मिसलत, ३६३१ मिस्तर २ समूह । मुड । पक्ति । श्रेणी। दल । उ० - देखि कुसग पांव मिसिल'-वि० [अ० ] समान । तुल्य । वरावर । २० 'मित्ल' । नहिं दी जहाँ न हरि की गल रे । जो ना मोक्ष मुक्ति । मिसिल'--मज्ञा स्त्री० १ किसी एक मुकदमे या विषय पे मवध रखन- चाहै सता बैमि मिसल रे ।-राम० धर्म० पृ० १४५ । ज - वाले कुल कागज पत्रो श्रादि का समूह । २ किमी पुस्तक के गेर मिसल ठाढो किया, अतरजामी नाम ।-शिखर, अलग अलग छपे फार्म जो सिलाई प्रादि के काम के लिये जम पृ०, ३१०। से लगाकर रखे जाते है । ३ 10 मिमल' । मुहा०-मिसल बिगाडना = मुकदमे के सिलसिलेवार कागजात मुहा०—मिसल उठाना = पुस्तक के अलग अलग फार्मों को सोने इधर उधर कर देना। उ०-क्रोध कोतवाल लोभ नाजर की के लिये पहले एक क्रम से लगाना । ( दफ्तरी )। मिसलत ज्ञान मुद्दई की जिन मिसल विगारी है। -राम० मिसिली-वि० [हिं० मिसिल + ई (प्रत्य॰)] १ जिनके मवध मे धर्म०, पृ० ५७ । मिसल बैठाना = सिलसिला या क्रम ठीक अदालत म कोई मिासल बन चुकी हो। २ जिसे न्यायालय मे करना। उ०- इस पेचदार बात की मिसल बैठाने के वास्ते दह मिल चुका हो । सजायाफ्ता । मैं अपनी प्यारी मनमोहनी को बुलाता हूँ।-श्रीनिवान ग्र०, मुहा०—मिसिल चोर या बदमाश = बहुत बडा चोर या बदमाश पृ०३४। जिसके अपराध अदालत की मिसिला तक से प्रमाणित मिसलत, मिसलति-सज्ञा सी० [अ० मसलहत ] दे० होते हो। 'मसलहत' । उ० क) क्रोध कोतवाल लोभ नाजर मिसी-मज्ञा स्त्री॰ [सं० मिसि, मिपि, मिशी ] १ दे० 'मिशी' । २. मिसलत ज्ञान मुद्दई की जिन मिमल विगारी है।-राम० दे० 'मिसि। धर्म०, पृ० ५७ ( ख ) करि मिसलति की सलि जुरी, सब भर मिसी - सज्ञा स्त्री० [फा० ] स्त्रियो का एक दतमजन । २० मिम्मी' सरस मुदेस । -ह. रासो, पृ० ५० । [को०] । मिसहा-वि० [हिं० मिस (= वहाना ) + हा ( प्रत्य० ) ] बहाना मिसीन/-मज्ञा स्त्री० [अ० मशीन ] दे० 'मशीन' । करनेवाला। छल करनेवाला । उ०—मै मिसहा सोयो समुझि, मिसु-सज्ञा पुं० [हिं०] २० 'मिस' । उ. - हाइहि एहि मिमु दिस्टि मुँह चूम्यौ ढिग जाइ । हँस्यौ खिसानी गल गह्यो रही गरे मेरावा ।—जायसी ग्र० (गुप्त), पृ० २३० । लपटाइ। -बिहारी ( शब्द०)। मिस्कला-सज्ञा पुं० [अ० मिस्कलह ] सिकली करनेवालो का वह मिसाना-क्रि० स० [हिं० मीसना का प्रे० रूप ] मीसने के लिये औजार जिसकी सहायता से वे सिकली करते है। दूसरे को प्रेरित करना । मिसवाना । २ हटाना । दूर कराना । मिस्काल सज्ञा पु० [अ० मिस्काल ] साढे चार मासे की या चार उ.-मन का मैल लेइ मिसाय । तव तिरवेनी घाट नहाय |- मासे और साढे तीन रत्ती की एक तोल । उ०-दूसरी मूर्ति जग० बानी, पृ० ११८ । मे एक माणिक था जो पानी से भी ज्यादा माफ था 1- सज्ञा स्त्री० [अ०] १ उपमा। सादृश्य, जैसे,—लोग प्रांखो और शीशे से भी ज्यादा चमकदार था, तीन मे १५० को मिसाल वादाम से देते हैं । २ उदाहरण । नमूना । नजीर । मिस्काल था ।-हि० पु० रा०, पृ० ५५० । जैसे,—यो ही कहने मे काम न चलेगा, कोई मिमाल भी दीजिए। मिस्कीन-सञ्चा पु० [अ० १. दीन । बेचारा। उ०-कोई भी क्रि० प्र०-देना। मिस्कीन मुसाफिर या मुहताज ।-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० ३ कहावत । लोकोक्ति । मसल । ४ चित्र । तसवीर (को०) । ८५। २ दरिद्र । गरीब । ३ भूखा नगा। कगाल । ४ मीया ५ परवाना । प्रादेशपत्र (को०)। ६ स्वप्नलोक जो स्थूल सादा । सुशील । जगत् का ही एक रूप है। यौ०-मिस्फीनमुरत। मिसालन-अव्य० [अ० ] मिसाल के तौर पर। उदाहरण मिस्कीनसूरत-वि० [अ० मिस्कीन+फा० सूरत ] जो देखने मे मीधा स्वरूप [को०]। मादा या दीन, पर वास्तव में दुष्ट या पाजी हो । मिसाली-वि० [अ० ] उदाहरणरूप । मिसाल रूप मे। नमूने मिस्कीनी-सज्ञा स्त्री॰ [अ० मिस्कीन+ ई (प्रत्य॰)] १ दीनता। २ का [को०] । गरीवी । ३ मुशीलता। मिसि'-सज्ञा झी० [सं०] १. जटामासी । बालछड । २ सौंफ । ३ मिस्कीट-सञ्ज्ञा पुं० [अ० मेस (= भोज )] १ भोजन । खाना । सोना । ४ अजमोदा । ५ खस । २ एक साथ बैठकर साने पीने वालो का मनूह । ३ गुप्त मिसिर-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'मिस' । उ०-सजोगी साधन मिसि परामर्श । अति सचु पायौ।-नद० ग्र०, पृ० ३७३ । मिस्टर-सञ्ज्ञा पुं० [अ० ] महाशय । महोदय । मिसिमिल -सञ्ज्ञा पु० [अ० बिसमिल्लाह ] दे० 'विममिल्लाह' । विशेष—इस शब्द का व्यवहार प्राय अंगरेजो मे अथवा अंगरेजी ढग से रहनेवाले लोगों के नाम के साथ होता है। जैसे, उ०—कतहु वांग कतहु वेद, कतहु मिसि मिल कतहु छेद । कोति०, पृ० ४२ । मिस्टर जॉन, मिस्टर गुप्त । मिसिरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'मिसरी' । मिस्तर'-सक्षा पुं० [हिं० मिस्तरी ? ] १. काठ का वह प्रौजार मिसाल
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१७२
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