पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२४५

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AO स० मृज्य-वि० स० स० रोगी। स० भूगित ४००४ भृणाली मृगित-वि० [स०] १ अन्वेपित । जिसका पीछा किया गया हो। मृच्छकटिक-सज्ञा पु० [ ] १ संस्कृत का एक बहुप्रसिद्ध नाटक २ याचित। जिसके रचयिता शूद्रक कहे जाते है । २ मिट्टी का रथ । मृगिनो-बष्ण ली. [ स० मृग ] हरिणी । उ०—(क) ज्यों मृज-सज्ञा पुं० [ स०] मुरज नाम का बाजा । मृगिनी वृक मुड के वासा । त्यो ये अधमुतन के बासा ।- मृजा सज्ञा पुं० [ ] मार्जन । लल्लूलाल (शब्द०)। (ख) मृग मृगिनो द्रुम बन सारस खग मृजित-वि० [सं०] मार्जित । जिसका मार्जन किया गया हो [को०] । काहू नही बताया री । -मूर (शब्द०)। (ग) वाँसुरी को सं०] मार्जन के योग्य | मार्जनीय । शब्द सुनिक वधिक की मृगिनी भई । —सूर (शब्द०)। मृजाद+-सञ्चा स्त्री॰ [ सं० मर्यादा ] इज्जत । मान । उ०-सवही मृगी-सज्ञा की० [स०] १ मृग नामक वन्य पशु की मादा । हरिणी । मजाद देखी सुनी जदपि बडाई हू महित ।-प्रज० ग्र०, हिरनी। उ.-मनहु मृगी मृग दे.ख दियासे । - -तुलसी पृ० ७१। (शब्द०)। २ एक दणवृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे एक रगण (sis ) हाता है । जमे,-री प्रिया । मान तू । मान ना । ठान मृडकण-सज्ञा पुं० [ स० मृडड कण ] बालक । शिशु [को०] । तू । इस "प्रिय वृत्त' भी कहते है। ३ कश्यप ऋप की क्रोध मृड़-सज्ञा पुं॰ [ स० मृढ ] [ स्त्री० मृडानी ] शिव । महादेव । उ०- वशा नाम्नी पत्नी से उत्पन्न दस कन्यानो मे से एक, जिससे मदन मथन मृड अतरजामी। प्राता होहु जगत के स्वामी । मृगो की उत्पत्ति हुई है और जा पुलह ऋपि की पत्नी थी। -नद०, ग्र०, पृ० १५४ । पीले रंग की एक प्रकार की कौडा जिसका पेट सफेद होता मृडन- सज्ञा पु० [ स० ] अनुकूलता । अनुग्रह । अनुकपा (को०) । है । ५ अपस्मार नामक रोग । मृगी रोग । ६ कस्तूरी । मृड़ा-सञ्ज्ञा त्री० [स० मृढा ] दुर्गा । पार्वती। उ०-मृडा चरिका मृगीदृश् , मृगलाचन - सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] मृगी या हिरनी के समान मृडी अविका भवा भवानी सोय !-नददास (शब्द॰) । नत्रावाला स्त्री [को०)। मृडानी-मचा स्त्री मृडानी ] दुर्गा । भवानी । पार्वती । उ०- मृगीपति 1-सज्ञा पुं० [ ] श्रीकृष्ण । अदेवी नृदेवीन को होहु रानी। क्रै सेव वानी मघीनी मृडानो । मृगीवत-वि० [ स० मृगी+हिं० वत] अपस्मार का -केशव (शब्द०)। मृगी राग स ग्रस्त । उ०- घनसारहिं दिखि मुरझति ऐसे । मृडी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ ] दुर्गा (को०] । मृगीवत जल दरस जैसे। - नद० ग्र०, पृ० १४४ । मृडीक-सञ्ज्ञा पुं० [ ] १ हिरन । २ शिव का एक नाम । ३ मृगेद्र-सञ्ज्ञा पुं० [० मृगेन्द्र ] १ सिंह । २ वाघ । चौता (को॰) । मछली (को०)। ३ सिंह राशि (को०)। मृणाल-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ कमल का डठन जिसमे फून लगा मृगेद्रचटक-सञ्ज्ञा पु० [ स० मृगेन्द्रचटक ] बाज पक्षी। रहता है। कमलनाल । उ०—(क) तो शिव धनुप मृणाल कि मृगेद्राशी- सझा सी० [सं० मृगेन्द्राशी अडूमा । वासक्त । नाई। तोरहिं राम गणेश गासाई । —तुलसी (शब्द॰) । सो मृगेद्रासन-मज्ञा पु० [ स० मृगेन्द्रासन ] पत्थर । प्रस्तर [को०] | (ख) पाई जु चलि गोपाल घर व्रजवाल विशाल मृणात मृगेद्रास्य-मज्ञा पु० [ सं० ] शिव । वाही ।-पद्माकर (शब्द०)। २ कमल की जड़। मुरार | भसीड । ३ उशीर । खम । मृगेक्षणा–सज्ञा स्त्री॰ [ सं०] १ दे० 'मृगीदृश्' । २ श्वेत इद्रायन । श्वेत इद्रवारुनी [को०] । यौ०-मृणालकठ। मृणालभग = कमलनाल के ततु या रेशे का मृगक्षिणी-वि० ली. [ स० मृग+ ईक्षण ] हिरन के से नेग्रोवाली । टुकडा। मृणालसूत्र = कमलनाल का ततु । उ०-मृगेक्षिण | इनमे खग अज्ञान ।—गुजन, पृ० ४० । मृणालकठ-सशा पुं० [ स० मृणाल+कण्ठ ] एक प्रकार का जल- मृगेल-सज्ञा स्त्री॰ [दरा०] एक प्रकार की मछली जो सयुकप्रात, वगाल पजाब तथा दक्षिण की नदियों में पाई जाती है। मृणालिका-सज्ञा पुं॰ [ सै० ] कमल की डठी। कमलनाल | उ०- भौरिन ज्यों भवत रहत वन वीथिकान हसिनि ज्या मृदुल विशेष—इसकी प्राखें सुनहरी होती हैं। यह डेढ हाथ के लगभग मृणालिका चहति है। केशव (शब्द०)। लबी होती है और तौल मे नौ या दम सेर होती है । मृणालिनी-संज्ञा स्त्री० [स०] १ कमलिनी। २ वह स्थान जहाँ मृगेश-सज्ञा पुं० [सं० ] सिंह। कमल हो । ३ कमल का समूह । मृगेप्ट-सरा पु० [स०] एक प्रकार की चमेली । मोगरा [को०] । मृगेर्वारु-ता पुं० [स०] श्वेतेंद्रवारुणी । सफेद इद्रायन । मृणाली-सचा सी० [ स० ] कमल का डठल । कमलनाल । उ०- (क) धरे एक वेणो मिली मल सारो। मृणाली मनो पक मृगोत्तम-खया पुं० [सं०] मृगशिरा नक्षत्र । सो काढ़ि हारी। केशव (शब्द॰) । (ख) मैलते सहित मानो मृग्य -वि० [ स०] १ जिमका अन्वेपण या पीछा किया जाय । २ कचन की लता लोनी, पक लपटानी ज्यो मृणाली दरसाई है। जो निश्चित न हो [को०] । -रघुराज (शब्द०)। स० पक्षी ।