पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१६६

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मिरनाल ३६२५ 'मिर्च म० मिरनाल-मझ पुं० [ स० मृणाल दे० 'मृणाल'। उ०-शोभित कर मिरनाल सरोजा ।—कवीर सा०, पृ०६६ । मिरवना-क्रि० स० [हिं० मिलाना ] दे० 'मिलाना' । मिरा-राज्ञा स्त्री॰ [ ] १. मूर्वा । २. मदिरा । शराव । मिरास-सञ्ज्ञा पु० [अ० मीरास है. 'मीराम'। उ० इन सबो के लिये हिंदी अपने पितृपुरुषो से प्राप्त मिरास या रिक्थ है।- पोद्दार अभि० न०, पृ० ७५ । मिरासी सञ्चा पु० [अ० मीरासी ] दे० 'मीरासी' । मिरिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [म० ] एक प्रकार की लता। मिरिग-सचा पु० [ स० मृग ] दे० 'मृग'। उ०-नैन कंवल जानहुँ घनि फूले । चितवनि मिरिग सोवत जमु भूले ।—जायसी ग्र० (गुप्त), पृ० ३३६ । मिरिगारन-सञ्ज्ञा पु० [ स० ारण्य ] जगल जिनमे पशु रहते हैं । मिरगारन । उ० - मिरिंगारन महं भएउ बसेरा ।—जायसी ०, पृ० ५८। मिरिच-सज्ञा स्त्री० [सं० मरिच ] २० 'मिर्च' । मिरिचियाकटक-मज्ञा पु० [हिं० मिरिच + गध ] रोहिम घास । मिरियास, मिरियासिg+-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० मीरास ] किसी के मरने पर उसके उत्तराधिकारी को मिलनेवाली संपत्ति । मीरास । उ०-नाही मानस हस यह नहिं मोतिन की रासि । ये तो मवुक मलिन सर करटन की मिरियासि । -दीन० ग्र०, पृ० १०१। मिरोरनाल-क्रि० स० [हिं० ] दे० 'मरोडना' । उ०—ताकै नैन मिरोरि नही चित्त अतै टार।-पलटू, पृ० ५१ । मिर्ग-सञ्ज्ञा पु० [ सं० मृग ] दे० 'मृग' । उ०—मिर्ग को नाभ कस्तूरी।-तुरसी० श०, पृ० ३१ । मिर्गी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० मृगी ] दे० 'मिरगी'। मिर्च--सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० मरिच ] १ कुछ प्रसिद्ध तिक्त फलो और फलियो का एक वर्ग जिसके अतर्गत काली मिर्च, लाल मिर्च और उनकी कई जातियाँ हैं । २ इस वर्ग की एक प्रसिद्ध तिक्त फली जिमका व्यवहार प्राय सारे संसार मे व्यजनो मे मसाले के रूप मे होता है और जिसे प्राय लाल मिर्च और कही कही मरिचा या मिरचाई भी कहते हैं। विशेप-इस फली का तुप मकोय के क्षुप के समान, पर देखने मे उससे अधिक झाडदार होता है, और प्राय. सारे भारत मे इसी फली के लिये उसकी खेती की जाती है। इसके पत्ते पीछे की ओर चौडे और आगे की योर अनीदार होते है। इसके लिये काली चिकनी मिट्टी की अथवा बांगर मिट्टी की जर्मन अच्छी होती है । दुम्मट जमीन मे भी यह चुप होता है, पर कडी और अधिक बालूवाली मिट्टी इसके लिये उपयुक्त नही होती। इसकी वोपाई असाढ से कातिक तक होती है। जाडे मे इसमे पहले सफेद रंग के फूल आते हैं तव फलियां लगती हैं । ये फलियां प्राकार मे छोटी, बडी, लबी, गोल अनेक प्रकार की होती हैं। कही कही इनका आकार नारगी के समान गोल और कही कही गाजर के समान भी होता है पर साधारणतः यह उगली के वरावर लवी और उतनी ही मोटी होती है । इन फलियो का रग हरा, पीला, काला, नारगी या लाल होता है और ये कई महीनो तक लगातार फलती रहती हैं। प्राय. कच्ची दशा मे इनका रग हरा और पकने पर लाल हो जाता है। मसाले में कच्ची फलियाँ भी काम आती है और पकी तथा सुखाई हुई फलियाँ भी। कुछ जाति की फलियाँ बहुत अधिक तिक्त तथा कुछ बहुत कम तिक्त होती है। प्रचार आदि मे तो ये फलियां और मसालो के साथ डाली ही जाती है, पर स्वय इन फलियो का भी प्रचार पडता है। इसके पत्तो की तरकारी भी बनाई जाती है। इसका स्वाद तिक्त होने के कारण तथा इसके गरम होने के कारण कुछ लोग इसका बहुत कम व्यवहार करते है अथवा बिलकुल ही नहीं करते। वैद्यक मे यह तिक्त, अग्निदीपक, दाहजनक तथा कफ, अरुचि, विशूचिका, ब्रण, आर्द्रता, तद्रा, मोह, प्रलाप और स्वरभेद आदि को दूर करनेवाली मानी गई है। त्वचा पर इसका रस लगने से जलन होती है, और यदि इसका लेप किया जाय तो तुरत छाले पड जाने है। इसके सेवन से हृदय, त्वचा, वृक्क और जननेंद्रिय मे अधिक उत्तेजना होती है। पर यदि इसका बहुत अधिक सेवन किया जाय तो बल और वीर्य की हानि होती है। वैद्यक, हिकमत और डाक्टरी सभी मे इसका व्यवहार ओषधि रूप मे होता है। पर्या-कटुबीरा । रक्त मरिच । कुमारिच । तीक्ष्ण । उज्वला । तीव्रशक्ति । अजहा। मुहा०—मिर्चा लगना असह्य होना। उत्तर मे कही गई बात बहुत बुरी लगना। २ एक प्रकार का प्रसिद्ध काला छोटा दाना जिसे काली मिर्च या गोल मिर्च भी कहते हैं और जिसका व्यवहार व्यजनो मे ममाले के रूप में होता है। विशेप-यह दाना एक नता का फल होता है। इस लता की खेती पूर्वभारत में अासाम मे, तया दक्षिणभारत में मलावार कोचीन, ट्रावनकोर प्रादि प्रदेशो मे अधिक्ता मे होती है। देहरादून और सहारनपुर आदि कुछ स्थानो मे भी इसकी बहुत खेती होती है। यह लता प्राय दूसरे वृक्षो पर चढती और उन्ही के सहारे फैलती है। यह लता बहुत दृढ होती है और इसके पत्ते पीपल के पत्तो के समान और ५-७ इच लवे तथा ३-४ इच चौडे होते हैं। इसकी लवी लवी इडियो में गुच्छो मे फूल और फल लगते हैं। प्राय वर्षा ऋतु मे पान की वेल की तरह इस लता के भी छोटे छोटे टुकडे करके बडे बडे वृक्षो की जडो के पास गाड दिए जाते हैं जो थोडे दिनो मे लता के रूप मे वढकर उन वृक्षो पर फैलने लगते है। नारियल, कटहल और ग्राम के वृक्षो पर यह लता बहुत अच्छी तरह फैलती है। तीसरे या चौथे वर्ष इन लताओ मे फल लगते हैं और प्राय वीस वर्ष तक लगते मिरचा,