पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२१२

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HO HO FO मुबारक-वि०॥ अ० अ० मुयस्सर-वि० [ मुलग ३६७१ मुरकना मुबलग-वि० [अ० मुव्लग] १ भेजा हुआ । प्रेपित । २ खरा । जो मुमुक्षुता-सज्ञा स्त्री 1 मुमुक्ष का भाव या धर्म। खोटा न हो [को॰] । मुमुख-वि० [ स० मुमुक्षु ] दे० 'मुमुक्षु ।' उ०-जैसे आदि मुबलिग' - सज्ञा पुं० [अ०] १ धन की मख्या । रकम । २ मात्रा । पुरुप वह कोई । मुमुखन भजत मुन्यो हम सोई । नद० ० मुवलिग-वि० दे० भेजनेवाला । २ दे० 'मुबलग' । पृ० ३२०॥ विशेष--इस शब्द का प्रयोग प्राय. रुपए के साथ किया जाता मुमुचान-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १. वह जो मुक्त हो गया हो। बह है। जैसे, मुदलिग दस रुपए, जिसका अर्थ होता है भेजनेवाला जिमका माक्ष हो गया हो। २. मेघ । बादल । खरे रुपए भेज रहा है। मुनुषिपु-सज्ञा पु० [ ] मूमनेवाला । चोर । तस्कर को०] । मुबादिला -सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० मुबादलह, मुबादिल ह ] बदला । पलटा। मुमूर्षा [-~संज्ञा स्री० [सं०] मृत्यु की अभिलापा मरने की इच्छा। एवज । अदल बदल | यादान प्रदान । मुमपु. -वि० [ ] जो मरने के समोप हो। जो मर रहा हो, ] १ जिसके कारण बरकत हो । २ शुभ । अासन्नमृत्यु । उ०-प्राकर काल रूप रावण ने उन मुमूर्ष के मगलप्रद । मगलमय । नेक। अच्छा। उ०-माज यह फह निकट कहा ।-साकेत, पृ० ३८८ । का दरवार मुवारक होए ।-भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ] दे० 'मयस्सर'। ५४२ । ३ भाग्यशील । खुशकिस्मत (को०) । मुरगिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० मुरङ्गिका ] मूर्वा । मुबारकवाद-सशा पुं० [अ० मुबारक + फा० बाद ] कोई शुभ वात मुरडा-सज्ञा स्त्री॰ [ स० मुरहा ] भारत के पश्चिमोत्तर दिशा को होन पर कहना कि 'मुबारक हो । वधाइ । एक नगरी (को०। क्रि० प्र०-देना ।-पाना ।-मिलना। मुरडा--- सज्ञा पुं० [-श०] १. भूने हुए गरमागरम गेहूं मे गुड मिलाकर मुबारकवादी-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० मुबारक + फा० वादी ] १. बनाया हुअा लड्डू । गुडवानी। उ०-पुनि मवाने श्राए 'मुवारक' कहन की क्रिया । बधाई। २ वे गीत आदि जो वसांधे। दूध दही के मुरडा बांधे। जायसी न०, पृ० १२४ । शुभ अवसरो पर बधाई देने के लिये गाए जाय । २. पानी निकालकर पिंडाकार बंधा दही या छेना का मीठा क्रि० प्र०-देना |~पाना ।-मिलना। और नमकीन खाद्यपदार्थ । उ०-अउर दही के मुरंडा वांवे । श्री संधान बहु भाँतिन साधे ।—जायसी (शब्द॰) । मुवारकी- सज्ञा स्त्री० [अ० मुबारक + ई ] दे॰ 'मुबारकबादी' । मुहा०~-मुरडा करना = (१) गठरी सा बना देना। समेटकर मुवालिगा- सज्ञा पुं० [अ० मुबालिगह ] बहुत बढ़ाकर कही हुई लड्डू सा कर देना । (२) भून डालना। (३) वहुत मारना वात । लवी चोडी बात । अत्युक्ति । पीटना । (४) मोह लेना। मुग्ध कर लेना। आशिक बना मुवाशरत-सज्ञा श्री० [अ० ] सहवास । सभोग । रतिक्रीडा [को०)। लेना । मुरडा बांधना = दही या छेने को पानी निथारने के मुबाह-वि० [अ० ] विहित । जायज [को०] । लिये कपड़े में बांधकर लटकाना या दबाना । मुबाहिसा-सज्ञा पु० [अ० मुवाहसह, मुबाहिसह ] किसी विषय के मुरडा-वि० सूखा हुआ । शुष्क । निर्णय के लिये होनेवाला विवाद । बहस । मुहा० - मुरता होना = (१) सूखकर कांटा हो जाना । जैसे,- [अ० मुन्तलह ] १ ग्ररत । पकडा हुआ। २. फंमा चार दिन की मेहनत मे मुरहा हो गए। (२) मुग्ध होना। हुधा । ३ मुग्ध । प्रासक्त [को०] | मोहित होना। मुन्तिला-वि० [अ० मुक्तिलह ] मुसीवत या सकट आदि मे फंसा मुरदला-सज्ञा सी० [ स० मुरन्दला ] नर्मदा नदी का एक नाम । हुमा । मुरदा- सज्ञा पुं० [दश०] ० 'मुरडा'। मुवी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० उर्वी ] पृथ्वी । धरित्री। उ०-नथ्थह मुरड़ा-सशा पु० [देश॰] दे० 'मुरडा'। मुन्वी बीर वर, वल वकम घट घाइ-पृ० रा०, २५॥६०७ । मुर-सझा पुं० [सं०] १. वेष्टन । वेठन । २. एक दैत्य जिसे विष्णु मुमकिन-वि० [ अ.] जो हो सकता हो । सभव । ने मारा था और जिसे मारने के कारण उनका नाम 'मुरारि' मुमतहिन-सज्ञा पुं० [अ० ] इम्तहान लेनेवाला । परीक्षा लेनेवाला। पडा । उ०—मधु कैटभ मधन, मुर भीम केशी भिदन, कस कुल परीक्षक। काल अनुसान हारी।- सूर (शब्द॰) । मुमानित, मुमानियत-सा मी० [अ० ] निषेध । प्रतिपेघ । मुर'-अव्य० फिर । दोबारा । मनाही । रोक । मुरई-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [दश०] दे॰ 'मूली' । मुमुक्षा-सज्ञा स्त्री॰ [सं० ] मुक्ति की इच्छा । मोक्ष की अभिलापा । मुरक-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० मुरफना } मुरकने की क्रिया या भाव । मुमुक्षु'-वि० [सं० ] मुक्ति पाने का इच्छुक । मोक्ष का अभिलापी। मुरकना-क्रि० अ० [हिं० मुइना] १. लचककर किमी ओर जो मुक्ति की कामना करता हो। झुकना । २. फिरना। घूमना। ३. लौटना । वापस होना। मुमुक्षु' सज्ञा पुं० सन्यासी। फिर जाना। ४. किसी अग का झटके आदि कारण किसी मुन्तला-वि०