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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२२२

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सुष्टिदेश ३६८१ मुसदिका स० को जब उहाँ नाश भयो मुष्टिका युद्ध दोऊ प्रचारी ।—सूर मुसकराना-क्रि० प० [ स० स्मप+कृ] ऐसी आकृति बनाना (शन्द०) । २ मुठ्ठी। जिससे जान पडे कि हंसना चाहते हैं। ऐसी कम हंसी जिसमे मुष्टिदेश-मशा पुं० [ स० ] धनुष का मध्य भाग जो मुट्ठी मे पकडा दांत न निकले, न शब्द हो। वहुत ही मद रूप से हंसना । जाता है [को०)। होठो मे मना । मृदु हास । मद हास । मुष्टिद्युत-सज्ञा पुं० [ स० ] एक प्रकार द्यूत जिसमे मुठ्ठी के भीतर मुसकराहट-सज्ञा स्त्री० [हिं० मुसकराना + अाहट (प्रत्य॰)] मुसकराने की वस्तु का नाम वा उमकी सम विपम सख्या पूछो जाती है। की क्रिया या भाव । मधुर या बहुत थोडी हंसी । मद हास । मुष्टिपात-सज्ञा पु० [सं०] मुक्केबाजी । घूसेवाजी । मुसका-सज्ञा पुं० [ देश० ] रस्सी की बनो हुई एक प्रकार की छोटी मुष्टिवध-संशा पुं० [ स० मुष्टिवन्ध ] मुट्टी बाँधना या मुठ्ठी मे जाली जो पशुप्रो, विशेषत बैलो के मुंह पर इसलिये बांध दी करना [को०) । जाती है, जिसमे वे खलिहानो या खेतो मे काम करते समय कुछ खा न सके। जाला। मुष्टिमेय-वि० [ स०] १ मुट्ठी के वरावर | मुट्ठी भर । २ थोडा । मुष्टियुद्ध-सज्ञा पु० [ म० ] वह लडाई जिममे केवल मुक्को से प्रहार मुसकान-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] दे० 'मुसकराहट' । किया जाय । घूसेबाजी। मुसकाना-क्रि० अ० [हिं०] दे० 'मुसकराना' । मुष्टियोग-एज्ञा पु० [ ] १ हठयोग को कुछ क्रियाएं जो शरीर मुसकानि-मज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'मुसकराहट'। उ०कवि की रक्षा करने, वन वढाने और रोग दूर करनेवाली मानी मतिराम मुख सुबरन रूप रहि, रूपखानि मुसकानि सोभा जाती है । २ किसी बात का कोई छोटा और सहज उपाय । सरसाइ के।-मति० प्र०, पृ० २६१ । मुष्टीमुष्टि -सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] परस्पर मुक्का मुक्की घूसेवाजी [को०)। मुसकिराना-क्रि० अ० [हिं० ] दे० 'मुसकराना' । मुष्टक-सज्ञा पु० [ स० ] मरसो। मुसकिराहट-सहा स्री० [हिं० दे० 'मुसकराहट'। मुसडा-वि० [हिं० मुस्टड या मुस्टडा ] धिंगरा । ठलुआ । जो बिना मुसकुराना-क्रि० अ० [हिं० ] दे० 'मुसकराना' । उ०-आँखो पर काम किए हुए बैठे बैठे खाय । उ०—यह मुटमरदी है कि एक जी लुभानेवाली झलक नाचने लगी, पहले सुडौल गोरा गोरा अधा मांगे, श्री आँखोवाले मुसडे बैठे खाएं। रंगभूमि, भा० २, मुखडा देख पहा, फिर धुंधरारे बार, फिर बडी बडी प्रांखें, फिर मीठी मुसकिराहट, फिर ऊंचा चौडा माथा । ठेठ०, पृ० २६ । पृ०५६६ । मुसवी-संज्ञा पुं० [ पुर्त० मोजांविक ] मुसवी या मुसम्मी नामक एक मुसकुराहट-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] दे० 'मुसकराहट' । फल । उ०-ये मब मुसवियाँ और सतरे केवल तुम्हारे ही लिये मुसक्यान-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] दे॰ 'मुसकराहट' । मैं लाई हूँ। जिप्सी, पृ० ४४२ । मुसक्याना-क्रि० अ० [हिं० ] दे० 'मुसकराना' । विशेप-पुर्तगाल के मोजाविक नामक स्थान से आने के कारण मुसक्यानि. -मञ्चा स्त्री॰ [हिं० ] दे० 'मुसकराहट' । उ०—ता दिन इस फल को, जो एक प्रकार का रसदार मीठा नीबू है, यहाँ तै मन ही मन मैं मतिराम पिय मुसक्यानि सुधा सी। -मति० उसी के वजन पर मुसवी या मुसम्मी कहा जाने लगा। ग्र०, पृ० ३४२ । मुसको'—सज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] भुजा। वाह । मुश्क । उ०—वेदी मुसखोरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० मूस (= चूहा ) + खोरी (= खाना) ] जराव लिलाट दिए गहि डोरी दोऊ पटिया पहिराई। ब्रह्म भने खेत में चूहो की अधिकता होना । मुमहरी । रिपु जानि ग्रहयो रवि की मुन जनु राहु चढाई ।-अकवरी०, मुसजर-सज्ञा पुं० [अ० मुशज्जा ] एक प्रकार का छपा कपडा । पृ० ३४६। उ०—बादला दारयाई नौरग साई जरकस काई झिलमिल है। मुसक-सञ्ज्ञा पु० [फा० मुश्क ] दे० 'मुश्क' । ताफता कलदर वाफत्तावदर मुसजर सुदर गिलमिल है। -सूदन मुसकना-क्रि० य० [हिं०] दे॰ 'मुमकाना' । उ०—(क) (शब्द०)। मुमकत मुसकत स्याम सुहाए ।-नद० ग्र०, पृ० ३०८ । (ख) मुसटी-सज्ञा सी० [हिं० मूस (म० मूपिका = चूहा) + टी (प्रत्य॰)] सुत के करम निरखि नंदरानी। मुमकी जनम सुफलता चु हया। मानी ।-नद० ग्र०, पृ० २४६ । मुसदी -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [दश०] मिठाई बनाने का साँचा। मुसफनिज-सज्ञा स्त्री० [हिं० मुस्कराना ] मुस्कराहट । उ०- मुसद्दस-सगा पुं० [अ० ] १ वह क्षेत्र जिसमे छह भुज हो। छह, (क) सकन मुगध अग भरि भोरी पिय निरतत मुमकनि मुखमोरी पहलूवाला । २ एक प्रकार का पद्यवध । उ०-उर्दू मे 'हाली' का मुमद्दस बहुत प्रसिद्ध है ।-कविता कौ०, भा० ४, पृ० २८ । परिरभन रसरोरी। हरिदास (शब्द॰) । (ख) अटके नैन माधुरी मुसकनि अमृत वचन स्रवनन को भावत । सूर विशेप-मुसद्दस छह, मिमरो या तीन शेरो का होता है। इसमे (शब्द०)। पहले के चार मिसरो के तुक एक समान होते हैं और शेष अतिम दो मिसरो के तुक अलग होते हैं। मुसकनिया -सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'मुसकान' । उ०—मन मोहन को तुनरी वोलन मुनि मन हरत सुहँस मुसकनियाँ । —सूर मुहिका-वि० [अ० मुसद्दिका ] परताल किया हुआ । तसदीक किया (शब्द०)। हुआ । जांचा हुआ। 1