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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१७४

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मिहतर ३६३३ मीड मिहतर-सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'मेहतर'। एक वार मगध के राजा वालादित्य ने इसे पकड लिया था, पर मिहदार-सज्ञा पुं० [फा० मिह(= मिहनत) + दार (प्रत्य॰)] वह फिर अपनो माता के कहने से छोड दिया था। इसने कुछ दिनो मजदूर जिसे नकद मजदूरी दी जाती हो, यन्न आदि के रूप मे तक काश्मीर पर भी शासन किया था। यह ईसवी छठी न दी जाती हो । ( रुहेल० )। शताब्दी के मध्य मे हुआ था । मिहदीg -सञ्ज्ञा सी० [सं० मेन्धिका ] दे० 'मेहंदी' । उ०-बदन पर मिहिराण - सज्ञा पुं० [ स०] शिव । अकमर गहने, भी मिहदी से रंगते है ।—भारतेंदु ग्र०, भा० १, मिहीं-ती० [हिं०] दे॰ 'महीन' । उ०—जैसे मिही पट मैं चटकीलो, पृ०२४॥ चढे रंग तीसरी बार के वोरै ।-मैतिराम शब्द०)। मिहनत-सज्ञा सी० [अ० ] दे० 'मेहनत' । मिही -सज्ञा सी० [देश०] १ मध्य प्रदेश मे होनेवाली एक प्रकार की मिहनताना-मज्ञा पुं० [अ० मिहनत ] ८० 'मेहनताना' । अरहर जिसके दाने कुछ बडे होते हैं, और जो कुछ देर मे तैयार मिहनती-वि० [हिं. मिहनत + ई ] द० 'मेहनती' । होती है। २ गडक नदी का एक प्राचीन नाम । उ०-आजकल जिसे गटक कहते हैं, उन दोनो उसका नाम मिही था। मिहना-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० मेहना ] दे० 'मेहना' । -वैशाली०, पृ० १। मिहमान-सज्ञा पु० [फा० मेहमान ] दे० 'मेहमान' । मिहमानदारी सशा ग० [फा० मेहमानदारी ] २० 'मेहमानदारी' । मिहीर - वि० [हि० महीन ] १ झीना । महीन । दे० 'मिही' । २ आद्र । तर। गीला। उ० - मिही अगौंछनि पोछ ले फैल्यो मिहमानी-रज्ञा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'मेहमानी'। काजर नैन । सरद चद अति मंद यह चाहत समता ऐन । स० मिहर '-मझा पु० [ मं० मिहिर ] मूर्य । मप्तक, पृ० ३४८ । मिहर-संज्ञा स्त्री॰ [फा० मेहर ] 10 'मेहर'। उ०—करहा मुणि मिहीना-वि० [हिं० ] दे॰ 'महीन' । उ० कबहु वादले रग रग के सुदर फहइ मिहर करउ मो प्राज । –ढोला०, दू० ३५५ । कतरि मिहीन उडावै ।-भारतेंदु ग्र , भा॰ २, पृ० ४१० । to-मिहरनजर = कृपादृष्टि । उ०—कहर नजर • छाडि के मींगनी-सशा स्त्री॰ [दश०] दे॰ 'मेगनी' । मिहर नजर कू कीजै । रात कोटि गोपियो का उग्ता मवाब मींगी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० मुद्गा (= दाल) ] वीज के अदर का गूदा । लीज ।-बज० ग्र०, पृ० ४१ । गिरी। मिहरवान-सा पुं० [फा० मेहरयां ] दे॰ 'मेहरवान' । मींचना कि० स० [ स० मिप (= झपकना) या अभ्यजन ] दे० मिहरवानी-सशा स्त्री॰ [फा० मेहस्वानी ] दे० 'मेहरवानी' । 'मीचना'। उ०—छिपने पर स्वय मृदुल कर से, क्यो मेरी मिहरा-सशा पु० [हिं०] १ दे० 'मेहरा' । २ दे० 'महरा'। आंखें मीच रही।-कामायनी, पृ० ६७ । मिहराना-क्रि० अ० [हिं० मेह या मेहरा ] कुछ कुछ पार्द या माँजना- क्रि स० [हिं० मीडना ] १ हाथो से मलना । मसलना । नम होना। जैसे, छाती मीजना, हाथ मीजना । २ मर्दन करना । दलना । मिहराव-सज्ञा स्त्री० [अ० मिहराव, मेहराव ] दे० 'मेहराब' । उ०- रगडना। कुदरती कावे की तू मिहराव मे मुन गौर से । पा रही धुर से माँजना- क्रि० स० [हिं० मीचना ] मूंदना । बद करना । ( अाँखो सदा तेरे बुलाने के लिये -मत तुरसी, पृ० ५। के लिये ) । उ०-दूध माझ जस घीउ है ममुद माह जस महरारू -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'मेहरारू' । मोति । नैन मीजि जो देख उठ तस जोति ।-जायसी मिहल 2- सज्ञा पुं० [अ० महल ] दे० 'महल' । उ-पाच पचीसो शब्द०)। तीन गुण, एक मिहल मे राख । - कबीर सा०, पृ० ८७१ । माँटनाg -क्रि० स० [हिं० मीचना, मीटना] ६० 'मीचना' । मिहानी-सशा स्त्री० [हिं० महना ] दे० 'मथानी' । उ०--समाधि लगाइ करि अखि मीटियतु |-सुदर० ग्र०, मिहिका-सज्ञा स्त्री० [स०] १ आसमान से पडनेवाली वरफ। पाला । भा०२, पृ० ६५७ । २ प्रोम । ३ कपूर । माँड--मज्ञा स्त्री॰ [ म० मीहम् ] सगीत मे एक स्वर से दूसरे स्वर पर मिहिर-सञ्चा पुं० [ स०] १ मूर्य उ.-करना होगा यह तिमिर जाते समय मध्म का अश इस सुदरता से कहना जिसमे दोनो पार । देखना सत्य का मिहिर द्वार । -तुलसी०, पृ० २० । २ स्वरो के बीच का सवध स्पष्ट हो जाय, और यह न जान पडे आक का पौधा । ३ तांवा । ४ बादल । ५ हवा । ६ चद्रमा । कि गानेवाला एक स्वर से कूदकर दूसरे स्वर पर चला पाया है। जैसे, 'सा' का उच्चारण करने के उपरात 'रि' का उच्चारण ७ राजा । ८ दे० 'वराहमिहिर' । करते समय पहले कोमल रिपभ का उच्चारण करना । गमक । मिहिर'—वि० वृद्ध । बुड्ढा । मिहिरकुल-तज्ञा पुं० [फा० महगुल का स० रूप । शाकल प्रदेश के विशेप-मीड की आवश्यकता ।कमी स्वर से केवल उसके दूसरे प्रसिद्ध हूण राजा तोरमाण (तुरमान शाह) के पुत्र का नाम । परवर्ती स्वर पर ही जाने मे नही पडती बल्कि किसी एक स्वर से दूसरे स्वर पर जाने अथवा उतरने मे भी पडती है। अर्थात् विशेप-इसने गुप्त सम्राटो पर विजय प्राप्त करके मध्य भारत आरोहण और अवरोहण दोनो मे उसके लिये स्थान है। पर अधिकार जमाया था। यह बौद्धो का बहुत बड़ा शत्रु था।