पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१९९

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HO स० स० Do HO म० मुखवल्लभ मुसातिय मुखवल्लभ-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] १ वह जो खाने मे अच्छा लगे। मुखशोधन-सज्ञा पुं० [ म० ] १ वह पदार्थ जिसके खाने से मुह स्वादिष्ट । २ अनार का पेड | शुद्ध होता है । २. दालचीनी । ३ तज | मुखवस्मिका-सहा स्त्री० [ ] मुखावरण । कपडे का एक टुकडा मुखशोधनः-- वि० चरपरा । जो मुंह पर रखा जाता है। बुरका । मुखशोधी-सज्ञा पुं॰ [ सं० मुखशोधिन् ] १ मुह को शुद्ध करनेवाला मुखवाचिका-सज्ञा स्त्री० [सं०] ब्राह्मणी या पाढा नाम की लता। पदार्थ । जंबीरी नीबू । अवष्ठा। मुखशोष --सशा पु० [ ] १ तृपा । प्यास । २ प्यास व गरमी मुखवाद्य-सज्ञा पु० [सं०] १ मुंह से वम् वम् शब्द करना। से मुह सूखना। (शिवपूजन मे)। २ मुह से फूंककर वजाया जानेवाला मुखश्री-सशा स्त्री० [सं० ] मुख की शोभा । मुखछवि । मुख बाजा । जैसे, शख, शहनाई श्रादि । की काति [को०] । मुखवास-सज्ञा पुं० [ ] १ गधतृण । २ तरबूज की लता । ३. मुखसदस-सज्ञा पुं० [ स० मुखसन्दस ] संडसी। र्जदूरी [को०] । एला, लौंग आदि मुंह की वायु को मुगधित करनेवाली चीजें । मुखसभव-सञ्ज्ञा पु० [ म० मुखसम्भव ] १ भगवान् के मुख से मुखवासन । ४ श्वास । उ०-जिसकी मुदर छबि ऊपा उत्पन्न, ब्राह्मण । २ पुष्करमूल । पुहकरमूल । है, मलयानिल मुखवास, जलधिमन, उस स्वरूप को तू भी अपनी मृदुवाहो मे लिपटा ले रमा अग मे प्रेम पराग। वीणा, मुखसिंचन मत्र--सज्ञा पुं० [ म० मुखसिञ्चन मन्त्र ] एक प्रकार का मत्र जिससे जल फूककर उस प्रादमी के मुह पर छींटे दिए पृ०, १२। जाने हैं जिसके पेट में किसी प्रकार का विप उतर जाता है। मुखवासन-सज्ञा पुं० [ स० ] अनेक प्रकार की मुगधित प्रोपधियो आदि को मिलाकर बनाया हुआ वह चूर्ण जिममे मुंह की मुखसुख-सज्ञा पु० [ म० ] शब्द के उच्चारण का सौंदर्य । उच्चारण दुर्गध दूर होती है और उसमे सुवास पाती है । सौंदर्य । उञ्चारण की सरलता [को०)। मुखवासिनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [ ] सरस्वती। मुखसुर--सज्ञा पुं॰ [ स०] १ ताही । २ अधरामृत (को॰) । मुखविपुला- सज्ञा मी० [ ] आर्या छद का एक भेद । मुखसूची-सज्ञा स्त्री० ] अमडे का वृक्ष । पाम्रातक । मुखविलुठिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० वि० मुखविलुण्ठिका ] बकरी [को॰] । मुखस्थ [सं०] मुख मे स्थित | जो जवानी याद हो । कठस्थ । मुखविष्ठा - सज्ञा स्त्री० [सं० ] तेलचट या सनकिरवा नाम बरजवान। उ० मुखस्य याद करते तथा पढते पढाते चले का कीडा। पाए।-कबीर म०, पृ. २२ । मुखवैदल-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का कीडा मुखस्राव-सचा पु० [स०] १ थूक । लार । २ वालको का एक जिसके काटने से वायुजन्य पीडा होती है । रोग जिसमे उनके मुह से बहुत अधिक लार बहती है। कहते मुखवैरस्य-सज्ञा पुं० [सं०] मुह की विरसता। मुख की कडवाहट । है, कफ से दूपित स्तन पीने से यह रोग होता है । मुंह मे कडवापन या कटु स्वाद होना (को०] । मुखहास - (शा पुं० [स० ] मुखशोभा। मुखविकास । मुखव्यंग-सञ्ज्ञा पु० [ स० मुखव्यंग्य] मुह पर पडनेवाले छोटे मुखाकृति । मुखाकृति-सज्ञा स्त्री० [सं०] मुख का प्राकार । चेहरा (को०] । विशेष-वैद्यक के अनुसार अधिक क्रोध या परिश्रम करने के मुखागर-वि० [स० मुखाग्र] २० 'मुसान' । उ०-कहेहु कारण वायु और पित्त के मिल जाने से ये दाग होते हैं। इनसे मुखागर मूढ मन मम सदेस उदार ।-मानस, ५१५२ । कोई कष्ट तो नही होता, पर मुस की शोभा विगह जाती है। मुखाग्नि-सज्ञा स्त्री० [स०] १. जगल की प्राग । दावानल । २ संस्कृत मुखव्यादान-सञ्ज्ञा पुं० [स०] मुह का वाना । जंभाई । जृ भा [को०] । एव प्रतिष्ठापित अग्नि । यज्ञाग्नि । हवनाग्नि (को०)। ३. मुखशफ-सज्ञा पुं० [ स० ] वह जो कटु वचन कहता हो । मुखर । ब्राह्मण (फो०)। ४ एक प्रकार के वैताल जो मुह से अग्नि मुखशाला-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० ] अलिंद । ज्योढी। देहली । द्वार- फेकते हैं (को०)। ५ मृत व्यक्ति को चिता पर रखकर पहले प्रकोष्ठ (को०] । उसके मुह मे आग लगाने की क्रिया । मुखान-सझा पु० [सं०] १ अोठ। २. किसी पदार्थ का अगला मुखशुद्धि-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] १ मजन या दातून आदि की सहायता से मुह साफ करना । २ भोजन के उपरात पान, सुपारी आदि मुखान- वि० जो जवानी याद हो। कठस्थ । वरजवान । जैसे,- खाकर मुह शुद्ध करना । ३ वस्तु जिससे मुखशुद्धि की जाय । उसे सारी गीता मुखाग्र है । मुखशुद्धि के उपयोग में प्रानेवाला द्रव्य (को॰) । मुखातव-वि० [अ० मुखातय ] मुखातिव । मुखशृग-मज्ञा पु० [ स० मुखशृङ्ग ] गैंडा । खड्ग । गहक [को०] । मुखातिव वि० [फा० मुखातिब ] १ जिससे बात की जाय । जिससे मुखशेप-सज्ञा पुं॰ [ स०] राह का एक नाम [को॰] । कुछ कहा जाय। संबोधित । २ बात करनेवाला । सबोवन मुखशोथ-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] मुह की सूजन । करनेवाला। प्रसन छोटे दाग। भाग।