मनायी ३७८४ मनी सुर तीरथ ताहि मनावन मावत पावन होत है तात न छ्वं ।- फेर । करका मनिका छोडिक मन का मनिका फेर ।-कवीर तुलसी (शब्द॰) । (ख) मोहिं तुम्हें न उन्हें न इन्हें मनभावती सो (शब्द०)। न मनावन प्राइहै ।पद्माकर (शब्द०)। ३ भप्रसन्न को प्रसन्न मनिख-सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'मानुख' । उ०-मनमुसि मनिख करने के लिये अनुनय विनय करना । रूठे हुए को प्रसन्न भूत पशु गुरुमुख्य ज्ञाता देव । रज्जव०, पृ०८। क ने के लिये मीठी मीठी बातें करना। मनुहार करना । मनित-वि० [सं० ] ज्ञात | जाना हुआ। उ०—(क) जैसे प्राव तैसे साधि सौहनि मनाइ लाई तुम इक मनिधर-सज्ञा पु० [सं० मणिधर]- 'मरिणयर' । मेरी बात एती विसरैयो ना ।—पद्माकर (शब्द॰) । (ख) मनियर -सशा पुं० [सं० मणिधर, प्रा० मणियर] " 70 'मणिधर'। केतो मनावै पाउँ परि केतो मनावै रोइ । हिंदू पूजे देवता २ वह जो मणि के समान दीप्तोरवल हो। तुरुक न काहुक होइ ।-कवीर (शब्द०)। (ग) लाज कियो मनिया-सज्ञा स्त्री॰ [ म० माणिक्य, हिं० मनिका ] १ गुरिया । जो पिय नहि पाऊं। तजो लाज कर जोरि मनाऊं -जायसी मनिका । दाना जो माला मे पिरोया हो । २ कठा । गुरिया । (शब्द०)। ४ देवता प्रादि से किसी काम के होने के लिये माला । उ०-हीं करि रही कठ मे मनियाँ निर्गुन कहा रमहि प्रार्थना करना। उ० (क) यह कहि कहि देवता मनावति । ते काज । मूरदास सरगुन मिलि मोहन रोम रोम मुख माज । भोग समग्री धरति उठावति । —सूर (शब्द०)। (ख) सुकृति सूर (शब्द०)। सुमिरि मनाइ पितर सुर सीस ईस पद नाइ के। रघुबर कर मनियार - वि० [हिं० मीण + धार (प्रत्य॰)] १ देदीप्यमान । घनुभग चहत सब आपनौ सो हित चित लाइ के ।- तुलसी उज्वल । चमकीला । उ०-प्रथमहि दीप अमर मनियारा । (शब्द०)। ५ प्रार्थना करना । स्तुति करना । (क) तुम तवां मूल मुरति बैठारा ।—कबीर मा०, पृ० ६३६ । २ सव सिद्ध मनावहु, होइ गणेश सिघ लेहु । चेला को न चलावै दर्शनीय । शोभायुक्त । स्वच्छ । रौनकदार । मुहावना । उ०- मिल गुरू जेहि भेउ ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) ताके युग पद वन कुसुमित गिर गन मनियारा । स्रवहि मकल मरितामृत कमल मनाऊं। जासु कृपा निरमल मति पाऊ।–तुलमी धारा |- तुलसी (शब्द०)। (शब्द॰) । (ग) करी प्रतिज्ञा कहेउ भीष्म मुख पुनि पुनि देव मनिप-सज्ञा पुं० [स० मनुष्य ] २० 'मनुष्य' । उ०-जिन रथी मनाऊ-सूर (शब्द॰) । मद्धि उठे असुर धपं ज्वाल तिन मुप विपय | नर भपय जहाँ मनायी-सझा मी० [ स० ] दे० 'मनावी' [को॰] । लसकर सहर मिल मनिप तेते भपय । -पृ० रा०, ११५११ । मनार-सबा पुं० [ म.] दे० 'मीनार'। मनिसार-वि० [स० मणि + हिं० सार (प्रत्य॰)] मणि के समान । देदीप्यमान । मनियार । उ०-पुरुप अमान अजर मनिसारा । मनारा-सज्ञा पुं॰ [ भ० भनारह ] द० 'मनार' [को०] । -कबीर सा०, पृ० ६२ । मनाल- सञ्चा पुं० [श० ] एक प्रकार का चकोर जो शिमले की मनिहार-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० मणिकार, प्रा० मनियार ] [ पी० ओर होता है । इसके सुदर परों के लिये इसका शिकार किया मनिहारिन ] चूडी बनानेवाला चुडिहारा जो स्त्रियो को चूडियो जाता है। पहनाता है। मनाल-सञ्ज्ञा पुं० [म.] धन सपत्ति । रकम । जायदाद (को०] । मनिहार@-वि० [हिं० मणि + हार (प्रत्य० ) ] देदीप्यमान | मनावछत-वि० [स० मनोवाच्छित] दे० 'मनोवाछित' । उ०- दर्शनीय । मनियार । मनोहर । उ-नेत्र रमाल बदन विकट पूरूं मनावछत गहर गुण गाज।-रघु० रू०, पृ० १५० । मनिहारा ।-कबीर सा०, पृ० १६०४ । मनावनो-सज्ञा पुं० [हिं० मनाना ] १ मनाने की क्रिया । उ.- मनिहारिन - सज्ञा स्त्री॰ [हि० मनिहारा ] चूडो बनाने, बेचने और फूलनि माल बनावन लाल पहिरि पहिरावन । सुभग सरोज पहनानेवाली स्त्री। चुडिहारिन । सुधावन जोत मनोज मनावन ।-नद० प्र०, पृ० २८ । २ यौ०-मनिहारिन लीला = श्रीकृष्ण की एक लाला जिसमे वे को प्रसन्न करने का काम । ३ मनाने का भाव । मनिहारिन का वेश बनाकर राधा को चूडो पहनाने जाया करते थे। मनावी 1--सशा स्त्री० [सं० ] मनु की स्त्री का नाम । मनाही-सज्ञा स्त्री० [अ० मन्ही का बहु २०, अथवा हिं० मना ] मनी-मज्ञा स्त्री॰ [फा०। तुल० हिं० मान ( = अभिमान)] अहकार । न करने की आज्ञा | रोक । अवरोध । निषेध । उ०—मुकर्रर उ०—(क) होये भतो ऐसे ही अजहुँ गए राम सरन परिहरि तादाद से जियादा जमीन, गाय, बैल, बकरी रखने की मनाही मनी। भुजा उठाइ साखि सकर करि कसम खाइ तुलसी थी। शिवप्रसाद (शब्द०)। भनी ।—तुलसी (शन्द०)। (ख) मति समान जाके मनी नाक न पावत पास । रसनिवि भावक करत है साही मन मे वास । मनि-सज्ञा स्त्री० [सं० मणि ] दे० मणि । उ०—बिच बिच छहरति -रसनिधि (शब्द०)। मनो बूंद मुक्ता मनि पोहति ।-भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० २८२ । मनी-वि० घमडी। अभिमानी। उ०-मनी मारे गर्व गाफिल मनिका-सझा स्री० [सं० मणि ] माला में पिरोया हुमा दाना । वेमेहर बेपीर वे |-२० वानी, पृ० ३२ । गुरिया । दाना । उ०-माला फेरत युग गया गया न मन का मनो-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ ] धातु । शुक्र । वीर्य। प्र०
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२७
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