पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मोतियदाम ४०३१ मोतीचूर मोति और मूंगा।—जायसी ग्र०, (गुप्त), पृ० २०४। जितना बडा या सुडौल होता है उसका मूल्य भी उतना ही मोतियदाम-सज्ञा पुं० [ स० मौक्तिकदाम, प्रा मोतियदाम ] एक अधिक होता है। यो तो मोती ससार के अनेक भागो मे पाए वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे चार जगण होते हैं। जैसे, जाते हैं, पर लका, फारस की खाडी तथा प्रास्ट्रेलिया के पश्चिमी भजी रघुनाथ धरे धनु हाथ । विराजत कठ सु मोतियदाम । तट के मोती बहुत अच्छे समझे जाते हैं। इसके अतिरिक्त पनामा के पीले मोती तथा कैलिफोनिया की खाडी के काले मोतिया-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० मोती +इया (प्रत्य॰)] १ एक प्रकार का बेला जिसकी कली मोती के समान गोल होतो है। २. और भूरे मोती भी बहुत अच्छे होते हैं। मोती प्राय तौल के हिसाव से बिकते हैं, पर अन्यान्य रत्नो की भांति मोती की एक प्रकार का सलमा जिसके दाने गोल होते है और जो जादोजो के काम मे किनारे किनारे टोका जाता है। ३. रूसा दर भी उसके भार की वृद्धि के अनुसार बहुत बढती जाती है। उदाहरणार्थ यदि एक चौ के मोती का दाम ५०) होगा, तो नाम की घास, जब तक वह थोडी अवस्था को और नीलापन उमी प्रकार के दो चो के मोती का दाम २००) और पांच लिए रहती है । ४. एक चिडिया जिसका रग मोती का सा चौ के मोती दाम १२५०) या इससे भी अधिक हो जाएगा। होता है भारतवर्ष मे मोती का व्यवहार बहुत प्राचीन काल से चला मोतिया - वि० १ हलका गुलाबी, वा पीले और गुलाबी रग के मेल आता है। धनवान् लोग इसकी प्राय मालाएं बनवाते हैं, और का (रग)। २ छोटे गोल दानो का वा छोटो गोल कडियो इन्हे अगूठियो तथा दूसरे प्राभूपण मे जडवाते हैं । इसका का । जैस, मोतिया सिकडी। ३ मोती सवधी । मोती का। व्यवहार वैद्यक मे औषध रूप मे भी होता है और प्रायः वैद्य मोतियाविद-सज्ञा पुं० [ हिं० मोतिया+ स० बिन्दु ] आंख का एक लोग इसका भस्म तैयार करते है । वैद्यक में मोती को शीतवीर्य रोग जिसमे उसके एक परदे मे गोल मिली सी पड जाती शुक्रवर्धक, आँखा के लिये हितकारी और शरीर को पुष्ट करने- है, जिसके कारण आंख से दिखाई नही पडता। वाला माना है। हमारे यहाँ प्राचीन ग्रथो मे यह भी कहा गया है कि सीपी और शख प्रा द के अतिरिक्त हाथो, सांप, मोती'- सञ्चा पुं० [सं० मौक्तिक, प्रा. मोत्तिश्र ) १ एक प्रसिद्ध मछली, मेढक, सूअर, बांस और बादल तक मे मोती होते हैं, बहुमूल्य रत्न जो छिछले समुद्रो में अथवा रेतीले तटो के पास और इनको प्राप्त करनेवाला बहुत सौभाग्यशाली कहा गया सीपी मे से निकलता है। है। इन सब मोतियो के अलग अलग गुण भी बतलाए गए हैं, विशेष-समुद्र मे अनेक प्रकार के ऐसे छोटे छोटे जीव होते हैं, पर ऐसे मोती कभी किसी के देखने मे नही पाते । जो अपने ऊपर एक प्रकार का प्रावरण बनाकर रहते हैं। मुहा०-मोती गरजना = मोती मे बाल पड जाना । मोती चटकना इस प्रावरण को प्राय सीप और उन जीवो को सीपी कहते या कडक जाना। मोती ढलकाना = रोना (व्यग्य)। मोती हैं। कभी कभी ऐसा होता है कि बालू का कण या कोई बहुत पिरोना = (१) बहुत ही सुदर और प्रिय भापण करना । (२) छोटा जीव सीप मे प्रवेश कर जाता है, जिसके कारण सीपी बहुत ही सु दर और स्पष्ट अक्षर लिखना । (३) रोना (व्यग्य) । के शरीर मे एक प्रकार का प्रदाह उत्पन्न होने लगता है। उस (४) कोई बारीक काम करना। मोती बींधना = (१) मोती प्रदाह को शात करने के लिये सीपी अनेक प्रयत्न करती है को पिरोए जाने के योग्य बनाने के लिये उसके बीच मे छेद पर जब उसे सफलता नहीं होती, तब वह अपने शरीर मे से करना । (२) कुमारी का कौमार्य भग करना । योनि का क्षत एक प्रकार का सफेद, चिकना और लसीला पदार्थ निकालकर करना। (बाजारू)। मोती रोलना= बिना परिश्रम अयवा बालू के उस कण अथवा जीव को चारो ओर से ढकने लगती थोडे परिश्रम से बहुत अधिक धन कमाना या प्राप्त करना । है, जो अत मे मोती का रूप धारण कर लेता है। तात्पर्य यह मोतियों के मोल पडना = बहुत मंहगा पडना । उ०—किंतु कि मोती की सृष्टि किसी स्वाभाविक प्रक्रिया के अनुसार नही यह फल बकरियो और खच्चरो पर लादकर रेल तक पहुंचाने होती, बल्कि अस्वाभाविक रूप में होती है, और इसीलिये मे मोती के मोल पडेंगे, उन्हे कौन खरीदेगा।—किन्नर०, वहुत दिनो तक लोग यह समझते थे कि मोती की उत्पत्ति पृ० ११ । मोतियों से मांग भरना = मांग मे मोती पिरोना। सीपी मे किसी प्रकार का रोग होने से होती है। हमारे यहाँ मोतियों से मुह भरना = प्रसन्न होकर किसी को बहुत अधिक प्राचीन काल मे यह माना जाता था कि स्वाती की वर्षा के धन सपत्ति देना। समय सीपी मुंह खोलकर समुद्र के ऊपर पा जाया करती है, पर्या-मौक्तिक । शौक्तिक | मुक्ता । मुक्ताफल । और जब स्वाती की वूद उसमे पडती है, तब मोती उत्पन्न २ कसेरो का एक प्रौजार जिससे वे नकाशी करते ममय मोती को होता है। सी प्राकृति बनाते हैं। साधारण मोती सुडौल और गोल होता है, पर कुछ मोती लवोतरे, मोती-सज्ञा स्त्री०.[ सं० मौक्तिकी ] वानी जिसमे बडे बडे मोती पडे टेढे मेढे या वेडौल होते हैं। मोती का रग मटमैला, धूमिल, रहते हैं । उ०-छोटी छोटी मोती कान छोटे कठुला त्यो कठ काला या कुछ हरापन अथवा नीलापन लिए हुए होता है, छोटे से विजायठ कटक दुत मोटे हैं। -रघुराज (शब्द०)। पर साफ करने पर वह खूब सफेद हो जाता है और उसमे मोतोचूर-सक्षा पुं० [हिं० मोती+चूर ] १, मोती की तरह छोटी एक विशेप प्रकार की 'पाव' या चमक आ जाती है। मोती 'बुंदियो का लड्डू ।