पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१८८

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कर बातें करना। उड बनना । (२) बातें करना । जवाव किसी के साथ उसकी योग्यता के अनुसार बात करना । सवाल करना । जैसे,—सबके मुह लगना ठीक नहीं। ८. साहस । हिम्मत । मुह लगाना = सिर चढाना । उद्द ड बनाना जैसे,—तुमने भी मुहा०—मुंह पडना = साहस होना । हिम्मत होना। जैसे,—उनके लडको को मुह लगा रखा है। मुंह लपेटकर पडना = (१) सामने कुछ कहने का भी तो मुंह नहीं पड़ता। बहुत ही दुखी होकर पड़ा रहना । उ० - क्यो दुखा की लपेट ६ ऊपरी भाग । उपर की सतह या किनारा । मे पावे। क्यो पडे मुंह लपेटकर कोई । -चोख०, पृ०३० । मुहा०—मुह तक पाना या भरना पूरी तरह से भर जाना। (२) निरुद्यम होना । आलसी होना। अलसाना । मुंह लाल लबालव होना । जैसे-तालाब मे पानी मुंह तक पा गया है । करना = (१) मुंह पर थप्पड आदि मारकर उसे सुजा देना । मुँहअंधेरे-क्रि० वि० [हिं० ] बहुत सवेरे । तडके । (२) पान तबाकू से आदर सत्कार करना । मुंह लाल होना = मारे क्रोध के चेहरा तमतमाना। प्राकृति से बहुत अधिक मुँहअखरी@ -वि० [हिं० मुंह + अक्षर ] जो केवल मुंह से कहा क्रोध प्रकट होना । मुंहभालना = बातचीत में मर्यादा और जाय, लिखा न जाय | जबानी । शान्दिक । शिष्टता का ध्यान रखना । उ०—पाँव तो देख भालकर मुंहउजाले-क्रि० वि० [हिं० ] पौ फटते । बहुत सवेरे । डाले । मुंह सँभाले संभालकर बोले । - चोखे०, पृ० ३० । मुंहकाला-सञ्ज्ञा पु० [हिं० मुह+काला ] १ अप्रतिष्ठा । बेइज्जती । ह सफेद होना= भय या लजा से चेहरे का रंग उड जाना। २ बदनामी। ३ एक प्रकार की गाली। जैसे,—जा तेरा उदासी छा जाना । मुंह सिकोड़ना = प्राकृति से अप्रसन्नता मुंहकाला हो। या अमतोप प्रकट करना। नाक भी चढाना । (अपना) मुंहचग-सज्ञा पुं० [हिं० ] एक बाजा । दे० 'मुरचग' । मुँह सुजाना = प्राकृति से असतोप या अप्रसन्नता प्रकट करना। मुंहचटौवल-सज्ञा स्त्री० [हिं० मुंह+चाटना + औवल (प्रत्य॰)] नाराजो जाहिर करना । फिसी फा) मुंह सुजाना = थप्पड १ च वन । चूमाचाटी । २ वकत्रक । बकवाद । मार मारकर मुह लाल करना। मुंह सुर्ख होना = क्रोध के मारे चेहरा तमतमाना। गुस्से से चेहरा लाल हाना । मुंह मुंहचोर-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० मुह+ चोर ] वह जो दूसरो के सामने जाने से मुंह छिपाता हो। लोगो के सामने जाने मे सकोच सूखना = भय या लजा आदि से चेहरे का तज जाता रहना । करनेवाला। ५. किसी पदार्थ के ऊपरी भाग का विवर जो प्राकार प्रा.दे मे मुंहचोरई-सचा सी० [हिं० ] मुंह चुराने की क्रिया या भाव । मुंह से मिलता जुलता हो। जमे,-इम बरतन का मुंह मुहचोर का क्रिया या स्थिति । बांधकर रख दो। ५. सूराख । छद । ।छद्र । जैसे, -- दा दिन मुंहचोरी-मचा स्त्री॰ [हिं० ] मुंहचोर होना । मे इस फोडे मे मुंह हो जायगा। ६. मुलाहजा । मुरव्वत । मुँहछुआई -सञ्ज्ञा सी० [हिं० मुंह+छूना+आई (प्रत्य॰)] केवल लिहाज । जैसे,—हमे तो खाली तुम्हारा मुह है, उसम तो हम मुंह से छूने के लिये, ऊपरी मन से कुछ कहना । कभो वात ही नहीं करते। मुंहछुट-वि० [हिं० मुह + छूटना ] जिसका मुंह भोछी या कटु बातें यौ०-ह मुलाहजा। कहने के लिये खुला रहे । मुंहफट । मुहा०-मुंह करना = मुलाहजा करना । ख्याल करना । जैसे, मुंहजली-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ हिं० मुह + जलो ] [पु० मुंहजला] स्त्रियों की धनवानो का तो सभी लोग मुंह करते है, पर गरीवा को गाली। जले मुहवाली। मुंहझौंसी कोई नही पूछता । मुंह देखे का = जो हार्दिक न हो, केवल दर्शन है। यहाँ इस मुंहजली को लेकर पडे हो।-पाकाश०, ऊपरी या दिखौग्रा हो । जो केवल सामना होने पर हो । पृ०६८ । मुलाहजे का। मुरव्वत का । जैसे, - (क) प्रापका प्रेम तो मुंहजोर-वि० [ हिं० मुह+जोर ] १ वह जो बहुत अधिक बोलता मुंह देखे का है। (ख) ये सारी बातें मुह देखे की है। मुंह हो। वकवादी । २ दे० 'मुंहफट'। ३ जो जल्दी किसी पर जाना= किसी का ध्यान करना । लिहाज करना । के वश मे न पाता हो। तेज । उद्दड । जैसे, मुहजोर घोडा । जैसे,—मैं तुम्हारे मुंह पर जाता हूँ, नही तो अभी इसकी गत मुंहजोरी- -सज्ञा स्त्री० [हिं० मुंहजोर + ई (प्रत्य॰)] १. मुंहजोर वनाकर रख देता। मुंह मुलाहजे का = जान पहचान का। होने की क्रिया या भाव । २. तेजी। उद्दडता। परिचित । मुंह रखना= किसी का लिहाज रखना । ध्यान मुंहझोंसा, मुंहझौंसा-सचा पुं० [हिं० मुंह+झौंसना ] [ सी. रखना । जैसे,- आप इतनी दूर से चलकर आए हैं, आपका मुहोसी, मुहमौसी ] खियो की गाली । मुंहजला। उ०- मुंह रखो। परतु यदि उस मुंहझोसे रोज को पा गई तो ताप, बदूक या ७. योग्यता । सामर्थ्य । शक्ति । जैसे,—तुम्हारा मुंह नहीं है कि तलवार से सच्चा नाम बतलाए विना न मानूंगी ।-झांसी०, तुम उसके सामने जायो । पृ० ३५० । मुहा०—(अपना ) मुँह तो देखो = पहले यह तो देखो कि इस मुँहडी-सचा स्त्री॰ [ हिं• मुंह ] दे० 'मोहरी' । उ०-यह लवी योग्य हो या नहीं। (व्यग्य ) । मुंह देखकर बात करना - मुंहही का पायजामा ?-प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० ८७ । उ०—यही तुम्हारा