पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१९१

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मुकतई २६५० मुकरनी यौ०-मुकतफल = मुक्ताफल । मोती । उ०—फवै सवामण मुकत- मुकदमेवाजी-सशा खी० [अ० मुकदमा + फा० वाजी ] मुकदमा फल मैंगल कुभ मझार ।-बांकी० ग्र०, भा० १, पृ० २४ । लडने का काम। मुकतई-सझा स्त्री॰ [ स० मुक्ति ] मुक्त। छुटकारा । उ०--तूं मुकदम-वि० [अ० मुकद्दम ] ? प्राचीन । पुराना । २ सर्वश्रेष्ठ । मति मान मुकतई किएं कपट चित कोट । जौ गुनही तो ३ जरूरी । अावश्यक । राखिऐ प्रांखिनु माझ अगोटि ।-विहारो ( शब्द०)। क्रि० प्र०-जानना।-समझना। मुकता-सञ्ज्ञा पुं० [ सं० मुक्ता] ३० मुक्त' । ३०–कलंगी सडक मुकद्दम'- २- पुं० १ मुखिया। नेता। उ० -राजा एक पचीस सेत गजगाहें। मालनि जटित मजु मुकता हैं। हम्मीर०, तिलगा, पाँच मुकदम मो पचरगा।-कबीर० श., भा० १, पृ० ३। पृ० ३२ । २ रान का ऊपरी भाग जो कूल्हे से जुड़ा होता है । मुकता'-वि० [हिं० अ (प्रत्य॰) + मुफना (= समाप्त होना) ] [ वि० ( कमाई )। स्त्री० मुफती ] जो जल्दी समाप्त न हो। बहुत अधिक । यथेष्ट । मुकद्दमा-सज्ञा पु० [अ० मुकदमह, ] दे० 'मुदकमा'। जैसे,—उनके पास मुकते कपडे हैं, कहां तक पहनेंगे | मुकहर-मज्ञा पुं० [अ० मुकदर ] प्रारब्ध । भाग्य । तकदीर। मुकतालि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० मुक्तावली ] मोतियो को लडी । मुक्ता- वलि । उ०-ह्र कपूर मनिमय रही मिलि तन दुति मुकतालि । मुहा०-मुकद्दर श्राजमाना = भाग्य की परीक्षा करना । मुफद्दर चमकना = भाग्योदय होना। छिन छिन खरी विचच्छिनौ लखति छाइ तिनु प्रालि | - विहारी ( शब्द०)। मुकद्दस-[अ० मुफटस ] पावेन । शुचि । पाक । मुकति-मज्ञा स्त्री॰ [ सं० मुक्तिका ] १ मोती । उ०—प्रधरन पर यौ० मुफद्दम फिताव = ऐसी धर्मपुस्तक अपौरुषेय मानी बेसर सरस लुरकत लुरक बिसाल । राखन हेत मगल जनु जानी हो । 30 -- मुकदम कुनुव वेद वानी बयान । जो देखे पढे मुकति चुगावति बाल ।-स० सप्तक, पृ० ३८८ । उनको हो मर गयान-कबीर म०, पृ० ३८६ । मुकद्दस हस्ती = मुकति २- सज्ञा स्त्री॰ [ स० मुक्ति ] छुटकारा । मोद। मुक्ति । उ०- पुनीतात्मा । महात्मा । मत पुरुष । सु प्राधीन उपराति मुकति नाहीं ।-पोद्दार अभि० ग्र०, मकना 1-सज्ञा पुं० [ म० मनाफ, हिं• मुफना ] दे० 'मकुना' । मुकना-क्रि० अ० [सं० मुक्त ] १ मुक्त होना। छूटना । २ मुकत्तर-वि० [अ० मुफत्तर ] १ निथारा या साफ किया हुआ । खतम होना । चुकना। २ बूंद बूंद करके टपकाया हुआ (को०] । मुकफ्फल-वि० [अ० मुकफ्फल ] यत्रित । बद किया हुआ । जैसे, मुकत्ता-वि० [अ० मुकत्तश्र] १ काट छांटकर दुरुस्त किया हुआ। मुकपाल दरवाजा, मुकफ्फल सदूक [को०] । ठीक तरह से बनाया हुश्रा । जैसे, मुकत्ता दाड़ी। २ सभ्य । मुकम्मल-वि० [अ०] १ पूरा किया हुआ । जिममे कुछ भी शिष्ट । जैसे, मुकत्ता सूरत । करने को बाकी न हो । मव तरह से तैयार । २ पूर्ण । समग्र । मुकदमा-मज्ञा पुं० [अ० मुकद्दमह, ] १. दो पक्षो के बीच का धन, पूरा [को०] । अधिकार आदि से सवध रखनेवाला कोई झगडा अथवा किसी मुकन्मिल-वि० [अ० ] पूर्ण करनेवाला । पूरा करनेवाला । उ०- अपराध ( जुर्म ) का मामला जो निबटारे या विचार के लिये मोहिउद्दीन है पीर मुकम्मिल अन्बल ।-दक्खिनी, न्यायालय मे जाय । व्यवहार या अभियोग । जैसे,—वह वकील पृ० ११४॥ जो मुफदमा हाथ मे लेता है, वही जीतता है। मुकर-मन्ना पु० [सं० मुकुर ? ] कली । मुकुर । मुकुल । उ०-नरियल कि० प्र०-उठाना ।-खड़ा करना ।-चलना । चलाना ।- ऐनक मुकर लगाई ! मन मोडे पुनि वास उडाई ।-घट, जीतना । हारना । पृ० २१८ । मुहा० % मुकदमा लडना = मुकदमे मे अपने पक्ष मे प्रयत्न करना । मुकरना—क्रि० अ० [ स० मुक्त (= नहीं) + करना ] कोई बात कह- २ धन का अधिकार आदि पाने के लिये अथवा किए हुए अपराध कर उसमे फिर जाना। कही हुई बात से या किए हुए काम पर दह दिलाने के लिये किसी के विरुद्ध न्यायालय में कार्रवाई। से इनकार करना। नटना । जैसे-उनका तो यही काम है, दावा। नालिश। सदा कहकर मुकर जाते हैं। क्रि० प्र०-दायर करना । सयो० क्रि०-जाना। पटना। यौ०- मुकदमेबाजी। मुकरना- सज्ञा पुं॰ कहकर मुकर जानेवाला । वह व्यक्ति जो कहे और ३ किसो पुस्तक को प्रस्तावना । भूमिका । प्राक्कथन (को०) ४ फिर मुकर जाय। काम । कार्य (को०)। मुकरना-क्रि० प्र० [सं० मुक्त ] मुक्त होना । छूटना । मुकदमेवाज-सशा पुं० [अ० मुक़दमा + फ़ा० यान (प्रत्य० ) ] वह मुकरनी-सशा सी० [हिं० मुकरना ] मुकरी या कह मुकरी नामक जो प्रायः मुकदमें लडा करता हो । कविता । विशेप दे० 'मुकरी'। पृ०४८०।