । वाघ । ठीक करना। वात पक्की करना । लायो। प्र०