पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२६२

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धादि। मेहरी ४०२१ मेटर मेहरी-सज्ञा स्त्री० [सं० मेदना ] १ ली। औरत । २ पत्नी। मैं-गया [अ० ] गाय । सहित । जने, गारोमामान, मंसन जोरू । उ०—-मेहरिन्ह मेंदुर मेना, चंदन पेवरा देह । ---जायसी (शब्द०)। मैक्श-गा पुं० [ फा०] शराब पीनेवाला । मद्यप । मेहल-- सण पुं० [देश॰] मझोले प्राकार का एक प्रकार का वृक्ष । मैखाना-II पुं० [फा० मसानह ] राम पीने या न्या। मपु- विशेप-यह वृक्ष हिमालय में काश्मीर से भूटान तक ८००० फुट गाला। 30-4 हमन ता मीचा तास उन साली की ऊंचाई तक पाया जाता है। इसको पत्तियां पांच छह मैसाना ।-भारतेंदु 7 ०, भा० १, पृ० ५६३ । अगुल लबी होती है और पुरानी होने पर काली हो जाती है। जाडे मे इसके फल पकते हैं जो साए जाते हैं। इसकी लव मैका।-सा गु० [ म० मातृक ] दे० 'मायका'। २०-(5) नेवने की छटियां और हुछ की निगालियाँ बनती हैं और पत्तियां गइलि ननादया मैके मासु । दुहिनि नार सरिया प्रा। पशुयो के लिये चारे के काम मे पाती है । भानु । --रहीम (शब्द॰) । (स) त मला ते हा पाए । तुम टिा जननी जनक पठाए ।-रपुराण (दि०)। मेहाउरल, मेहावरिल-सज्ञा पु० [२०] ६० 'महावर' । मैगनेट- महा पुं० [अ० ] चुरफ पन्थर । मेहीं-वि० [हिं० महीन, मिहीन > मेही] महीन । वारीक । यो०-- मेही मेहीं = महीन महीन । अत्यत वारीक । उ०- मेही मैगनाकार्टा-सा पुं० [अं॰] वह राजयीय प्राज्ञापन जिगमे राजा की पोर ने प्रजाजनो को कोई स्वत्व या अधिकार देने की बात मेही चुकवा पिसावो तो पिय के लगावो हो ।--धरन०, हो । शाही फरमान । ( अगजी ने वैयक्तिर और गजनीतिक पृ०४८। स्वाधीनता का यह अधिकारपत्र वादशाह जान से नन् १२१५ महु-संज्ञा पुं॰ [ म० मेघ ] दे० 'मेह' । ई० मे प्राप्त किया था।) मेंद - सज्ञा पुं० [ स० भन्द ] एक दानव का नाम जिसे कृष्ण ने मारा था [को०)। मैगल-मशा ५० [सं० मदकरत ] मत्त हाथी । मस्त हाथी । उ०- [0-मेदहा = श्रीकृष्ण का एक नाम । (क) माधव जू मन सब ही बाध पोच । ग्रात उनमन निराश मैं-सर्व० [ स० मया ] सर्वनाम उत्तम पुरप मे कर्ता का रूप । मंगल चिंतारहित प्रसोच ।-नूर (गन्द०)। (प) ऐति प्रति पैर मध्य मत्त मंगल सी, साय कारि लै बल सी लचति लचाक स्वय । खुद । लक। -भुननेश (शब्द०)। (ग) भक्ति द्वार है मांकरा राई में--पव्य[ सं० मय ] दे० 'म' । दसवें भाय । मन तो मंगल है गयो फंसे होय गमाय । -कवीर में--प्रव्य० [ स० मध्ये, पु० हिं० महिं ] अधिकरण कारक का (शब्द०)। चिह्न । दे० 'मैं'। उ०--विहरत व दा विपिन मैं गोपिन संग मैगल'–वि० मत्त । मस्त । ( हाथी के लिये ) । गोपाल । बिक्रम हुदै सदा बसौ इहि छवि सों नदलाल - मैच ~मधा पुं० [प्र० मैच] १ फिमी प्रकार के गेंद के पिल की प्रयया रा० सप्तक, पृ० ३४३ । इसी प्रकार के पौर किसी गेल फी वाजी । २ उपयुक्त जाय। मैड़ा-सा स्त्री॰ [देश॰] दे० 'मड़' । उ०-नददास प्रभुनिधि न एकति रीवा बारू की मैंड |--नद० प्र०, पृ० ३८६ । मैच-सभा सी० दियासलाई । माचिरा । मैंडका-संग पुं० [सं० मण्डूक ] दे० 'मेढक' । उ०--तुम्हारी मैंडक यो०-मैनवास = दियामनाई की डिविया । की सी टर टर उसके कान तक न पहुंचे इसी में तुम्हारे लिये मैजल-गा मी० [अ० मजित ] १ उतनी दूरी जितना कोई अच्छा है ।---श्रीनिवास ग०, पृ० १०८ । पुरुष एप दिन भर पलार तं करे। मजिन । २ मॅडा-सर्व० [ पजा० ] दे० 'मेरा' । उ०-नद महर दा कुंवर यात्रा । उ०-ग्रीष्म ऋतु पुनि मैगन भारी। पद भरा कन्हैया मैंडा जीवन जानी है।-धनानद, पृ० १७७ । फलका जनु वारी ।-विश्राम (जय०) । मेंटल-राया पुं० [हिं० मैनफल ) मनफल । मदनफल । मैजिक - Tरा पुं० [अ० ] यह प्रभुन गेत या गन्य जो पानी महल-सा पु० [अ० महल ] उ.-भगति करण करो प्रारभ, दृष्टि और युद्ध को धोखा देकर पिया जाय । नार राल । मैंहल उठ जब घरि होइ थभा ।-रामानद०, पृ० ५३ । मैजिक लालटेन - गा पी० [म. गांजफ हेटनं ] एक प्रकार की मै@-प्रव्य [सं० मय ] दे० 'मय' । उ०--प्रम गोकर सावरि तालटेन जिसके पानी पर बने हुप चित्र इस प्रकार रंगे देह लस मनो राशि महातम तारक में ।-तुलमी (गन्द०)। जाते है कि उनकी परमाई मानने के फाहे पर पानी है, प्रो- ग-पग पी० फा०] मदिरा। शरा। 30-फर्ज को पीते थे ये चित्र दर्शनोपी उन परदे पर दिशादी। मै सेकिन गमको ये कि हो । रग लाएगी हमारी फागमस्ती मैटर-सा पुं० [१०] १ 51गज -निगाहप्राप, पियजा एक दिन ।-वविता को०, भा०४, पृ. ४७७ । 'कपोर' करने के लिये दिवा वाय। यह मिसापीरी यो०--मकदा= दे० 'नाना' । मेरश । मकशी% ३० पम्ती'। 'कसोज' फरने के लिये दी जाय। अंग- फ। (7 भनाना । मेपरस्त = शरापोर। परापरही = गय. पण यानन श मंटर पोर ना (पोनेटर )। कोर सोरी। मदिरापान की सत । ।ाए हुए .प या पानी में ये tr। मफर1