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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२७१

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मोठस ४०३० 'मोति ऋतु के अंत या वर्षा के प्रारभ मे और कटाई खरीफ की मोडी- राज्ञा ग्यो? [हिं० मुना या 'रा०] १ गोट मा जीत नियन फसल के साथ जाडे के प्रारभ में होती है। यह बहुत ही की लिपि । २ दक्षिण भारत की एक लिपि जिनमे प्राय पराठी साधारण कोटि की भूमि मे भी बहुत अच्छी तरह होता है। मापा लिग्यी जाती।। और प्राय वाजरे के साथ बोया जाता है। अधिक वर्षा से विशेप-इन लिपि की उत्पत्ति के विषय में 73 गो पा रहना यह खराव हो जाता है। इसका फलियो मे जा दाने निकालने है हिमाद्रि पति ने गया जाने र साराष्ट्र देग हैं, उनकी दाल बनती है। यह दाल साधारण दालो की भांति में प्रचलित किया। शिशिपाजी ने पहले के प्रचार ग खाई जाती है, और मदाग्नि अथवा ज्वर में पथ्य की भाति को पाना चा। शिवाजी दाग गरीय नितिने भी दी जाती है। वैद्यक मे इमे गरम, कसली, मधुर, शीतन, सपन चीन नागरी लिपि यो चरा माय पिने योग्य मलरोधक, पथ्य, रचिनारी, हलकी, वादी, मिजनका, तया उनाने विचार शिवाजी के 'पिट निग' (मत्री, रिश्तेदा) रक्तपित्त, कफ, बार, गुदकील, वायुगोले, ज्वर, दाह और बालाजी गवाजी ने इमते पक्षाको मोड (CAT) क्षयरोग की नाशक माना है। इसकी जड मादक और विपनी फर एनिपि नंगार की। 1िो “TE' कहा है (२० होती है। भा० प्रा०नि०, पृ० १३---१३०)। मोठस-वि० [ म० /मृप>मष्ट (= जाने देना) ] मौन । नुप! मोटो-नि. वि० ["० सं० मन्टम् ? ] दर में। पिता से । उ.-मोठम के रघुनाथ रहौ बिनु मोठन कीन्हे ते जोवे गो उ.-कोग, मोटापापिराउ, गा रातापण वेग ।-टोना, भै है ।--रघुनाथ (शब्द०)। दू०४४३॥ मोद '-सा नी० [हिं० मुडना ] १ गम्ने प्रादि घूग जान गा मोढा- Y० [f०] १. २० मा' | गुरेरा । सादा | ना। स्थान । एक अोर फिर जाने का स्थान । वह स्थान ज· 7 वारना। उ०-पर मा माडे पर बैठनेवाली भोर निया किसा पोर को मुडा जाय । उ० - प्राज बड़े नाट अमुक मोर मे मागे मारी फिरनेवाली, रन जोन र सपा ने मुंगनी पर वेप बदले एक गरीब काले आदमी से बातें कर रहे थे।- है।-भाग्नेंदु ग्र०, भा० १, पृ. ३७७ । बालमुकुद गुप्त (शब्द०)। २ घुमाव या मुडने को किया । ३. घुमाव या मुडने का गाय । ५ कुछ दूर तक गई हुई वस्तु मोण-मज्ञा पुं० [सं०] १ गया फल । २. नुनीर । नगर । ३ में वह स्थान जहां से वह कोना या घुमाव डालती हुई दूगरी मपसी । ४ वांग या मोर ना ना हुगा टवरनदार टोकरा । और फिरी हो। माना। पिटारा । मोना। मोडg२ -सा पुं० [म० मुकुट, प्रा० मउर, हिं० मोड ] मौर। मोत :-रारा ग्री• [सं० मृत्यु] ५० 'मौन'। उ.- तेगा नीन माथा मे उ.-पाई ककरण सिर वधीयो मोड । प्रथम पयाडदूरग गजोरी मी वताई। जनो याम पानी फनपुर के मोर पाई।- चितोड । रासो, पृ० १२ । शियर०, पृ०७१। मोड़तोड़-सज्ञा पुं० [हिं० मोद + अनु० तोद ] माग मे पढनेवाला मोतदिल-वि० [अ० मातदिल ] १ जो न बहुत गरम और न घुमाव फिराव । चक्कर। बहुत सर्द हो । गीन पार उगता प्रादि के विचार से मञ्चम मोड़ना- क्रि० स० [हिं० मुड़ना का प्रेर० रूप०] १ फेरना । नौटाना । घरस्था का। सयोकि०-डालना।-देना। विशेप इस गब्द का व्यवहार प्राय पोरधि या जलबायु धादि मुहा०-मुस मोड़ना, मुहं मोडना = (१) किसी काम के करने मे के लिये होना है। आनाकानी करना। प्रागा पीछा करना । कना । (२) विमुस २ मध्यम । दरमियानी (को०) । ३ जिनमे कोई बात अवश्यकता होना । पराङ्मुख होना। उ०-खान पान असनान भाग तजि से कम वा अधिक न हो । सतुति (को०)। मुस नहिं मोडत ।-भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० २३३ । मोतबर-वि० [ अ०] १ विश्वास करने याय। जिसपर विश्वास २ किसी फैली हुई गतह वा कुछ अश समेटकर एक तह के किया जा सके। ३. जिसपर विश्वास दिया जाना हो। ऊपर दूसरी तह करना । जैसे,—(क) चादर का कोना मोड विश्नागपाग। दो। (ख) कागज किनार पर मोड दो। ३ किमी छ यी मी मोतबिर -वि० [प्र. मोतचर ] ३० 'मोत घर' । उ०उन वक्त उसका सीधी वस्तु का कुछ अश दूमरी पोर फेरना। ४ दिशा परिव कोई मोतपिर भादमी उसके सयाल बमूजिव यपनी जाग गर्ज र्तन करना । दिशा बदलना। ५ धार भुयरी करना । कुठिन विना उसको राय स मिलती हुई बात कहे तो उस बात का करना । जैसे, धार मोडना । सुननेवाले के दिल मे पूरा अमर होता है। -श्रीनिवास ग०, मोडना तोडना-क्रि० स० [हिं० मोदना+तोड़ना ] नष्ट भ्रन्ट पृ० ३१ । करना। काम लायक न रहने देना । नष्ट करना । मगलना। मोतवरो-शा [अ० मोतबर + ई (प्रत्य॰)] विश्वासपाता । उल-अव तो मोड तोड तुम डारा, राम राम कहो झूठ विश्वसनीयता। पसारा ।-घट०, पृ० २२७ । मोतमद-वि० [अ० मोतमद ] भरोगे का । विश्वासपात । मोड़ा-सशा पु० [सं० मुण्ड, मि० प० मुडा (= लडका )] [स्त्री० मोताद-सा पुं० [अ० मोताद ] पूरी मात्रा । पूरी सुराक (को०] | मोडी] लडका । बालक । मोति-सज्ञा पुं० [सं० मौक्तिक ] दे० गोती'। 50- नान ढरहि