पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२१५

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मुरब्बा ३६७४ मुरहाँ भुज वरावर हो । २ किमी अ क को उसी अ क मे गुणन करने मुरलीधर- ज्ञा पुं० [ मे० ] मुरली धारण करनेवाले, श्रीकृष्ण । ने प्राप्त फल । वर्ग। उ.-गिरिधर व्रजवर मुरलीधर धरनीधर पीतावरधर मुकुटधर मुरब्बा-वि० उसी प्रक से गुणन द्वारा प्राप्त । वर्गीकृत । जैसे, गोपवर उर्गवर शखधर शारगधर चकवर गदाधर रम धरें मुरन्बा गज। अघर मुधाधर । —सूर (शब्द॰) । मुरब्बी-मज्ञा पु० [अ०] १. पालन करनेवाला। २ रक्षक । मुरलीमनोहर-मज्ञा पुं० [ सं० ] श्रीकृष्ण का एक नाम । आत्रयदाता ३ सहायक | मददगार । मुरलीवाला-सञ्ज्ञा पुं० [ मै० मुरलो + हिं० वाला (प्रत्य॰)] १ मुरमर्दन -सज्ञा पुं० [सं०] विष्णु या श्रीकृष्ण । मुरारि । श्रीकृष्ण । २ वह जिसके पाम मुरली मुरमुरा--मज्ञा पु० [ अनु० ] १ भुने मक्के या ज्वार को ठुएँ । एक मुरवा-सशा पुं० [ देश०] १ एडी के ऊपर की हड्डी के चारो घोर प्रकार का भुना हुअा चावल जो अदर मे पोला होता है। का घेरा । पैर का गिट्टा । उ०-(क) एडिन चढि गुलुफन चढो फरवी । लाई। मुरवन वचो दवाइ । सो चित चिकने जघन चढि तितहिं परो मुरमुराना---क्रि० स० [ मुरमुर से अनु० ] १. ऐंठन खाकर टूट विछिलाइ । -रामसहाय (शब्द॰) । (ख) लखि प्रभु , पाये जाना। चूर चूर हो जाना। चुरमुर हो जाना। २ कडी या पाउँ पसारा। परसि वही मुरवन तक धारा।-विश्राम खरी चीज का टूटने पर शब्द करना । (शब्द॰) । (ग) रह्यो ढोठ ढारस गहै समहर गयौ न सूर । मुरयो न मन मुरवान चुभि भी चूरन चपि चूर ।-विहारी (शब्द॰) । मुररिपु---सा पु० [ स० ] मुर नामक दैत्य को मारनेवाले, विष्णु । २ एक प्रकार की कपाम जो ३ ४ वर्ष तक फनती है। मुरारि । उ० - मूर मुररिपु रग रगे सखि सहित गोपाल । मूर (शब्द०)। मुरवा ---सज्ञा पुं० [सं० मयूर ] दे॰ 'मोर' । मुररिया -सक्षा खी० [हिं० सुङना, मुरना या मरोडना दे० 'मुरौं' । मुरवी-सज्ञा स्त्री० म० मौर्वी ] धनुप की डोरी। प्रत्यचा । उ०-मिभुवननाथ जो भजन लागे श्याम मुररिया दीना । चिल्ला । उ० -- वान चढावन का कहा करि मुरवी टकार । चाँद सूर्य दुइ गोडा कीन्हो माझ दीप किय तीना |--कबीर हरत दूर ही से विधन मनहु चाप हुकार ।-शकुतला, पृ० ४३ (शब्द०)। मुरवैरी-सक्षा पु० [सं० मुरवैरिन् ] श्रीकृष्ण । मुरारी । मुरल-सज्ञा पुं० [सं०] १ प्राचीन काल का एक प्रकार का बाजा जिसपर चमडा मढा होता था। २ एक प्रकार की मछली । मुरव्वत-सज्ञा स्त्री० [अ० ] दे॰ 'मुरोवत' । मुरला-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] १ नर्मदा नदी। २ केरल देश की काली मुशिद - सज्ञा पुं० [अ० ] १ गुरु । पथप्रदर्शक । २ पूज्य । ३ धूर्त । चालाक । वचक । उस्ताद । (व्यग्य) । नाम की नदी। मुरलिका-तशा स्त्री० [सं० ] मुरली । वसी। बाँसुरी। उ०—(क) मुरपडल-संज्ञा पुं० [ सं० मुरखण्डन ] मुर दानव का खडन करने अंखियनि की सुधि भूलि गई। श्याम अयर मृदु मुनत मुरलिका वाले- विष्णु। चकृत नारि भई । मूर (शब्द॰) । (ख) उर पर पदिक कुमुम मुरसिद-संज्ञा पुं० [अ० मुशिद ] दे० 'मुरशिद' । उ०-फल में वनमाला अंग धुकधुकी विराज। चित्रित बाहु पौंचिना पौ, फूल फूल मे फल है, रोसन नबी का नूरा है। पलटूदास नजर हाथ मुरलिका छाज ।-सूर (शब्द०)। (ग) वन वन गाय नजराना, पाया मुरसिद पूरा है ।-पलटू०, भा० ३, चरावत डोलत कांच कमरिया राज। लकुटी हाथ गरे [जमाला पृ०८०। अधर मुरलिका वाजे ।- सूर (शब्द०)। मुरसुत - सज्ञा पुं० [ स० ] मुर दैत्य का पुत्र वत्सासुर । उ०—मुरसुत मुरलिया - -सज्ञा स्त्री० [स० मुलिका ] मुरली। वशी। उ० हो प्रमोल सो जाई। गृह वसिष्ठ के देत्या गाई । -गोपाल खडी एक पग तप कियो सहि बहु भाँति दवागि। ताही (शब्द०)। पुन्यन मुरालया रहत स्याम मुख लागि ।-सुकवि (शब्द )। मुरस्सा-वि० [अ० मुरस्सह ] जडा हुआ। जडाऊ । जटित । उ०- विशेष-हिंदी मे शब्द के अत मे जाडे हुए श्रा, वा, या आदि मुरस्मा के खुश एक पिंजरे मे छोड । रख्या ल्या के सूमा के अक्षर कुछ विशिष्टता सूचित करते हैं, जैसे, 'हरवा' का अर्थ नजदीक जोड |-दक्खिनी०, पृ० ८० । होगा-'हारविशेप' इसी प्रकार मुरलिया का अर्थ भी 'मुरली- मुरस्साकार-सञ्ज्ञा पुं० [अ० मुरस्सह् + फ़ा० कार ] गहनो में नग या विशेप' होगा। मणि जडनेवाला । जडिया । मुरली-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ बांसुरी नाम का प्रसिद्ध बाजा जो मुरस्साकारी-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० मुरस्सह, + फा० कारी ] गहनो मे मुंह से फूंककर वजाया जाता है । वशी। नग ग्रादि जड़ने का काम । विशेप-इस अर्थ मे इस शब्द के साथ 'वाला' या उसका कोई मुरस्सानिगार-सज्ञा पुं० [अ० मुरस्सह् + फा० निगार ] खुशखत । पर्याय लगाने से 'श्रीकृष्ण' का अर्थ निकलता है। सुदर अक्षर लिखनेवाला। २ एक प्रकार का चावल जो प्रामाम मे होता है। मुरहाँ-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० मूंड+हाँ (प्रत्य॰) ]मस्तक । सिर । - ।