पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२४७

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GO HO मृतांड ४००६ मृत्युभृत्य मृताड-सज्ञा पुं० [ मं० मृताण्ड ] मूर्य [को॰] । मृत्य-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] मृत्यु ] दे॰ 'मृत्यु' । उ० -क्यो न जाइ मृतांडा-सी० [स० मृताण्डा] वह स्त्री जिसका बच्चा मर गया हो जीवत घरह, कहा करोगे मृत्य। -पृ० रा०, २५७५६ । या मर जाता हो [को०] । यौ०-मृत्यलोक = मृत्युलोक । उ०-मृत्यलोक कत्र भोग तजि मृतान @T-सज्ञा पु० [सं० मृत ? ] मुर्दा । भूत प्रेत । कव्र । उ०- स्वर्ग लोक मन लाय ।-५० रामो, पृ०८१ । काहू बुतान को पूजत है पशु, काहू मृतान को पूजन घायौ। मृत्यु जय-सज्ञा पु० [सं० मृत्युञ्जय ] १ वह जिसने मृत्यु को जीत घट०, पृ० ३३६ । लिया हो। २ शिव का एक रूप । ३ शिव का एक मत्र मृतामद-संज्ञा पुं॰ [ मं० ] तुत्य । तूतिया । जिसके विधिपूर्वक जपने से अकालमृत्यु टल जाती है । मृतालक-सज्ञा पुं॰ [ स० ] १ अरहर | २. गोपीचदन । मृत्युजयरस-मज्ञा ॰ [ सं० मृत्युञ्जयरस ] ज्वर के लिये उपयोगी मृताशन--वि० [ ] ६० से १०० वर्ष की अवस्या का [को०] । एक रसौपध। मृताशौच-सञ्ज्ञा पु० [स० ] वह प्रशौच (अपवित्रता) जो किसी विशेष—पारा एक माशा, गधक दो मागे, सोहागा चार माशे, आत्मीय, नवधा, गुरु, पडोसी आदि के मरने पर लगता है विप पाठ माशे, धतूरे का बीज सोलह माशे तथा सोठ, मिर्च और जिसमे शुद्ध होने तक ब्रह्मचर्य के साथ देवकर्म तथा गृहकर्म और पीपल दस दम माशे सात सात रत्ती, इन सबको धतूरे की से अलग रहना पडना है। जड के रस में पीसकर माशे माशे भर की गोलियां बना लें, मृति-सज्ञा स्त्री॰ [ ] मरण । मृत्यु। और जैमा ज्वर हो, उसके अनुसार अनुमान के साथ सेवन करे । यौ०-मृतिरेखा = मृत्युसूचक रेखा । मृतिका-सशा स्त्री॰ [ स० मृत्तिका ] मिट्टी । खाक । उ०—कचन मृत्यु-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] १ शरीर से जीवात्मा का वियोग । प्राण छूटना । मरण । मौन । २ यमराज । ३ ग्यारह रुद्रो मे से को मृतिका करि मानत | कामिनि काष्ठशिला पहिचानत । - तुलसी (शब्द०)। एक । ४ विष्णु । ५ ब्रह्मा । ६ माया । ७ कलि । ८ फलित ज्योतिष के अनुसार जन्मकुडली का आठवां स्थान । ६ मृता-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० मृत्यु ] मृत्यु । मौत । उ०—जब प्रावै मृतु कामदेव । १० एक साममत्र । ११ वौद्ध देवता पद्मपाणि श्रव, जीव कहं जाई पराई।–घरम० श०, पृ० ७८ । के एक अनुचर । १२ ससार (को॰) । मृत्कर-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] कुलाल । कुम्हार (को॰) । मृत्युकर' '- वि० [ स०] मरणकारक । मृत्कला-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स०] मिट्टी की कला। उ०—आसव पान मवधी एक दृश्य मृत्कला मे आया है ।- सपूर्ण० अभि० ग्र०, मृत्युकर-सञ्ज्ञा पुं० किसी की मृत्यु होने पर उसकी सपत्ति के ऊपर लगनेवाला कर [को०] । पृ० ३०४। मृत्युकाल-सञ्ज्ञा पुं० ] मौत का दण (को॰] । मृत्कास्य-सचा पुं० [सं० ] मिट्टी का पात्र या बरतन (को॰) । मृत्युतूर्य-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] एक प्रकार का वाजा जा दाहक्रिया मृत्किरा-सज्ञा स्त्री॰ [ सं०] भूफीट । घुघुरिया [को०] । या अत्येप्टि क्रिया के समय वजाया जाता है (को०] । मृत्ताल, मृत्तालक-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं०] द० 'पाढकी' (को०)। मृत्तिका-मज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ मिट्टी । खाक । उ०—जथा हट ततु मृत्युदूत-मचा पुं॰ [सं० ] मृत्यु की खबर लानेवाला [को०] । घट मृत्तिका सर्प लग दारु करि कनक कटकागदादी । —तुलसी मृत्युनाशक-सज्ञा ० [सं० ] पारा। (शब्द०) । २ अरहर । मृत्युपा-सज्ञा पुं० [ स० ] शिव । मृत्तिकालवण-सज्ञा पुं० [सं० ] मिट्टी का लोना या नोना। (पुराने मृत्युपाश-सज्ञा पुं० [ ] मृत्यु या यम का फदा (को०] । घरो की मिट्टी की दीवारो पर सीड होने से एक प्रकार का मृत्युपुष्प-सज्ञा पुं० [सं०] १ ईख । गन्ना। २ केला । नमक लग जाता है।) बांस (को०)। मृत्तिकावती-सज्ञा झी० [ स० ] नर्मदा के किनारे को एक प्राचीन मृत्युप्राय-वि० [सं०] जो मरना ही चाहता हो । जो मरने ही वाला नगरी । (महाभारत)। हो । आसन्न मृत्यु । उ०-एक ओर पथ के कृष्णकाय, ककाल- मृत्पच-सज्ञा पुं॰ [ सै० ] कुम्हार । कुलाल । शेप नर मृत्युप्राय । - अपरा, पृ० १४६ । मृत्पट्टक-सशा पुं० [सं०] मिट्टी का पटरा । उ०—मृत्पट्टको मे मृत्युफल-सज्ञा पुं॰ [ स० ] १ केला । २ महाकाल नाम की लता । अनेक ऐसे दृश्य हैं जिनका निश्चित रूप से पहचानना काठन मृत्युफला, मृत्युफली -सचा त्री० [सं० ] केला (को०] । है। -मपूरणा० अनि० ग्र०, पृ० ३०३ । मृत्युवधु-सा पुं० [सं० मृत्युबन्तु यम | मृत्पात्र-सशा पुं० [स० ] मिट्टी का बरतन। मृत्युवाज-एज्ञा पुं० [सं० ] वास । मृत्पिड-सज्ञा पुं॰ [ सं० मृत्पिण्ड ] मिट्टी का लोदा या ढेला । मृत्युभीत-वि० [सं०] मौत से डरनेवाला (को०] । यौ०-मृपिढद्धिः मूर्स। मृत्युभत्य-सज्ञा पुं० [सं०] रोग [को०] । co ३