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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१९४

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मुक्काना ३६५३ मुक्तपत्राव्य मुक्काना-क्रि० स० [सं० मुच, प्रा० मुक्क ] मुक्त करना । भेजना। मुक्त-सञ्ज्ञा पुं० १ पुराणानुसार एक प्राचीन ऋपि का नाम । २ वह छोडना। उ०-मुक्काए मतिवतिनी, नृप कग्गद दै हथ्थ । जिसने मुक्ति प्राप्त कर ली हो (को०] । पूजा मिमि वाला सुभर सुभुयान मिलि तथ्य । -पृ० रा०, मुत्त ३-सञ्ज्ञा पु० ( स० मुक्ता ] दे० 'मुक्ता' । उ०—हेम हीर हार २५।२६६। मुक्त चीर चारु साजि के ।-केशव ( शब्द०)। मुक्काम-सज्ञा पुं० [अ० मुकाम ] दे० 'मुकाम' । उ०-दस मुक्तकचुक-रक्षा पु० [सं० मुक्तकञ्चुक ] वह साँप जिसने अभी कोस जाय मुक्काम कीन । विच गाम नगर पुर लूट लीन । हाल मे कॅचुली छोडी हो । -०रा०, ११४३७ । मुक्तकंठ - वि० [ स० मुक्कयठ ] १. जो जोर से बोलता हो। मुक्की-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० मुक्का + ई (प्रत्य॰)] १. मुक्का। चूंमा । चिल्लाकर बोलनेवाला। २ जो वोलने मे वेवडक हो। जिससे २ वह लडाई जिसमे मुक्को की मार हो। उ.-मुक्की नु कहने मे पागा पीछा न हो । जैसे,—मुक्तकठ होकर कोई वात किज्जे मार, तहवीर ट्टहि झार ।-पृ. रासो, पृ० १५२ । स्वीकार करना। ३ आटा [वने के उपरात उसे मुठ्ठियो से बार बार दबाना मुक्तक-मज्ञा म० ] स० ] १. प्राचीन काल का एक प्रकार का अस्त्र जिससे आटा नरम हो जाता है। जो फेंककर मारा जाता था। २ एक प्रकार का काव्य जो एक क्रि० प्र०—देना । - लगाना । ही खड या पद्य मे पूरा होता है। वह कविता जिसमे कोई ४ हाथ पैर आदि दवाने की क्रिया। मुठ्ठियाँ बाँधकर उससे किसी एक कथा या प्रसग कुछ दूर तक न चले। फुटकर कविता । के शरीर पर धीरे धीरे आघात करना, जिससे शरीर की 'प्रबंध' का उलटा जिसे 'उद्गट' भी कहते हैं। उ.-मुक्तक शिथिलता और पीडा दूर होती है । या उद्भट मे जो रस की रस्म अदा की जाती है उसमे ग्रीष्म क्रि० १०. मारना।—लगाना । दशा का समावेश नही होता ।—रस०, पृ० १८६ । मुक्कबाजी-सज्ञा स्त्री० [हिं० मुक्का + वाजी (प्रत्य॰) । मुक्को की मुक्तक ऋण - सज्ञा पुं॰ [ स० ] वह ऋण जिसकी लिखा पढी न हुई लडाई । घूसेवाजी । घूसमधू सा । हो । जबानी वातचीत पर दिया हुआ ऋण । मुक्केश -सञ्ज्ञा पुं० [अ० मुक्कैश ] १ चांदी या सोने का एक मुक्तकच्छ'-मज्ञा पुं० [ सं० ] एक वौद्ध का नाम । विशिष्ट रूप मे काटा हुआ तार जिसे बादला कहते है । २. मुक्तकच्छ'-वि० जिसकी लाँग या काछ खुली हो (को०] । मुनहले या रुपहले तारो का बना हुआ कपडा । ताश । मुक्तकुतला - सज्ञा स्त्री॰ [ सै० मुक्तकुन्तला ] विखरे बालोवाली । तमामी | जरबफ्त । जिसके बाल इधर उधर विखरे हो । उ०-धुलि धूसरित, मुक्त- कुतला किसके चरणों की दासी ?-वीणा, पृ० ११ । मुक्कंशी-वि० [अ० मुक्कै श + ई (प्रत्य॰)] १ बादला का बना हुआ । २ जरी या ताश का बना हुआ । मुक्तकेश-वि• [ सं० ] [ वि० स्त्री० मुक्तकेशी ] जिसके वाल वंधे या गुंथे न हो (को०) । मुक्कैशी गोखरू-सञ्ज्ञा पुं० [हि० मुक्कशी+गोखरू ] एक प्रकार मुक्तकेशी-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] काली देवी का एक नाम । का महीन गोखरू जो तारो को मोडकर बनाया जाता है। मुक्त चदन-मशा पुं० [सं० मुक्तचन्दन ] लाल चदन । मुक्ख-वि० [सं० मुख ] दे० 'मुख' । उ०---तजी बाल क्रीडा जल त्यागि भग्गी। जही ओर दौरी भयो मुक्ख अग्गी- मुक्तचदा-सञ्ज्ञा सी० [ म० मुक्तचन्दा ] चिंचा नामक साग । चचु । ह० रासो०, पृ०३८ । मुक्तचक्षु-सशा पु० [ स० मुक्तचक्ष स ] सिंह । शेर । मुक्खी-सचा पु० [हिं० मुख+ ई ( प्रत्य० ) ] गोले कबूतर से मुक्तचेता-सशा पुं० [ सं० मुक्तचेतम् ] वह जिममे मोक्ष प्राप्त करने की बुद्धि आ गइ हो। मिलता जुलता एक प्रकार का कबूतर जो प्रायः उन्ही के साथ मिलकर उडता है और अपनी गरदन जरा कसे रहता है । २ मुक्तछद-सज्ञा पु० [ म० मुक्त+ छन्द ] छद शास्त्र के नियमो के विपरीत छद । अतुकात घद । उ०--तब भी मैं इसी तरह वह कबूतर जिमका सारा शरार तो काला, हरा या लाल हो, समस्त, कवि जीवन मे व्यर्थ भी व्यस्त लिखता अबाघ गते पर जिसके सिर और डैनो पर एक या दो सफेद पर हो । मुक्त छद।-अनामिका, पृ० १२२ । मुक्त'-वि० [सं०] १. जिसे मोक्ष प्राप्त हो गया हो। जिसे मुक्ति मुक्तता- स्त्री॰ [ सं०] १ मुक्त होने का भाव । मुक्ति । मोक्ष । मिल गई हो । जैसे,—काशी मे मरने से मनुष्य मुक्त हो जाता २ छुटकारा। है । २ जो बधन से छूट गया हो। जिसका छुटकारा हो गया मुक्तत्व-सञ्ज्ञा पु० [ ] दे० 'मुक्तता' को०] । हो । जैसे,—वह कारागार से मुक्त हो गया है। ३ जो पकड मुक्तद्वार--वि० [ सं०] १. जिसका द्वार खुला हो । २. निर्वाघ । या दवाव से इस प्रकार अलग हुआ हो कि दूर जा पडे । चलने के लिये छूटा हुआ। फेंका हुआ। क्षिप्त । जमे, वाण का मुक्तनिर्मोक-सज्ञा पुं० [ स० ] वह सांप जिसने अभी हाल मे केचुली छोडी हो। मुक्त होना । ४ बधन से रहित । वचन से छूटा हुआ। खुला हुआ। मुक्तपत्राव्य-शा पुं० [सं०] तालीश । DO