TO स० व्रज। स० जाती है)। मृत्युयोग ४००७ मृदुभाषी मृत्युयोग-सञ्ज्ञा पुं० [ ] ग्रह नक्षत्रो का मृत्युकारक योग (को०] । मृदगी-सशा स्त्री० [सं० मृदङ्गी ] तरोई । तोरई। मृत्युराज-सं० पु०[ ] मृत्यु के देवता-यम [को०] । मृदव-सज्ञा पुं० [सं० ] नाटक की भाषा मे गुण के साथ दोष के मृत्युरूपी-सञ्चा पुं० [ स० मृत्युरूपिन् ] १ यमदूत । २ वर्णमाला वैपम्य का प्रदर्शन ( नाटयशास्त्र )। का 'श' अक्षर । मृदा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० ] मृत्तिका । मिट्टी। मृत्युलोक-सज्ञा पु० [स० ] १ यमलोक । २ मर्त्यलोक । मृदाकर-सञ्ज्ञा पु० [सं०] मृत्युवचन-सञ्ज्ञा पुं० [ स० मृत्युवञ्चन ] १ शिव का एक नाम । मृदित-वि० [ सं० ] मर्दित को०] । २ काला कौमा [को०] । मृदिनी- सज्ञा स्त्री० [सं०] १. अच्छी मिट्टी । २. गोपीचंदन । मृत्युवृत्ति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] राज्य की रक्षा मे युद्ध मे मरणोपरात मृदु'- वि० [ ] [ वि० स्त्री० मृद्वी] १ जो छूने मे कडा न हो। मिलनेवाली सहायता । उ०-चदेल लेख मे 'मृत्युवृत्ति' नामक कोमल । मुलायम । नरम । २ जो सुनने मे कर्कश या अप्रिय शब्द मिलता है, जिसका तात्पर्य यह था कि मुसलमानो से युद्ध न हो। जैसे, मृदु वचन । ३ सुकुमार । नाजुक । ४ जो तीन करने मे मरे व्यक्ति के परिवार को राजा की ओर से, उसकी या वेगयुक्त न हो। धीमा । म द । जैसे, मृदु स्वर, मृदु गति । बहादुरी के स्मरण मे मासिक धन ( वृत्ति ) मिलता था। -पूर्व० म० भ०, पृ० १०५ ।। मृदु-सञ्ज्ञा स्त्री० १. घृतकुमारी। घीकुमार । २ सफेद जातिपुष्प । जूही नामक फूल का पौवा । मृत्युसूति-मज्ञा स्त्री॰ [ स० ] केकडे की मादा ( जो अडे देते ही मर मृदुकंटक-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० मृदुफण्ट ] कटसरया । मृदुका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० मृद्वीका ] दाख । अगूर । उ०—स्वादी मृत्स-वि० [सं०] चिपचिपा। मृदुका मधुरसा काल मेखला होइ । अनेकार्थ०, पृ० ३७। मृत्सा सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स्त्री० ] दे० 'मृत्स्ना' । मृदुकृष्णायस-सज्ञा पुं॰ [सं० ] सीसा धातु [को०] । मृत्स्न-सञ्ज्ञा पु० [सं० ] धूल [को०] । मृदुकोष्ठ-वि० [सं० ] जिसे हलके जुलाब या विरेचन से दस्त आ मृत्स्ना- सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ भूमि | मिट्टी । २ अच्छी भूमि या जाय [को०] । मिट्टी । ३ एक प्रकार की सुवासित मिट्टी। ५ स्फटिक मिट्टी मृदुखुर-सज्ञा पु० [ सं० ] घोडो के खुर का एक रोग । की पट्टी । ५ छेनी । टाँकी [को॰] । मृदुगण-सज्ञा पुं० [सं०] नक्षत्रो का एक गण जिसमे चित्रा, अनुराधा मृथाg -क्रि० वि० १ दे० 'वृथा' । २ दे० 'मृषा' । मृगशिरा और रेवती, ये चार नक्षत्र हैं । मृद्-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] मृत्तिका । मिट्टी। मृदुगमन-वि॰ [ स०] [वि॰ स्त्री० मृदुगमना ] म दगामी। धीमी विशेष—इस शब्द का अधिकतर व्यवहार समस्त पद बनाने मे चालवाला। होता है। मृदुगमना-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] हसी । हसिनी [को०] । मृदकुर-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० मृदङ्कुर ] हारीत पक्षी [को॰] । मृदुचर्मी-सञ्ज्ञा पुं० [ सं० मृदुचर्मिन् ] भोजपत्र । मृदग-सञ्ज्ञा पु० [सं० मृदङ्ग] १ एक प्रकार का बाजा जो ढोलक मृदुच्छद-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] १ भोजपत्र का पेड । २ पीलू वृक्ष । से कुछ लवा होता है। तवले की तरह इसके दोनो मुहहे ३ लाल लजालू। चमडे से मढे जाते हैं। इसका ढांचा पक्की मिट्टी का होता है, मृदुता - सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ मुलायमियत । २. इससे यह मृदग कहलाता है। उ०-क) वाजहिं ताल मृदग धीमापन | म दता। अनूपा। सोइ रव मधुर मुनहु सुरभूपा।-तुलसी (शब्द०)। (ख) काहू बीन गहा कर काहू नाद मृदग । सव दिन अनंद मृदुतीक्ष्ण-सज्ञा पुं॰ [ सं० ] कृत्तिका और विशाखा नक्षत्र । बघावा रहस कूद इक सग । —जायसी (शब्द॰) । मृदुताल-सज्ञा पुं० [ सं०] श्रीताल का वृक्ष (को०) । यौ०-मृदगकेतु = धर्मराज युधिष्ठिर । मृदंगफल । मृदगफलिनी । मृदुत्वक्-सज्ञा पुं० [सं० मृदुत्वच् ] भोजपत्र । मृदगवादक = मृदग बजानेवाला। मृदुदर्भ-सज्ञा पुं॰ [ सं० ] सफेद कुश | २ वास । ३ निनाद । ध्वनि (को०) । मृदुन्नक-सक्षा पुं० [ स० ] स्वर्ण । सोना [को॰] । मृदंगफल-सा पु० [सं० मृदङ्गफल ] कटहल । पनस । मृदुपवक- सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] बेंत । नरकुल [को०] । मृदगफलिनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० मृदगफलिनी ] तरोई । तोरई । मृदुपुष्प-सञ्चा पुं० [सं०] शिरीष वृच । सिरिस । मृदगी'- वि० [स० मृदङ्ग+ ई (प्रत्य॰)] मृदग वजानेवाला या मृदुफल-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं०] १ मधु नारिकेल । नारियल । २ विककत वजाने का पेशा करनेवाला। उ०-कहाँ है रबावी मृदगी का वृक्ष । सितारी। कहाँ हैं गवैए कहाँ नृत्यकारी।-भारतेंदु ग्र०, मृदुभापी-वि० [ सं० मृदुभापिन् ] [ वि० सी० मृभापिणी ] मधुर भा॰ २, पृ० ७०२ । या मीठा बोलनेवाला। ५-३० कोमलता।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२४८
दिखावट