मित्र ३६१६ मितव्ययिता और बाकी है। ३ वह तिथि जब तक का व्याज देना हो। जैसे,—इस हुडो की मिती मे अभी चार दिन वाकी है। ( महाजन महा०—मिती काटना = सूद काटना । मितीकाटा-सज्ञा पुं० [ हिं० मिती+ काटना ] १ वह हिसाव जिसके अनुसार मर्राफ लोग हुडी की मुद्दत तथा व्याज लेते है। २ सूद लगाने का वह ढग जिसमे प्रत्येक रकम का सूद उसकी अलग अलग मिती से जोडा जाता है। मित्त सञ्ज्ञा पुं० [सं० मित्र, प्रा० मित्त] दे० 'मित्र' । उ०—पत्र परन श्री पत्र सर, वाहन पत्र सुचित्त। पत्र पख विधि ना दिए, जिन उडि मिलते मित्त । नद० प्र०, पृ० ५० । मित्तरी-सञ्ज्ञा पुं० [ स० मित्र ] १ वह लडका जो किसी खेल मे और सब लड़को का प्रधान या अगुवा होता है। २ मित्र । दोस्त । मितव्ययिता-सज्ञा सी० [स०] कम खर्च करने का भाव । उ०- रूप चयन, अवयव मयोजन, शक्ति व्यजना इगित, सूक्ष्म मितव्ययिता करते अद्भुत प्रभाव सवर्धन ।-अतिमा, पृ० १०३ । मितव्ययी-सा पुं० [ स० मितव्ययिन् ] वह जो कम खर्च करता हो । फिफायत करनेवाला । मिताइया - सज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] दे० 'मिताई' । उ॰—पाहन ह ह सब गए, विनि भितियन के चित्र । जासो कियो मिताइया, सो धन भया न हित्र |--कवीर बी० (शिशु०), पृ० २१५ । मिताई+-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० मित्र, हिं० मीत + श्राई (प्रत्य॰)] मित्रता। दोस्ती। उ०-मन मतग मारि दे ते, तोरि दे मिताई। - जग० १०, पृ० १२२ । मिताक्षरा-सज्ञा स्त्री० [ स०] याज्ञवल्क्य स्मृति की विज्ञानेश्वर कृत टीका। मितार्थ -सज्ञा पुं० [स० ] साहित्य मे तीन प्रकार के दूतो मे से एक प्रकार का दूत । वह दूत जो बुद्धिमत्तापूर्वक योडी बातें कहकर अपना काम पूरा करे। मितार्थ-वि० नपे तुले अर्थवाला । परिमित अर्थवाला [को०] । मितार्थक-सज्ञा पुं० [ स० ] द० 'मितार्थ' [को०] । मिताशन-सा पु० [ स०] कम भोजन करना । थोडा खाना । मिताशी-सज्ञा पुं० [स० मिताशिन् ] [ स्त्री० मिताशिनी ] वह जो बहुत थोडा खाता हो । कम भोजन करनेवाला । मिताहार -वि० [ मं०] परिमित पाहार करनेवाला । कम खाने- वाला। मितभोजी। मिताहार- सज्ञा पु० स्वल्पाहार | कम खाना । अल्पाहार [को॰] । मिताहारी-वि० [ स० मिताहार+ई (प्रत्य॰)] दे॰ 'मिताहार' । उ०-हम ऐसे फलाहारी और मिताहारी नहीं है। -सुनीता, पृ०८६। मिति-सशा स्त्री० [स०] १ मान । परिमाण । उ०- गारुडिय ग्रह्यो अमृत मितिय विपम विप्प मल उत्तरं ।-पृ० रा०, ६१ । १५५८ । २ सीमा । हद । मान मानतिति । उ०-रामकथा के मिति जग नाही । असि प्रतीति तिन्हके मन माही।-मानस, ११३३ । ३ काल की अवधि । दिया हुआ वक्त । मुहा०—मिति पूजना=आयु के दिन पूरा होना । ८० 'मिती' । मिती- सज्ञा स्त्री० [ स० मिति ] १ देशी महीने की तिथि या तारीख । जैसे,—मिती पापाढ मुदी ४ म० १९८१ की चिट्ठी मिली। मुहा०-मिती चढ़ाना = तिथि लिखना। तिथि डालना। मिती उगना या पूजना = हुडी का नियत समय पूरा होना । हुडी के भुगतान का दिन प्राना । जैसे,—इम हुडी को मितो पूजे दो दिन हो गए, पर रुपया नहीं पाया । २ दिन । दिवस । जैसे - उसके यहाँ अभी तीन मिती का व्याज मित्ती-सज्ञा स्त्री॰ [ स० मिति ] मान । मिति । उ०—कलिकाल कित्ति मित्तिय इतिय ।-पृ० रा०, १२।६ । मित्र-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ वह जो सब बातो मे अपना साथी, सहायक, समर्थक और शुभचिंतक हो। सब प्रकार से अपने अनुरूप रहनेवाला और अपना हित चाहनेवाला। शत्रु या विरोधी का उलटा। बधु । सखा। सुहृद । दोस्त । २ अति- विषा नाम की लता। अतीस । ३ सूर्य का एक नाम । उ०- अधकार मे मलिन मित्र की धुंबली अाभा लोन हुई।- कामायनी, पृ० १४ । ४ वारह प्रादित्यो मे से पहले आदित्य का नाम । ५ पुराणानुमार मरुद्गण में से पहले मरुत् का नाम । ६ वशिष्ट के एक पुत्र का नाम जो ऊर्जा के गर्भ से उत्पन्न हुआ था । ७ प्रार्यों के एक प्राचीन देवता का नाम । विशेष-ऋक्महिता में लिखा है कि मनु से अदिति को जो आठ पुत्र हुए थे, उनमें से सात को अपने साथ लेकर प्रादिति देवलोक को चली गई थी, केवल मार्तंड नामक पुत्र को फेंक दिया था। ये पाठ पुत्र मित्र, वरुण, धाता, अर्यमा, अश, भग, विवस्वान् और आदित्य या मार्तड थे। इनमें से पहले मातो को गिनती श्रादित्यो में होती है परतु महाभारत और पुराणो मे द्वादश प्रादित्य का वर्णन है, जिनमे से एक मित्र भी हैं, वेदो में मित्र ही सर्वप्रधान आदित्य माने गए हैं, परतु पुराणो श्रादि मे उनका स्थान गौण है। वेदो मे मित्र और वरुण की बहुत अधिक स्तुति की गई है, जिमसे जान पडता है कि ये दोनो वैदिक ऋपियो के प्रधान दवता थे। वेदो मे यह भी लिखा है कि मित्र के द्वारा दिन और वरण के द्वारा रात होती है। यद्यपि पीछे से मित्र का महत्व घटने लगा था, तथापि पहले किसी समय सभी आर्य मित्र की पूजा करते थे। पारमियो मे इनकी पूजा 'मिथ्र' के नाम से होती थी। मित्र की पत्नी 'मित्रा' भी उनकी पूजनीय थी और अग्नि की अधिष्ठात्री देवी माना जाती थी। कदाचित् असीरियावालो की 'मालेता' तथा 1 1 ५-१६
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