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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१४६

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मालवी ३६२३ मालादीप RO 30 स० LO उ०-यूसुफ यादिल शाह के शासन काल में भी माल विभाग तीसरे और चौथे चरण मे दो तगण, फिर जगण और अंत मे मे अनेक हिंदू अधिकारी रखे गए थे।-अकबरी०, पृ० २३ । दो गुरु होते हैं। 6. काठ की लवी डोकिया जिसम बच्चा के मालवी' '-मशा स्त्री॰ [ सं०] १ श्री राग की एक रागिनी का नाम । लगाने का उबटन और तेल आदि रखा जाता है। विशेष—यह प्रोडव जाति की है और हनुमत् के मत से इसका मालाकट-सज्ञा पुं० [ स० मानाकरट । १. अपामार्ग। २ एक गुल्म स्वरग्राम नि, सा, ग, म, ध, नि, है । इसमे ऋषभ और पचम का नाम। स्वर वजित हैं । कोई कोई इसे हिंडोल राग की रागिनी मालाकद-सज्ञा पुं॰ [ स० मालकन्द ] एक प्रकार का कद । मानते है। विशेप-वैद्यक मे इसे तीक्ष्ण, दीपन, गुल्म और गडमाला रोग २. पाढा नाम की एक लता । विगेप २० 'पाढा'। का हरनवाला तथा वात और कफ का नाशक लिखा है। मालवी-सशा स्त्री॰ [ स० मालव+ हिं० ई ( प्रत्य०) मालव देश पर्या०-मालकट । यतकद । पक्ति कद। निशिसदला । प्रथि की भापा । उ०—विभिन्न राजस्थानी बोलियाँ तथा मालवी, दला कदलता। कोशली या पूर्वी हिंदी, भोजपुरी, इत्यादि । -पोद्दार अभि० मालाकर-सज्ञा पुं० [ ग० पृ०७५। ] दे० 'मालाकार। मालवी-वि० दे० 'मालवीय' । मालाका-मचा सज्ञा [ ] माला । हार [को०] । मालाकार-सज्ञा पुं॰ [ स० ] [स्त्री० मालाकारी] १. पुराणानुमार मालवीय-वि० [सं० ] मालव देश सवधी। मालवे का । २ मालव एक वर्णसकर जाति का नाम । देश का निवामी । मालवे का रहनेवाला । विशेष-ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार यह जाति विश्वकर्मा और मालश्री-सशा सी० [ ] दे० 'मालवश्री'। शूद्रा से उत्पन्न है, पर पराशर पद्धात के अनुसार यह जाति मालसी-सशा ही [ ] १ दे० 'मालवश्री' । २ एक वृक्ष का तेलिन और कर्मकार से उत्पन कही गई है। नाम । दुर्गपुष्पी (को०)। २ माली । उ०-जंस जल लै वाग का सिचत मालाकार ।- मालहायन-सज्ञा पुं० [ स०] एक गोत्रप्रवर्तक ऋपि का नाम । दीन० ग्र०, पृ० ८६ । मालाक-सज्ञा पुं० [ स० मालाङ्क ] भूम्तृण । मालागिरी-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० मलयागिरि Jएक रग का नाम । माला--सञ्चा स्त्री॰ [ सं० ] १. पक्ति । अवली। जैसे, पर्वतमाला । २. फूलो का हार । गजरा। विशेप-यह रग टेसू और नासफल से बनाया जाता है। सेर भर टेसू का फूल पानी में पाठ दिन तक भिगोया जाया है जिसे विशेप-मालाएं प्राय फूलो, मोतियो, काठ या पत्थर के मनको, दिन में दो बार चलाया जाता है। इसी प्रकार माघ सर कुछ वृक्षो के बीजो अथवा सोने, चाँदी आदि धातुनो से बने नासफल की बुकनी पाना मे भिगोई जातो और प्रतिदिन दो हुए दानो से बनाई जाती है। फूल या मनके आदि धागे मे वार चलाई जाता है । फिर पाठ ।दन वाद दाना क रग अलग गुंथे होते है और धागे के दोनो छोर.एक साथ किसी बडे फूल अलग छान लिए जात और फिर मिला लिए जात। फिर या उसके गुच्छे या दाने मे पिरोकर बांध दिए जाते है। इसम डेढ़ माश हरा रग मिला दिया जाता है और तब उसमे मालाएं प्राय शोभा के लिये धारण की जाती है। भिन्न भिन्न दो बार कपडा रंगा जाता है। मुगध क लये इसमे कपूर- सप्रदायो की मालाएं भिन्न भिन्न प्रकार और प्रकार की होतो कचरी का जड़ भो पासकर मिलाई जाती है। है और उनका उपयोग भी भिन्न होता है। हिंदुओ का जप करने की मालाएं १०८ दानो या मनको की अथवा इसके मालागिरी - वि० मालागिरी रग मे रंगा हुआ । प्राधे, चौथाई या छठे भाग की होती है। भिन्न भिन्न संप्रदायो मालागुण-सहा पुं० [सं० ] गले का हार । के लोग भिन्न भिन्न पदार्थों की मालाएं धारण करते हैं। जैसे, मालागुणा-या सी० [ स० ] एक प्रकार का असाध्य रोग जिने वैष्णव तुलसी की, शैव रुद्राक्ष की, शक्ति रक्त चदन, स्फटिक 'लूता' कहते हैं। या रुद्राक्ष की तथा अन्य संप्रदाय के लोग अन्य पदार्थों की मालाएं धारण करते हैं। वह माला जिसमें अठारह या नौ मालाग्रथि-सया स्त्री० [ सं० माताप्रान्थ ] ३० 'मालादूर्वा' [को] । दाने होते है, सुमिरनी कहलाती है । मालातृण-सदा पुं० [ स०] भूस्तृण । पर्या-माल्य । स्वक् । मालिका । गुणिका । गुणतिका । मालादीपक -या पु० [सं०] एक अलकार का नाम । मुहा०-माला फेरना = जपना । जप करना । भजन करना । विशेष-इसमे एक धर्म के साथ उतरोत्तर पभियो का नवध ३. समूह । मुड । जैसे, मेघमाला । ४. एक नदी का नाम । ५. दूर्वा । वरिणत होता है या पूर्वयित वन्तु को उत्तरोत्तर वस्तु के दूव । ६. भुई आंवला । ७. कतार । श्रेणी । लर (को०)। ८. उत्कर्ष का हेतु बतलाया जाता है। इस प्रकार को पविराज उपजाति छद के एक भेद का नाम । इसके प्रथम और द्वितीय मुरारिदान ने सवर मलकार माना है और इने दीपक तथा चरण मे जगण, तगण, जगण मौर अत मे दो गुरु तथा शृखलालपार का नमुच्चय कहा है। जन,रमना काच मय