पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१९

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मन' ३७७६ मन उ० हो जाना । (२) मतली पाना । के मालूम होना । (३) उन्मत्त होना। पागल होना । मन वढना = साहम बढना । उत्साह वढना । प्रोत्साहित होना । उ०—(क) सुनि मन धीरज भयल हो रमैया राम । मन बढि रहल लजाय हो रमैया गम ।- कवीर (शब्द०)। (ख) प्रापम के नित के बर से शत्रुप्रो का मन वढा । शिवप्रमाद (शब्द०)। किसी का मन चूमना = किसी के मन की थाह लेना। उ० - तुम्हारा मन बूझने के लिये ही मैंने यह बातें कहीं।-हरिपौष (शब्द॰) । मन का बूझना या मानना= मन मे गाति होना। मन मे धर्य पाना । मन मन = मन ही मन । मन में। उ०-पिय संग सोबत सोय न जाई । मन मन इमि सोच सुख दाई ।-नद० ग्र०, पृ० १४६ । मन मानना = मन मे शाति होना । सतोप होना । जसे, हमारा मन नहीं मानता, हम उन्हे देखने अवश्य जायंगे । मन का भेद पाना = हृदय को गूढ बात समझना । मन का रहस्य जानना । उ०-मन का भेद न पावै कोई।- जग० श०, पृ० ५४ । मन फा मारा- सिन्नहृदय । दुसी चित्तवाला। मन का मैला = मन का खोटा । कपटी । पाती। मन की मर्ने रहना = दे० 'मन की मन मे रहना' । उ.- मन की मर्ने रही मन माया । ज्यों तरग वल जलें समाया ।- पृ० रा., २६८६ । मन सो जाना= विस्मयान्वित होना । चकित होना । उ०-पै यह सगुन सरूप तुम्हारी । घां मन खोयो वात हमारी ।-नद० ग्र०, पृ० २६६ | मन छूना = (१) मन को माहादित करना । मन का प्रसन्न करना । मन को प्रभावित करना । (२) मातरिक बात समझना । हृदय की वात जानना । (३) पूर्ण प्राप्ति न कराना। पूरी तरह स किसी वस्तु को न देना । नाम करना । उ०-मन छूना, शोभा वरसना, दिन ढलना या हूवना उदासी टपकना, इत्या.द ऐसी ही कविसमयसिद्ध उक्तियाँ हैं जो बोलचाल मे रुढि होकर श्रा गई हैं।-रस० पृ० ४१। मन ठिकाने रहना=चित्त स्थिर रहना । मन शात रहना । उ०-चर्चा वार्ता विना मन ठिकाने रहत नाही ।-दो सौ बावन०, भा० १, पृ० ११७ । मन धरना = (१) द. मन छूना' । (२) मन मे धारण करना। उ०-- कसो कसोटी तासु का, जो कसनी ठहराइ । खोटे खरे जु मन धरे, त्याग विरद लजाइ ।-यज० ग्र०, पृ० १० । मन हरा होना = मन प्रसन्न होना। चित्त प्रसन्न रहना । मन की मन में रहना इच्छा पूरी न होना । जसे,-मन की मन मे ही रह गई, और वे चले गए। मन के लड्डू खाना = ऐसी बात को सोचकर प्रसन्न होना, जिसका होना असभव या टु साध्य हो । व्यर्थ की पाशा पर प्रसन्न होना। उ० -विरह से पागल प्रेमी लोग मन के लड्डू से भूख वुझा लेते हैं। - हरिश्चद्र (शब्द०)। मन खोलना= दुराद छाडना । निष्कपट होना । शुद्ध हृदय होना । मन चलना-इच्छा होना । प्रवृत्ति होना । जैसे,—बीमारी मे किसी चीज पर मन नही चलता । किसी का मन टटोलना या मन को टटोलना=किसी के मन की थाह लेना । किसी को इच्छा को जानना | जसे,-प्रायो, कुछ आमोद प्रमोद की बातें कर उसका मन टटोलें। मन डोलना= (१) मन का चलायमान होना । मन का चचल होना। (२) लालच उत्पन होना । लोभ पाना । मन डोलाना = (१) मन मे चचलता उत्पन माना। मन चापमान करना। भोजन करत गायो कर मिनि गोई चेन जो मन न डोलावं । पूरदास प्रभजन लिघिमा जापर Zा पोजन पा ।-गूर (म.र०)। (२) नामक उपन ग्ना। नोभ दिलाना। अपना मन टोलना-नान करना। मनरेग% (१) जी लगाना। मन गाना। 30 -- (प) र पार जो मन देव सेवा । सेवहि फन प्रगत हो. दया ।- जापनो (शब्द॰) । (ख) रघुपतिपुरी जनमु सब भयक । पुनि त मन सेवा मम दयऊ ।-तुनी (TN)। (२) ध्यान ना । किसी को मन देना= रिमी पर प्रायक्तीना । मोहिनीना। किती पर मन धरना = ध्यान देना। मन गाग। 30- (क) माग भयो अपराध पाप नन्दि वन्तुरी गरल न। गुरदार स्वामी मनमोहन नाम गन न में।-मुर (गर)। (स) जोई भक्ति नाजन मन । साई रि गा मिलि अनुसरे |- उन्नू (गन्द.)। गोदना या हरना-3 भग्नोत्लाह होना । माग छोरना। ३० -प्रा बिन है गर्व नही एको फर नुनत दान नयन तुर र मेन गुनि मनहि तोर । - सूर (पन्द०)। (किसी से) मग पर जाना या फिर जाना= घृणा होना । नफरत होना । ८०-रा मने अमरन रं, वले प्रगट्यो वेध । मन फाटो साटो चिता, गूटे नाय न रोध ।-रा० १०, पृ० ३४५ । मन फिराना='मन फेरला' मन फेरना= चित्त यो हटाना। मन को मिनी भोर में मलग करना । प्रवृत्ति बदनना। 30-फिरि फिर फेरि फे घो मैं हरी को मन फेर फिरी पुनि पुनि भाग को भली परी।- केशव (शद०)। मन बढ़ाना = नाम तिाना। उता बढाना । प्रोत्माहित करना । उ०-दियो शिरपाय नृाउ ने महर को प्राप पगननी गब रिवार । प्रतिहि च पाई के लियो मिर नाइक हम नदीप व मन बनाए। - सूर (शद०)। मन यदना या वह पढ़ना = चत्त का फिनी पार ढल जाना। मन का व यस किमी प्रार चने जाना । 30- ज्या जोगो जन मन वाद प । बहुरि 17 या निर्मल कर - नद० ग्र., पृ. २६१ । मन में वमना = मन में सुभना । पसद पाना। अच्छा लगना। रचना। माना। जैन,- उनको मूरत तो मेर नन मे 7 गई है। उ० - गुर के भेला जिव डरे काया छीजनहा । पुनति कमाई मन बमे लागु जुवा की लार ।-यवार (ग-३०)। मन बहलाना = सिन या दुखी चित्त को किसी काम मे लगाफर मानदित करना। दुख छोडकर यानद गे ममय काटना। चित्त प्ररान करना। जी बहलाना । उ.-ना किसान अब ममाचार तह आप सुन हैं । ना नाक को वाते सबको मन बहलहै । -श्रीधर पाठक (शब्द )। मन भरना%3D = (१) प्रतोति होना । निश्चय या विश्वाम होना । (२) मतोप होना। तुष्टि होना । तृप्ति होना। उ०-यह वीसो फूलो पर गया, पर इसका मन न भरा।- अयोध्या (शब्द०)। मन भर जाना= (१) अघा जाना । तृप्ति