पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२८

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मनी ३७१५ मनुर्ग स० मोरनी। मनी सज्ञा स्त्री॰ [ स० मणि ] दे० 'मणि' । दे० 'मणि' चोटो पर उनकी नाव उसने पहुंचा दी। वहां मनु ने अपनी मनी -सज्ञा पु० [अ० ] रुपया पैसा । सिक्का । नाव बाँध दी। उस बड़े मोघ से अकेले मनु ही बचे थे । मनीआर्डर- उन्ही से फिर मनुष्य जाति की वृद्धि हुई । ऐतरेय ब्राह्मण मे र-सज्ञा पु० [अ० ] रुपए की हुडो जो किसी के रुपया मनु के अपने पुत्रो में अपनी सपत्ति का विभाग करने का वर्णन चुकाने पर एक डाकखाने से दूसरे डाकखाने मे इसलिये भेजी मिलता है। उसमे यह भी लिखा है कि उन्होने नाभानेदिष्ठ को जाती है कि वह वहाँ के किसी मनुष्य को हुडी मे लिखी मपनी सपत्ति का भागी नही बनाया था। निघटु मे 'मनु' रकम चुका दे। एक स्थान से दूसरे स्थान पर रुपया प्राय शब्द का पाठ धुस्थान देवगणो मे है मोर वाजसनय सहिता लोग इसी प्रकार डाकखाने की मारफत भेजा करते है। मे मनु को प्रजापति लिला है। पुराणो मौर सूयसिद्धात क्रि० प्र०-पाना।--फरना ।-नाना । भेजना। - लगाना। मादि ज्योतिष के ग्रथो के अनुसार एक कल्प मे चौदह मनुमों का मनीक - सज्ञा पु० प्रोजन। अधिकार होता है मौर उनके उस मधिकारकाल को मन्वतर मनीजर-सज्ञा पु० [अ० मैनेजर ] व्यवस्थापक । प्रबधक । उ- कहते हैं । चौदह मनुमो के नाम ये हैं-(१) स्वायम् । (२) कोऊ मनीजर सरकारी रखि काम चलावत ।-प्रमघन०, स्वारोचिष् । (३) उत्तम । (४) तामस । (५) रवत । (६) भा० १, पृ० १४। चाक्षुष । (७) वैवस्वत । (८) साणि । (६) दक्षसावणि । मनीवैग-मज्ञा पुं० [ 4.] चमडे आदि का बना हुअा एक प्रकार (१०) ब्रह्मसावरिण । (११) धमसावणि। (१२) रुद्रसावरिण । (१३) देवसावणि मौर (१४) इद्रसावाण । वतमान मन्वतर का छोटा वटुना जिसके अदर कई खाने होते हैं जिनमे रुपए, रेजगी आदि रखते है। वैवस्वत मनु का है। मनुस्मृति में मनु को विराट् का पुत्र लिखा है पोर मनु स दस प्रजापातयों का उत्पात्त लिखा है । मनीमन-क्रि० वि० [हिं० मन+ही+मन] मन ही मन । मन मे । विना बोले। उ.- मनीमन मे ईश्वर को धन्यवाद देता। २ विष्णु । ३ मत करण | मन । ४ जैनियो के अनुसार एक -प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० १४६ । जिन का नाम । ५ कृष्णाश्व क एक पुत्र का नाम । ६ मत्र । ७ वैवस्वत मनु । ८ भाग्न । ६ एक रुद्र का नाम । १०. मनीर-सञ्ज्ञा सी॰ [देश०] १४ की सख्या । ११. ब्रह्मा । मनीपा-सञ्ज्ञा ली० [स०] १ बुद्धि | भकल । २. स्तुति । प्रशसा । ३ पाकाक्षा । इच्छा (को०) । मनु -सशा स्त्री० १. मनु की स्त्री । मनावी । २ बनमेथी का साग । पृक्का। मनीपिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [म०] १ बुद्धि । मनीपा । २ इच्छा (को॰) । मनु—भव्य० [हिं० मानना ] मानो । जैसे । उ०-(क) रतन जडित मनीपित-वि० [स०] मनोभिलषित । वाछित । ककरण बाजूबंद नगन मुद्रिका सोहै। डार हार मनु मदन मनीपिता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] बुद्धिमत्ता । बुद्धिमानी । विटप तरु विकच देखि मन माहै । -सुर (सन्द०) । (ख) मोर मनीपी-वि० [ म० मनीषिन् ] १ पडित । ज्ञानी । विद्वान् । २ मुकुट की चाद्रकन यो राजत नंदनद । मनु सास सखर की बुद्धिमान् । मेवावी। अकलमद । चतुर । ३ स्तुति मकस किए सिखर सत चद । -बिहारी (शब्द॰) । करनेवाला (को०)। मनुओं'-सञ्ज्ञा पुं॰ [ हि० मन ] मन । उ०—(क) मनुमा चाह देख मनीपी-सज्ञा पुं० १ विद्वान व्यक्ति । पडित । ज्ञानी पुरुप । २ वह पौ भोगू । पथ भुलाइ विनास जोगू। -गायसा (शब्द०)। जो स्तुति या स्तवन करता हो (को०] । (ख) चचल मनुमा दुहुदिसि धावत अचल आहि ठहराना । मनु'-सज्ञा पु० [ स०] १ ब्रह्मा के पुत्र जो मनुष्यो के मूल पुरुप कहु नानक यहि विधि का जो नर मुक्ति ताह तुम माना ।- माने जाते हैं। तेगबहादुर (शब्द०)। विशेष वेदो मे मनु को यज्ञो का धादिप्रवर्तक लिखा है । ऋग्वेद मनुओं -सज्ञा पुं० [हिं० मानव ] मनुष्य । उ०-खाय पकाय लुटाय मे कण्व और अत्रि को यज्ञप्रवर्तन मे मनु का सहायक लिखा ले ऐ मनुप्रा मजवान । लना होय सो लेइ ले यही गोइ है। शतपथ ब्राह्मण मे लिखा है कि मनु एक बार जलाशय मैदान ।—कबीर (शब्द०)। में हाध घोते थे, उसी समय उनके हाथ मे एक छोटी सी मनुआँ'-सझा पुं॰ [ देश० ] देव कपास । नरमा मनवां । मछली पाई। उसने मनु से अपनी रक्षा की प्रार्थना की मौर कहा कि आप मेरी रक्षा कीजिए, मैं आपकी भी रक्षा करूंगी। मनुक्ख-सज्ञा पुं॰ [. स० मनुष्य ] मनुष्य । मानव । मनुज । चारह लाख मनुक्खा देही । लख चौरासी यह सुनि लेही।- उसने मनु से एक पानेवाली बाढ की बात कही भौर उन्हे सहजो०, पृ० ३६ । एक नाव बनाने के लिये कहा। मनु ने उस मछली की रक्षा की, पर वह मछली थोड़े ही दिनो मे बहुत बड़ी मनुख-सझा पुं० [सं० मनुष्य] मनुज । मानव । मानुख । उ०- हो गई। जब वाढ आई, मनु अपनी नाव पर बैठकर लख चौरासी भरमि, मनुख तन पाइल हो।-घरम०, पृ०६४ । पानी पर चले और अपनी नाव उस मछली की मार मे मनुग – सञ्चा पुं० [ म० ] प्रियन्नत के पौत्र मोर पुतिमान् के पुत्र बाँध दो। मछली उत्तर को चली और हिमालय पर्वत की का नाम।