पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१९३

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१ मुकिर ३६५२ मुका के शरीर पर मुक्कियो से वार बार आघात करना जिसमे १।१२३। (ख) जाति हीन, अघ जनम महि, मुकुत कीनि असि उसके अगो की शिथिलता दूर हो । २ आटा गूधने के उपरात नारि-मानस, २।१५६ । उमे नरम करने के लिये मुधियो से वार बार दवाना । ३. मुफुतर-मज्ञा पुं० [सं० मुक्तक ] मुक्ता । मोती। मुक्का लगाना या मारना । घूसे लगाना | सुकुता -मश पुं० [ 10 ] दे० 'मुक्ता' । उ०-मनि मानिक मुकुता मुकिर-वि० [अ० मुकिर, मुकिर्र ] १ इकरार करनेवाला । प्रतिज्ञा छवि जैसी। प्रहि गिरि गज मिर मोह न तैसी ।—मानस, करनेवाला। २ किसी दस्तावेज या अरजीदावे श्रादि का १।१२। लिखानेवाला, जिसके हस्ताक्षर से वह प्रस्तुत हो। (कच०)। 10- मुकुतामाल = मोतियो की माला। उ०- बहुत वाहिनी मुकीम-वि० [अ० मुकीम ] १ कुछ दिनो के लिये कही ठहरा सग मुकुतामात विशाल कर। केशव (गन्द०)। मुकुताइल = हुआ । २ निवासी। रहनेवाला [को०] । 2. 'मुक्ताफन' । उ०-मताहल गुनगन चुनइ राम वनह मन मुकुटी-सज्ञा स्त्री॰ [ म० मुन्टो ] प्राचीन काल का एक प्रस्य । तामु।-मानस, २।१२८ । मुद-संज्ञा पु० [सं० मुकुन्द ] मुक्ति देनेवाले, विष्णु। २ मुकुनि-मा सी० [ मुक्ति ] दे० 'मुक्ति' । उ०-जमगन पुराणानुसार एक प्रकार की निधि । ३ एक प्रकार का ल । मह मसि जग जमुना सी। जीवन मुकुति नतु जनु कामी । ४ कुंदरू । ५ पारा। ६ सफेद कनेर । ७ गभारी नामक -मानस,१३१ । वृक्ष । ८ पोई का साग। ६ एक प्रकार का वाद्य । पटह । मुकुर-मज्ञा पुं० [म०] १ मुज देखने का शीशा ।। झाईना। दर्पण | दुदुभि (को०)। १० साठी धान (को०)। ११ सगीत मे ताल उ०—तब हरगन वोले ममुकाई। निज मुख मुकुर विलोकहु का एक प्रकार (को०)। जाई।-मानस, १११३५ । २ बकुल का वृक्ष । मौलसिरी। मुकु दक-मज्ञा पुं॰ [ स० मुकुन्द फ] १ प्याज । २ साठी धान । ३ कुम्हार का वह डडा जिमने वह चाक चलाता है। ४ मल्निका । मोतियां । ५ कली । मुकुल । ६ वेर का पेट । सुकुदा-सचा स्त्री० [ स० मुकुन्दा ] भेरी । दुदुभी [को०] । मुकुल-सशा पु० [ स० ] १ कली। २ गरीर | ३ आत्मा ।। भुकुट्ठ-सज्ञा पुं० [सं० मुकुन्दु] १ कुदरू । २ सफेद कनेर । ३ प्राचीन काल का एक प्रकार का राजकर्मचारी। ५ एक प्रकार पारा। ४ गभारी । ५ पोई का साग । का छद । ६ जमालगोटा । ७ भूमि । पृथ्वी । मुकु-संज्ञा पुं० [सं०] १ मुक्ति । मोक्ष । २. छुटकारा । रिहाई । मुकुल'--सशा पु० दे० 'गुग्गुल' । गुकुट'- मझा पुं० [सं०] १. प्राचीन काल का एक प्रकार का प्रसिद्ध शिरोभूपण जो प्राय राजा आदि धारण किया करते थे। मुकुलक-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] दती वृक्ष । विशेष—यह प्राय वीच में ऊंचा और कंगूरेदार होता था और मुकुलाग्र-सज्ञा पुं० [०] प्राचीन काल का एक प्रकार का प्रस्त्र जो कली की प्राकृति का होता था । सारे मस्तक के ऊपर एक कान के पास से दूसरे कान के पास तक होता था। यह सोने, चांदी आदि बहुमूल्य धातुओ का मुकुलायित-वि० [ सं० ] दे० 'मुकुलित' । और कभी कभी रत्नजटित भी होता था। यह माथे पर आगे मुकुलित-वि० [ स०] १ जिसमे कलियाँ प्राई हो। २ कुछ खिली की ओर रखकर पीछे से बांध लिया जाता था। इसमे कभी हुई । ( कली ) । ३ प्राधा खुला, प्राधा वद । कुछ कुछ खुला कभी किरीट भी खोंसा जाता था। ४. झांकता हुआ । ( नेत्र)। पर्या० - मौलि । कोटीर । शेखर । अवतस । उत्त स । मुकुली-लज्ञा पुं० [ मुकुलिन् ] वह जिसमे कलियां पाई हो । २ पुराणानुसार एक देश का नाम । मुकुष्ठ सशा पुं० [स०] मोठ । मुकुट-सशा स्त्री० एक मातृगण । मुकुष्ठरु-सज्ञा पु० [ स० ] मोठ। मुकुटी'- '-सज्ञा पुं॰ [ स० मुकुटिन् ] वह जिसने मुकुट धारण किया मुकूलक-सज्ञा पुं॰ [ स० ] दती वृक्ष । अडी की जाति का एक वृक्ष । हो। विशेप दे० 'दती'। मुकुटी २-सज्ञा स्त्री० [ स० ] छोटिका । चुटकी [को०] । मुकेस–सशा पुं० [ फा० मुक्कैश ] दे॰ 'मुक्कैश'। उ०—सतगन मुकुटेकार्षापण-सज्ञा पुं॰ [ मं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का नग पर वसन मुकेस राज, एक सी प्रकासी गति दोनो चितचोर की।-पजनेस०, पृ० १। राजकर जो राजा का मुकुट बनवाने के लिये लिया जाता था। मुक्का-सज्ञा पुं० [ सं० मुष्टिका ] [ खी० अल्पा० मुक्की ] हाथ का यह मुकुटेश्वर-सजा पुं० [सं०] १ एक शिवलिंग का नाम । २ एक रूप जो उंगलियो और अंगूठे को वद कर लेने पर होता है प्राचीन तीर्थ का नाम । और जिससे प्राय प्राघात क्यिा जाता है। बंधी मुट्ठी जो मुकुट्ट-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन जाति का नाम जिसका उल्लेख मारने के लिये उठाई नाय । महाभारत मे है। मुहा-मुक्का चलाना या मारना = मुक्के से प्राघात करना । मुकुत'-वि० [सं० मुक्त ] दे० 'मुक्त' । उ०—(क) मुकुत न भए मुक्फा सा लगना = हार्दिक कप्ट पहुंचना । हते भगवाना । तीनि जनम द्विज बचन प्रमाना ।—मानस, .. यौ०-मुक्केबाजी। HO