पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१६१

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मित्रकर्म ३६२० मित्रसेन 1 कार्य को०] । स० अरववालो की 'पालिता देवी' भी यही मित्रा थी। मित्रभानु-सज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक राजकुमार ८ भारतवर्ष में एक प्रसिद्ध प्राचीन राजवश का नाम जिमका का नाम। राज्य उदुवर और पांचाल आदि स्थानो मे था। मित्रभाव सज्ञा पुं० [५० ] मित्रता । दोम्नी [को॰] । विशेप-कुछ लोग इसे शुग वश की एक शासा बतलाते हैं, तथा मित्रभेद-मज्ञा पुं० [सं० १ वह जो दो मित्रो मे लटाई कराता कुछ लोग इस वशवालो को शाकद्वीपी ब्राह्मण और कुछ शक हो। मित्रो में भगटा कगनवाला । 0 मित्रता में पाया पैदा क्षत्रिय मानते है। ईसवी पहली और दूसरी शताब्दी मे इसका होना । मिग्रता भग होना । ३ यंग तत्र या एक तम। बहुत जोर या । भानुमित्र, सूर्यमित्र अग्निमित्र, जयमित्र, इंद्रमित्र, अादि इस वश के प्रधान राजा थे। इनके जो सिक्के पाए गए हैं मित्रयु-मज्ञा पुं० [म०] १ मित्र। दोन्त । २ वह व्यक्ति जो लोगों को अपना मित्र बना ले [को०] । उनमे से कुछ मे शवो के, कुछ मे वैष्णवो के और कुछ मे सौरो के चिह्न पाए जाते हैं। मित्रयुद्ध-शा पुं० [स० ] मिनो मे झगदा हो जाना [को०] । मित्रकर्म-सज्ञा पुं० [सं० मित्रकर्मन्] मियोचित फाम । मित्र के योग्य मित्रलाभ-गता पुं० [सं०] १ गिग्रो को प्राप्त करना । मित्रप्राप्ति । २ हितोपदेश के पहले प्रध्याय ना नाम । मित्रकृत्-सज्ञा पुं० [स०] पुराणानुसार बारहवें मनु के एक पुत्र मित्रवती - सज्ञा स्त्री० [ 40 ] पुगणानुमार श्रीपण की एक कन्या का नाम। का नाम। मित्रकृत्य-मज्ञा पुं० [सं०] दे० 'मित्रकर्म' । मित्रवत्सल-वि० [सं०] मिमो के प्रति उदार । अपने मित्रा को चाहने- वाला (को०] । मित्रघ्न-सझा १ [सं० ] वह जो मित्र की हत्या करनेवाला हो। २. विश्वासघातक । ३ एक राक्षस का नाम । मित्रवन-सज्ञा पुं॰ [ म० ] पजार के मुलतान नामक नगर का एक प्राचीन नाम । मित्रघ्ना-मक्षा स्त्री॰ [ ] एक नदी का नाम । मित्रवर्द्धन-सज्ञा पुं[ मे० ] महाभारत के अनुगार एक गजा का मित्रज्ञ सज्ञा पुं॰ [स०] १ वह जो मित्र को जानता हो। अपने नाम। दोस्त मित्र को जानने पहचानने और उचित समादर करनेवाला व्यक्ति । २ एक राक्षस का नाम जो यज्ञ की सामग्रो आदि छीन मित्रवान्'-वि० [ मं० मित्रवत् ] [ वि० स्रो० मिग्रपती ] जिने मित्र हो । मियोवाला। ले जाया करता था। मित्रता-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ मित्र होने का धर्म या भाव । २. मित्रवान् २-सज्ञा पुं० १ एक अनुर का नाम । २ वारहवें मनु के एक मित्र का धर्म। पुत्र का नाम । ३ पुराणानुमार श्रीगण के एक पुत्र का मित्रत्व-सज्ञा पुं० [सं०] १. मित्र होने का धर्म या भाव । २ मित्रवाह-सञ्ज्ञा पुं० [ मं० ] बारहवें मनु के एक पुत्र का नाम । दोस्ती। मित्रता। मित्रविंद-सा पुं० [सं० मित्रविन्द ] १ अग्नि । २ बारहवें मनु के मित्रदेव सज्ञा पुं० [सं०] १ बारहवें मनु के एक पुत्र का नाम । एक पुत्र का नाम । ३. पुराणानुमार श्रीपण के एक पुत्र का २ महाभारत के अनुसार एक राजा का नाम । ३ मित्र नाम के ग्रादित्य । विशेप दे० 'मित्र'। मित्रविदा-सशा लो० [ स० ] पुगणानुसार श्रीकृष्ण की एक पन्नी मित्रद्रोह -~मा पुं० [सं० ] मित्र का अनिष्ट करना । का नाम। मित्रद्रोही-वि० [सं० मिन्द्रोहिन् ] मित्र का द्रोह करनेवाला। मित्र मित्रविक्षिप्त-वि० [स०] मिग ते देश मे पड़ी हुई ( मेना )। को धोखा देनेवाला। मित्र का अहित करनेवाला। मित्रविद्-सजा पुं० [ स० ] गुप्तचर । जाग्म । मित्रपचक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मित्रपञ्चक ] वैद्यक के अनुसार घी, मित्रविपय-सज्ञा पुं॰ [ म० ] दोस्नी । मित्रता [को॰] । शहद, गुजा, सुहागा और गुग्गुल इन पांचो का समूह । मित्रवैर-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] वह जो मित्र से वैर या द्वेप करता हो । मित्रपद- सज्ञा पुं॰ [ स०] पुराणानुसार एक प्राचीन तीर्थ का नाम । मित्रसप्तमी-सजा मी० [ स० ] मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी। मित्रप्रकृति-सज्ञा पुं० [सं० ] विजेता के चारो ओर रहनेवाले मित्र विशेप-कहते हैं, इसी दिन कश्यप के वीर्य में प्रदिति के गर्भ राष्ट्र या राजा। से मित्र नामक दिवाकर की उत्पत्ति हुई थी, इसी से इसका यह मित्रप्रवर-- सज्ञा पुं० [सं० मित्र+प्रवर ] मित्रो मे श्रेष्ठ मित्र । नाम पड़ा। अादरणीय मित्र । उ० --विश्राम के लिये मित्र प्रवर, बैठे मित्रसह--मज्ञा पुं० [सं० ] कल्माषपाद राजा का एक नाम । थे ज्यो, बैठे पथ पर । तुलसी०, पृ० २४ । मित्रसाहसा-सक्षा सी० [सं० ] महाभारत के अनुसार स्वर्ग मे रहने- मित्रवाहु--संज्ञा पुं० [सं०] १ वारहवें मनु के एक पुत्र का नाम । वाली एक देवी का नाम । २ श्रीकृष्ण के एक पुय का नाम । मित्रसेन - सशा पुं० [सं०] १ वारहवें मनु के एक पुत्र का नाम । मित्रभ-सज्ञा पुं० [ स० ] अनुराधा नक्षत्र का नाम [को॰] । २. श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम । ३. एक युद्ध का नाम । नाम । नाम।