स० मेह ४०२० मेहरिया विशेष—इसमे मंजरी के रूप में सफेद फूल लगते हैं जिनमे भीनी करनेवाला। मेजवान । मेहमाननवाज = ( १ ) मेहमानो की भीनी सुगध होती है। फल गोल मिर्च की तरह के होते हैं और खातिर करनेवाला। (२) खिलान पिलाने का शौकीन । गुच्छो मे लगते हैं। इसकी पत्ती को पीसकर चढाने से लाल रग मेहमाननवाजी = अतिथिसत्कार । आता है, इसी मे स्त्रियां इसे हाथ पैर मे लगाती हैं । बगीचे मेहमानदारी-सञ्ज्ञा स्त्री० [फा०] प्रातिथ्य । अतिथिसत्कार । अादि के किनारे पर भी लोग शोभा के लिये एक पक्ति मे पहुनाई। इसकी टट्टी लगाते हैं। मेहमानी--सज्ञा स्त्री० [फा० मेहमान + ई (प्रत्य॰)] १ आतिथ्य । पर्या०-नखरज | कोकदता । रागगर्भा । मेंधिका । नखरजनी । सत्कार । पहुनाई। उ०-मेहमानो करि हरहु नम कहा मुदित मुहा०—क्या पैर में मेहँदी लगी है ? = क्या पैर काम मे नही ला रिपिराज । - मानस,२। सकते जो उठकर नही पाते ? मेहँदी रचना = मेहंदी का अच्छा मुहा०-मेहमानी फरना = खूब गत वनाना। मारना पीटना । रग आना । जैसे,—उसके पैर में मेहंदी खूब रचती है। दड देना । (व्यग्य)। उ०—नद महरि की कानि करति हो मेहंदी याँधना= मेहंदी की पत्तियों पीसकर लगाना। मेहँदी नतरु करति मेहमानी । —सूर (शब्द॰) । रचना = मेहंदी लगाना । मेहंदी लगाना = मेहंदी की पत्तियां १२ मेहमान बनकर रहने का भाव । जैसे,—वह मेहमानी पीसकर हथेली या तलुए मे लगाना । करने गए हैं। मेह'-सपा पुं० [ स०] १ प्रस्राव । मूत्र । २ प्रमेह रोग । ३ मेहर-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० मेहना या देश०] पत्नी । बीवी । स्त्री। मेप । मेढा । ४ अज । छाग । बकरा (को०)। मेहर-सझा स्त्री॰ [फा० मेह्र ] मेहरबानी । कृपा । अनुग्रह । दया। मेह-सञ्ज्ञा पुं० [ मेघ, प्रा० मेह ] १ मेघ । बादल । २ वर्षा । उ०—नेक नजर मेहर मीरा वदा मैं तेरा। दादू दरवार तेरे, झडी । मेह । उ०-छाई पियराई और विथा हियराई जाने, खूब साहिब येरा।-दादू० बानी, पृ०६०४ । जके थके बैन नैन निदरत मेह को। -घनानद, पृ० ७७ । मेहरबाँ-वि० [फा० मेहबां ] दे० 'मेहरबान' । उ०—गिराया है नि० प्र०-याना ।-पड़ना ।-वरसना । जमी होकर छुटाया पासमा होकर । निकाला दुएमने जां, मेह-वि० [ फा० मिह, मेह ] बड़ा । बुजुर्ग । सरदार [को०] । प्रो वुलाया मेहरवां होकर ।-वेला, पृ० ६२ । मेहध्नी-सज्ञा ली। ] हरिद्रा । हल्दी [को०] । मेहरबान-वि० [फा० मेहर + वान ] कृपालु । दयालु । अनुग्रह फरनेवाला। मेहतर-सचा पु० फा० मेहतर, तुल० स० महत्तर ] १ बुजुर्ग । विशेप-बहो के मवोधन के लिये अथवा किसी के प्रति भादर सबसे बडा । जैसे, सरदार, शाहजादा, मालिक, हाकिम, भमीर दिखलान के लिये भा इस शब्द का प्रयोग होता है । आदि । २ [ स्त्री० मेहतरानी ] नीच मुसलमान जाति जो झाडू देने, गदगी उठाने प्रादि का काम करती है। मुसलमान मेहरबानगी-सच्चा स्त्री० [फा० ] दे० 'मेहरवानो' । भगो । हलालखोर । मेहरबानी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा० ] दया । कृपा । अनुग्रह । मेहन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ शिश्न । लिंग । २ मूत्र । मूत । ३ मूतना क्रि० प्र०—करना ।—दिखलाना।—होना । (को०) । ४. मुष्क वृक्ष । मोरवा (को॰) । मेहरा'-सज्ञा पुं० [हिं० मेहरी] १ स्त्रिया की सी चेष्टावाला । स्त्री मेहनत-सशा स्त्री० [अ० ] मिहनत । श्रम। प्रयास । कष्ट। प्रकृतिवाला। जनखा। २ स्त्रियो मे रहनेवाला । ३ जुलाहो तकलीफ। की चरखी का घेरा। यौ०-मेहनत मजदूरी, मेहनत मजूरी = शारीरिक श्रम का काम । मेहरा -सञ्ज्ञा पुं० [मेहरचद (मूलपुरुप)] खप्रियो को एक जाति । मुहा०—मेहनत ठिकाने लगना = श्रम का सफल होना। परिश्रम मेहरा-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० मेघ, प्रा० मेह + हिं० रा (प्रत्य॰)] दे॰ सफल होना। 'मेह' । उ०-उघारे उघरि अब बरसन लाग्यो अचरज को यह क्रि०प्र०-फरना ।-पडना |-लेना।—होना । मेहरा ।घनानंद, पृ० ३३६ । मेहनतकश-वि० [अ० ] मेहनत करनेवाला । परिश्रमी। उ० मेहराव-सज्ञा स्त्री० [अ० ] द्वार के ऊपर अघमडलाकार बनाया हुआ है इतनी सी चाह हमारी पूरी कर मेरे ईश्वर । एकाकी हूँ भाग । दरवाज के ऊपर का गोल किया हुआ हिस्सा । मेहनतकश हूं, और किराए का है घर ।-मिट्टी०, पृ० ८७ । विशेप - मेहराव बनाने की रीति प्राचीन हिंदू शिल्प मे प्रचलित मेहनताना-~सज्ञा पुं० [अ० मेहनत + फा० पाना ] किसी काम की न थी। विदेशियो, विशेषत मुसलमानो के द्वारा ही, इस देश मजदूरी । परिश्रम का मूल्य । जैसे, वकील का मेहनताना । मे इसका प्रचार हुआ है। मेहनती-वि० [अ० मेहनत + ई (प्रत्य० ) ] मेहनत करनेवाला। मेहरावदार-वि० [अ० मेहराब + फ़ा० दार ] कार की ओर गोल परिश्रमी। कटा हुआ ( दरवाजा )। मेहना-सञ्चा खो० [सं० ] महिला । स्त्री। मेहरारू-सच्चा स्त्री॰ [ म० मेहना अथवा महिला+रू ] औरत । मेहमान-सशा पुं० [फा० मेहमाँ, मेहमान ] अतिथि । पाहुना । स्त्री। महिला। यौ०-मेहमानखाना = अतिथिशाला । मेहमानदार = यातिथ्य मेहरिया - -सहा मी० [ हिं० मेहर+इया (प्रत्य॰)] दे० 'मेहरी' । -
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