पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२६८

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80 वैष्णव धनु म० स० HO मोक्षदायिनी ४०२७ मोचयिता मोक्षदायिनी-वि० स्त्री० [ ] दे० 'मोक्षदात्री' (को०] । मोगी -सा स्रो॰ [रण०] राजपूताने की एक जाति का नाम । उ०- मोक्षदेव-सज्ञा पु० [सं०] चीनी यात्री ह्वेनसाग का भारतीय सरदारो को चाहिए कि वे चारो, डकना, योग्यिो, बागरियो, नाम को०] । मोगियो और वागियो को प्राश्रय न दें।-राज० इति०, पृ० १०६५। मोक्षद्वार-मज्ञा पुं० [ स० ] १ सूर्य । २ काशी तीर्थ । मोक्षधर्म-सज्ञा पुं० [ सं० ] महाभारत शातिपर्व का एक प्रण [को॰] । मोघ'-वि० [म० ] निष्फल । व्यर्थ । चूमनेवाला । उ० -पं यह की सायक । करहुँ न मोघ होन के लायक ।-रघुराज मोक्षपति-स्शा पुं० [ ] ताल के मुख्य माठ भेदो मे से एक । इममे १६ गुरु, ३२ लघु, और ६४ द्रुत मानाएं होती है । (शब्द०)। मोक्षपुरा-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] काची पुरी का एक नाम [को०) । मोघ'-गधा पुं० घेरा । बाड । वाटा [को॰] । मोक्ष विद्या-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ ] देदात शास्त्र। मोधकर्मा-वि० [ स० माघर्गन् ] निर्थक काम म लगा हुत्रा [को०] । मोक्षशास्त्र - सज्ञा पु० [ ] प्राध्यात्मविद्या। मोघपुष्पा [--मश स्त्री० [ ] वव्या त्री (को०] । मोक्षशिला-संज्ञा स्त्री० [सं०] जैन मतानुमार वह लोक जहाँ जैन मोघा- सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ पाटल का फूल । २ विटा (को॰] । धर्मावल वी साधु पुरुष मोक्ष का सुख भोगते है । स्वग । उ०- मोघिया-सशा सी० [देश॰] वह मोटी, मजबूत शीर अधिक चोटी नरिया जो खपरैली छाजन मे वडेरे पर मंगरा वाचने काम ज्यो घटनाश भए घट व्योम सुलान भयो पुनि है नभ मॉही। घाती है। स्यों मुनि मुक्ति जहाँ बपु छाडत सुदर मोक्षाशला कहुं काही ।- सुदर० ग्र०, भा० २, पृ० ६३२ । मोघोली-सशा पुं० [ स०] प्राचीर . परकोटा । मोक्षसाधन-सा पु० [सं०] जिससे मोक्ष प्राप्त हो । मोक्ष का माध्य-सशा पु० [स०] विफलता । प्रकृतकार्यता । नाकामयावी । उपाय वा साचन (को०] । मोच-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ सेमल का पेड। २ केला। २ पाडर मोक्षा-सज्ञा स्त्री० [सं० ] दे० 'मोक्षदा' । का पेड । ४ शोभाजन वृक्ष (को॰) । माक्षी-सशा स्त्री० [ स० मोक्षिन् ] १ मोक्ष पाने का इच्छुक । २. मोच-सभा सी० [सं० ] शरीर के किमी श्रग के जोड की नम का अपने स्थान से इधर उधर सिसक जाना। चोट या पाघात मुक्त (को०)। आदि के कारण जोड पर की नस का अपने स्थान से हट जाना मोक्ष्य-वि० [ 10 ] जो मोक्ष के योग्य हो । माक्ष का अधिकारी। ( इसमे वह स्थान मूज जाता है और उसमे बहुत पीडा होती मोखg - सज्ञा पु० [स० मोक्ष, प्रा० मोक्ख ] १ दे० 'मोक्ष'। है ) जैसे,—उनके पांव मे मोच आ गई है । मुक्ति । उ०- (क) मोहू दीजे मोख ज्या अनेक अधमन दियो। -विहारी (शब्द॰) । २ छुटकारा । बधनमुक्ति । उ०-रानी मोचक-मचा पु० [ म० ] १. छुडानेवाला । २ मेमल का पेड। ३ धर्म सार पुनि साजा । वदि माख जेहि पावहि राजा ।—जायसी केला। ४ मुक्ति । मोक्ष (को०)। ५ विषय वामना से मुक्त मन्यासी। ६ एक प्रकार का उपानह (को॰) । (शब्द०)। मोखा'-सा पु० [ स० मुख ] दीवार आदि मे बना हुआ छेद जिसके मोचन -सशा पु० [सं०] १. वचन या दे स छुडाना। छुटकारा द्वारा धूनां निकलता है और प्रकाश तथा वायु प्राती है। छोटी देना । मुक्त करना । २ रिहा करना । वधन आदि पालना । खिडका । झरोखा । उ०—(क) मोखा और झरोखा लखि छुडाना। ३ करना । हटाना। जम, मकटनाचन, पाप- लखि ग दोउ बरसत ।-व्यास (शब्द.)। (ख) जाली माचन, पिशाचमोचन । ४ रहित करना । ले लेना । जैसे, झरोखो मोखो से धूप की सुगध प्राय रही है ।-लल्लूलाल दमोचन । (शब्द०)। मोचना'-क्रि० स० [सं० मोचन ] १ छाडना। २. गिराना । मोखा-सशा पु० [स० मुष्क ] एक वृक्ष । दे० मुक' । बहाना । उ०—(क) सोच मति कर मति माच पानू विभाषण, मोगरा-सझा पु० [ स० मुद्गर ] १ एक प्रकार का बहुत बढिया कहे रघुनाथ मातमप भाप रका का।-रघुनाय (शद०)। और बडा वेला का पुष्प । उ०-मजुन मौलसिरी मागरा मधु- (स) सरसीरह लोचन भाचत नार चितं रघुनायक सीप प ल । मालती के गजरा गुहि रास।-(शब्द॰) । २ ३० 'मागरा' । —तुलसी (शब्द.)। ३ छुडाना। मुक्त करना। उ०—प्रव मोगल-सा पुं० [ तु० मुगल, फा० मुग़ल ] दे० 'मुगल' । तिनक वचन माहिने ।-सूर (शब्द॰) । मोगली-सा सी० [रश०] एक जगली वृक्ष जो गुजरात में अधिकता माचना'-संश पुं० [सं० मावन ] [ सो० मा वन! ] १. ताहारा से पाया जाता है और जिसकी छाल चमडा सिझाने के काम का वह औजार जनने व लाह क घाटे याट दुई उगत है। मे ग्राती है। २ हजामा का वह ग्रीजार जिससे वे वान उपास्त ह। मोगली'-वि० [फा० मुग़ल] मुगल सवधी । मुगलो का । उ०—काबुल मोचनी-सहा झी० [८० ] कंटकारो । भटकटया (को०। गए पिया मोर गाए बाल मोगली वानो । पाव भाव कहतं मार मोचयिता-वि० [सं० मोवयित ] माचन परवाना । युटकारा गइल, खटिया तर है पानी। दिलानवाला को०)।