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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१४५

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मालदहा ३६२२ मालविभाग लोच। स० मालदहा-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] दे॰ 'मालदह' । उ०—तब तक कहीं माल धारी, कानो मे कुडल धारण किए, सगीतशाला में स्त्रियो के दहा (लंगडा) का भी समय न चला जाए।-किन्नर० पृ० ८२ । साथ बैठा हुआ लिखा है। इसको धनाश्री, मालश्री, रामकीरी, मालदही-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० मालदह ] १ एक प्रकार की नाव जिसमे सिंघुडा, प्रासावरी और भैरवी नाम को छह रागिनियां हैं। माझी छप्पर के नीचे बैठकर खेते हैं । २ एक प्रकार का रेशमी कोई कोई इसे पाडव जाति का और कोई सपूर्ण जाति का होरिया ( कपडा ) जो पहले मालदह में बनता था और जिसके राग मानते हैं। पाडव माननेवाले इसमे 'मध्यम' म्वर वजित लहंगे बनाए जाते थे। मानते हैं। यह रात को १६ दह से २० दड तक गाया मालदा-सज्ञा पुं॰ [देश॰] दे० 'मालदह' । जाता है। मालदार-वि० फा० ] धनवान । धनी । सपन्न । ३ मालव देशवासी वा मालव देश में उत्तन पुरुष । ४ मफेद मालद्वीप-सज्ञा पुं० [सं० मलयद्वीप ] भारतीय महासागर में भारत- वर्ष के पश्चिम प्रोर के एक द्वीपपुज का नाम । इस द्वीपपुज में मालव-वि० मालव देश सवधी । मालवे का । चार छोटे छोटे द्वीप हैं। मालवक-वि[ स० ] मालवा देश गबधी। मालवे का। मालधनी-सचा पुं० [अ० माल + सं० धनिन् ] माल का मालिक । मालवक'-सज्ञा पुं० मालव देश का निवामी । धन का धनी या स्वामी । उ०-पाप पुन्य मिलि करहिं दिवानी, मालवगौड-सञ्ज्ञा पुं० [ ] पाडव जाति का एक सकर राग नगरी अदल न होई । दिवस चोर घर मूसन लागे मालधनी गा जिसमे पचम स्वर नही लगता। सोई ।-पलटू०, भा० ३, पृ० ६८ । मालन- सञ्चा स्त्री॰ [ सं० मालिन् ] दे० 'मालिन' । विशेप-इसका स्वरग्राम म, ध, नि, स, रि, ग, म, है। इसका उपयोग वीर रस में किया जाता है। कुछ लोग इसे सपूर्ण मालपुश्रा-सहा पुं० [हिं० ] दे० 'मालपूना' । जाति का मानते हैं और इसके गाने का समय सायकाल मालपूआ-सज्ञा पुं० [ हिं• माल + सं० पूप ] एक पकवान का नाम | वतलाते हैं। विशेप-गेहूं के आटे वा सूजी को शकर के रस से गीला घोलते हैं। फिर उसमे चिरौंजी, पिस्ता आदि मिलाकर धीमी आंच मालवर-वि० [अ० माल+ फा० वर (प्रत्य० ) ] माल वा धन सपत्ति रखनेवाला । मालदार । मालवाला । उ०—यहां के लोग पर घी में थोडा थोडा डालकर सिझाकर छान लेते हैं। कभी कभी पानी की जगह घोलते समय इसमें दूध वा दही भी तो बडे मालवर दिखाई पड़ते हैं । -भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ६६० । मिलाते हैं। मालवर्ति-सज्ञा पुं० [सं० ] एक प्राचीन जाति का नाम | मालपूर्वा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० दे० 'मालपूप्रा' । मालबरी-सचा स्त्री० [हिं० मालाबार ] एक प्रकार की ईख जो मालवश्री-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ] श्री राग की एक रागिनी का नाम । सूरत मे होती है विशेप-यह सपूर्ण जाति की रागिनी है और इसके गाने का मालभजिका-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० मालभञ्जिका ] प्राचीन काल के एक समय सायकाल है। नारद इसे मालव की रागिनी मानते हैं प्रकार के खेल का नाम | प्राचीन काल की एक क्रीडा । और हनुमत् इसे हिंडोल राग की रागिनी लिखते हैं। हनुमत् मालभडारी-सचा पुं० [हिं० माल + महारी ] जहाज पर का वह इसे प्रोडव जाति की मानते हैं और इसके गाने मे चैवत और कर्मचारी जिसके अधिकार मे लदे हुए माल रहते हैं । (लश०)। गाधार को वजित लिखते हैं। इसे मालश्री और मालसी भी कहते हैं। मालभूमि-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० मल्लभूमि ] एक प्रदेश का नाम जो नेपाल के पूर्व मे है । मालवा-सज्ञा पुं० [सं० मालत्र ] एक प्राचीन देश का नाम जो अव मध्य भारत में है। मालमत्री-सञ्ज्ञा पुं० [अ० माल+सं० सं० मन्त्री ] राजस्व विभाग का मत्री। विशेप- इसकी प्रधान नगरी अवती है जो सप्तमोक्षदायिनी पुरियो मालय'-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ चदन । २ गरुड के पुत्र का नाम । मे गिनी गई है और जिसे आजकल उज्जैन कहत है। इदौर, ३ व्यापारियो का मुड। ४ पथिको, यात्रियो के ठहरने की भूपाल, धार, रतलाम, जावरा, राजगढ, नृसिंहगढ और ग्वालियर का राज्य नीमच तक इसी मालवा राज्य की मीमा जगह (को०) । ५ चदन निर्मित अभ्यजन वा अनुलेप (को०)। मालय-वि० मलय सवधी । मलय गिरि सबधी। के अतर्गत है। यह बहुत प्राचीन देश है और अथर्व वेद की मालव-सशा पुं० [ स०] १ मालवा देश । सहिता तक में इसका नाम मिलता है । to-मालव गौड़। मालवदेश = मालवा। मालवनृपति । मालव- २ एक राग का नाम | विशेष दे० 'मालव-२' । विपय%D मालव देश । मालवाधीश, मालवेंद्र= मालव देश का मालवा-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] एक प्राचीन नदी का नाम । नृपति । मालविका [-सज्ञा स्त्री॰ [स० ] निसोथ । २ एक राग का नाम, जिसे भैरव राग भी कहते हैं । मालविटपी सक्षा स्त्री० [सं० ] कुभीवृक्ष । विशेप-सगीतदामोदर में इसका रूप माला पहने, हरित वस्त्र मालविभाग-सञ्ज्ञा पुं० [अ० माल+ स० विभाग] राजस्व विभाग।