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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२५०

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0 मैंडराना ४९०६ मेखली- मैंडगना-क्रि० प्र० [सं० मण्डल ] दे० 'मंडराना'। उ० या हिलना बंद कर देना । (२) कोई ऐसी बात. बोल देना राजपखि तेहि पर मेहराही । सहस कोस तिन्ह के परछाही । जिससे किसी का होता हुआ काम न हो। भाजी मारना । जायसी (शब्द०)। (३) चलते हुए काम मे रुकावट डालना । मेंडराना-क्रि० म० घेरकर गोल चक्कर बनाना। मेडरा बनाना। २ कील । कांटा । ३ लकडी की फट्टो जो किसी छेद मे बैठाई मेंडी सज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] ऊंची जगह । महल । प्रासाद । उ०-ऊँची वस्तु को ढीली होने से रोकने के लिये इधर उधर पेसी मेंही कौन काज की वज वसिवो भलो छाज को। जाय। पच्चड । ४ घोडे का लंगडापन जो नाल जडते समय छीता, पृ०८०। किसी कील के ऊपर तक जाने से होता है। मेंढक-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० मण्डूक ] [ स्त्री० मैदको ] दे० 'मेढक' । मेखडा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० मेखला ] बाँम की वह फट्टी जिसे डले या मेंह-मशा पु० [ मं० मेघ, प्रा० मेह ] वर्पा । झडी। झावे के मुंह पर गोल घेरा बनाकर बाँध देते हैं। मेंहदो-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० मेन्धिका ] दे० 'मेहंदी। मेखल-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० मेखला ] १ करधनी । किंकिणी। उ०- कटि मेखल वर हारग्रीव दइ रुचिर वाहु भूषन पहिराए । मेज-सज्ञा पुं॰ [म० मेघ, प्रा० मेह] मेघ । बादल । उ-नंनद भवज —तुलसी (शब्द०)।२ वह वस्तु जो किसी दूसरी वस्तु के दोऊ भेंटऐ रे जैसे सामन को ए मेउ । -पोद्दार अभि० ग्र०, मध्य भाग मे उसे चारो ओर से घेरे हो। वि० दे० 'मेखला' । पृ० ६३३1 मेखल-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] दे० 'मेकल' [को॰] । मेक'-सज्ञा पुं० [ ] अज । छाग । बकरी। मेखला-सज्ञा स्त्री० [स०] १ वहे वस्तु जो किमी दूमरी वस्तु के मेक-सज्ञा पु० [ स० एक, दश० ] दे० 'एक' । उ०-मेक सपत मध्य भाग मे उसे चारो ओर से घेरे हुए पडी हो। २ सिकडी समत्त मैं, पैतीस जसराज । गौ हरिघाम जिहान तज, हिंदुमथान या माला के आकार का एक गहना जो कमर को घेरकर जिहाज । रा०६०, पृ० १७ । पहना जाता है । करधनी । तागडी। किंकिणी।। मेकदारा-सा पुं० [अ० मिकदार ] परिमाण । मात्रा । अदाज । पर्या०-सप्तकी । काची । रशना । रसना । कक्षा । कलाप । मेफल-सञ्चा पुं० [सं०] विंध्य पर्वत का एक भाग जो रीवा राज्य ३ कमर मे लपेटकर पहनने का सूत या डोरी। करधनी। जैसे, के अतर्गत है और जिसमे अमरकटक है । इसी पर्वत से नर्मदा मु जमेखला। ४ कोई मडलाकार वस्तु । गोल घेरा। मडल । नदी निकली है। महरा। ५ पेटी या कमरबद जिसमे तलवार बांधी जाती विशेष-यह मेखला के प्रकार का है, इसी से इसे मेखल भी है। ६ तलवार की मूठ (को०) । ७ डहे मूसल आदि के छोर कहते हैं । पर या अौजारो के मूठ पर लगा हुआ लोहे श्रादि का घेर- मेकलकन्यका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ] नर्मदा नदी । दार वद । सामी । साम । ७ पर्वत का मध्यभाग। नर्मदा नदी। १० पृश्निपणी । ११ होमकु ड के ऊपर चारो ओर मंकलसुता सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] नर्मदा नदी। उ०—-मेकल सुता बना हुआ मिट्टी का घेरा । १२. यज्ञवेष्टन सूत्र । १३ कपडे गोदावरि धन्या-मानस, । का टुकहा जो साधु लोग गले मे डाले रहते है। कफनी। मेकलाद्रि-सचा पुं० [ ] मेकल पर्वत । अलफा । १४ घोडे का तग । जीन कसने का तस्मा (को०)। यौ०-मेकल्लाद्रिजा = नर्मदा नदी । मेखलापद-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] श्रोणि । नितब । चूतड [को॰] । मेक्षण-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० ] एक प्रकार का यज्ञपात्र । मेखलाल-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] शिव [को०) । विशेष—यह चम्मच या करछी के आकार का और चार अगुल मेखलित-सद्धा स्त्री० [ स० ] मेखलायुक्त। चारो ओर से मेखला चौडा तथा प्रागे की ओर निकला हुआ होता है। की तरह घेरनेवाला। उ०-साथ ही इन सबके केंद्रीय मेरु मेख'-तज्ञा पुं॰ [ स० मेप ] दे॰ 'मप' । को मेखलित करनेवाला इलावृत्त भी एक स्वतत्र वर्ष बन गया मेख -सच्चा स्रो० [फा० मेख ] जमीन में गाडने के लिये एक पार है।-सपूर्णा० अभि ग्र० पृ० १७० । । नुकीली गढा हुई लकडा। खूटा। खूटी। उ०-उन्हे यो मेखली'-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ -स० मेखला या मेखलित ] १ एक प्रकार का हतज्ञान सा देख, ठाकती सी छाती पर मेख । -साकेत०, पहनावा जिसगले मे डालने से पेट और पीठ ढंकी रहती है पृ०४८ । २ कील । कटिया। और दोनो हाथ खुले रहते हैं। यह देखने मे तिकोना होता है क्रि० प्र०-उखाडना ।-गाडमा ।-ठोकना ।-पारना । मौर ऊपर चौडा तथा तुकीला होता है । इसे देवमूर्तियो को मुहा०—मेख ठोंकना = (१) हाथ परं मे कील ठोककर कही रामलीला, रासलीला आदि मे पहनाते हैं। २ करधनी । कटि- स्थर कर देना। बहुत कठोर दंड देना। ( इस प्रकार का बघ । उ०—कवहुंक अपर खिरनही भावत कबहुं मेखलो उदर दड पहले प्रचलित था)। (२) हराना । दवाना । जेर करना । समानी।—सूर (शब्द०)। तोप के मुह में मेख ठोंकना = तोप का मुंह घद करके उसे मेखली-सचा पुं० [ सं० मेखलिन् ] १. शिव । २. बटु । ब्रह्मचारी । निकम्मा कर देना। मेख मारना = (१) कील ठोककर चलना मेखली-वि० मेखला धारण करनेवाला [को०] ! O - 1