पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२६४

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मैदानबाजी ४०२३ मैनफल 1 1 प्रकार का और कोई प्रतियोगिता या प्रतिद्वद्विता का काम हो। (शब्द॰) । (ग) श्याम रंग रंगे रंगीले नैन । घोए छुटत नही यह उ० -(क) चहुं दिसि प्राव अलोपत भानू । अब यह गोय यही कैसेहु मिले पिपिल मैन । —सूर (शब्द०)। ३ राल मे मंदानू ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) श्री मनमोहन खेलत मिलाया हुआ मोम जिससे पीतल या तावे को मूर्ति बनानेवाले चौगान । द्वारावती कोट कचन मे रच्यो रुचिर मैदान । -सूर पहले उसका नमूना बनाते हैं और तब उस नमूने पर से उसका (शब्द०)। साँचा तैयार करते हैं। मुहा० -मैदान में श्राना = मुकावले पर पाना। प्रतियोगिता या मैन-सज्ञा पुं॰ [अं॰] मनुष्य । पुरुप । जैसे, पुलिस मैन । मशीन प्रतिद्व द्विता के लिये सामने माना। उ०-अग्ग माउ मैदान मन। ज्वान मरदुन मुष जोरहि । -पृ० रा०, ६४।६४० मैदान में मैन आफ वार-सज्ञा पुं० अं०] लहाऊ जहाज । युद्धपोत । उतरना = कुश्ती के लिये अखाडे मे आना। कार्यक्षेत्र लडाकू जहाज। पाना। मैदान साफ होना = मार्ग में कोई वाया आदि न मैनका-सज्ञा स्त्री० [सं० मेनका ] दे० 'मेनका' । उ०—-मैन कामिनी होता। मैदान मारना = प्रतियोगिता में जीतना । खेल, बाजी के मैनका हू के न रूप रीझे, मैं न काहू के सिखाएं प्रानो मन श्रादि मे जीतना। मान री।-मति० ग्र०, पृ० २६३ । ३ वह स्थान जहाँ लडाई हो । युद्धक्षेत्र । रणक्षेत्र । मैनकामिनी-संज्ञा सी० [ स० मदन, प्रा० मयणनी हिं० मैन + मुहा०-मैदान करना = लडना । युद्ध करना । उ०—जेहि पर कामिनी ] कामदेव की स्त्री। रति । उ०-मैन कामिनी के चढि करि मै मैदाना। जीतहुं सकल वीर बलवाना ।-विश्राम मैनकाहू के न रूप रीझे, मैं न काहू के सिखाए प्रानो मन मान (शब्द०)। मैदान छोडना = लडाई के स्थान से हट जाना । री। -मतिराम (शब्द०)। मैदान सदना = लडने या बलपरीक्षा के लिये दिन, स्थान नियत करना। मैदान मारना = विजय प्राप्त करना) मैदान मैनडेट-सज्ञा पुं० [अ० ] आदेश। हुक्म । जैसे,—फाग्रेस से ऐसा करने का मैनडेट मिला है। हाथ रखना = लडाई मे विजयी होना । जीतना । मैदान होना = मैनडेटरी-वि० [अं०] जिसमें आदेश हो। आदेशात्मक । जैसे- युद्ध होना। काग्रेस का वह प्रस्ताव मैनडेटरी है। ४ किसी पदार्थ का विस्तार । ५ रल प्रादि का विस्तार । मैनफरी-सञ्ज्ञा पुं० [ स० मदनफल ] दे० 'मैनफल' । जवाहिर की लबाई चौडाई । ( जोहरी )। मैनफल-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मदनफल, प्रा० मयणफल ] मझोले प्राकार मैदानवाजी-सच्चा स्त्री॰ [फा० मैदान + बाज़ी] लडाई । युद्ध । उ०- का एक प्रकार का झाडदार और कंटीला वृक्ष । हम दोनो की जिंदगी के आखिरी साल मैदानवाजी मे गुजरे और आज उसका यह अजाम हुआ। -काया०, पृ० ३३४ । विशेष- इस वृक्ष की छाल खाकी रंग की, लकड़ी सफेद अथवा हलके रग की, पत्त एक से दो इंच तक लवे और अडाकार मैदानी-वि० [फा०] १ मैदान से सबधित । मैदान का । उ०- तथा देखने मे चिडचिडे के पत्तो के समान, फूल पीलापन लिए ज्यो मैदानी रूख अकेला डोलिए रे ।-कवीर श०, पृ० १२६ । सफेद रग के पांच पखडियोवाले और दो या तीन एक साथ २ समतल । होते हैं। इसमे अखरोट की तरह के एक प्रकार के फल मैदानेजग-सञ्ज्ञा पुं० [फा० मैदान +ए+ जग ] लडाई का मैदान । लगते है जो पकने पर कुछ पीलापन लिए सफेद रग के होते युद्धक्षत्र । रणभूमि । उ०-जानिब औरत को मैदानेजग हैं। इसकी छाल और फल का व्यवहार प्रोपधि के रूप मे छोड |-कुकुर०, पृ० ४। होता है। मैदा लकड़ी-सज्ञा स्त्री० [सं० मेदा+हिं० लफड़ी ] एक प्रकार की २ इस वृक्ष का फल जिसमे दो दल होते हैं और जिसके वीज जडी जो औपध के काम मे पाती है। विहीदाने के समान चिपटे होते हैं। विशेप- यह सफेद रग की और बहुत मुलायम होती है। वैद्यक विशेष-इस फल का गूदा पीलापन लिए लाल रग का और स्वाद मे इसे मधुर, शीतल, भारी, धातुवधक, और पित्त, दाह, ज्वर कडु वा होता है। इस फल को प्राय मछुवे लोग पीसकर तथा खाँसी आदि को दूर करनेवाली माना है । पानी में डाल देते है, जिससे सब मछलियां एकत्र होकर एक ही मैन'-सञ्ज्ञा पुं० [स० मदन, प्रा० मयण, मइण] १ कामदेव । मदन । जगह पर आ जाती है और तव वे उन्हे सहज मे पकड लेते उ०—(क) जा संग जागे हो निसा जासे लागे नैन । जा पग है । यदि ये फल वर्षा ऋतु मे अन्न की राशि मे रख दिए जाय, गहि मति मैन भै मैन विवस सो मै न । -रामसहाय (शब्द॰) । तो उसमे कीडे नही लगते । वमन कराने के लिये मैनफल बहुत (स) मैन फिरगी को मनी छूटन लागी तोप ।-व्रजनिधि न०, अच्छा समझा जाता है । वैद्यक मे इमे मधुर, कडु वा, हलका, पृ० १६ । २ मोम । उ०--(क) मैन के दशन कुलिस के गरम, वमनकारक, रूखा, भेदक, चरपरा, तथा विद्रधि, जुकाम, मोदक कहत सुनत वौराई।- तुलसी (शब्द०) (ख) मैन वलित घाव, कफ, पानाह, सूजन, त्वचारोग, विपविकार, बवासीर और ज्वर का नाशक माना है। नव बसन सुदेश । भिदत नही जल ज्यो उपदेश ।-केशव 4-३२ 1