पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२८३

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40 ४०४२ मौजूदगी मौक्ष–सञ्चा पु० [ स० ] एक प्रकार का साम गान । मुहा०—किसी को मौज थाना या किसी का मौज में आना = मौख-सज्ञा पुं० [ ] मुख से होनेवाला पाप । जैसे, अभक्ष्य- उमग में भरना। अचानक किसी काम के लिये उत्तेजना भोजन और अपशब्दों का उच्चारण प्रादि । होना । धुन होना । मोज उठना = मन मे उमग उठना। किसी की मोज पाना=मरजी जानना । इच्या से अवगत मौख-वि०१ मुखसवधी । २ अलिखित । वाचिक । उक्त को०] । होना। मौख-सज्ञा पुं० [7] एक प्रकार का मसाला। उ०-मौख मुनक्का मृत मुलतानी । मेथी मालव गनी सानी। सूदन (शब्द॰) । ३ घुन । ४ सुख । पानद । मजा । उ०—(क) कविरा हरि की भक्ति कर तजु विपया रम चौज । वार बार नहिं पाइए मानुप मौखर-सञ्ज्ञा पुं० [स०] बहुत अधिक या बढ बढकर बातें करना । जनम की मौज ।-कबीर (शब्द०)। (ख) सोनु परयो मन मुखरता । मुंहजोरी। राधिका कछु कहन न पावै । कछु हरप कछु दुख कर मन मौज मौखरी-सज्ञा पुं० [सं० ] भारत के एक प्राचीन राजवश का नाम वढ़ावै ।—सूर (शब्द०)। जिसका शासन काल ईसवी पांचवी शताब्दी के प्रत से लगभग क्रि० प्र०—करना ।-उड़ाना । मारना।—मिलना । लेना। पाठवी शताब्दी तक था । ५ प्रभूति । विभव । विभूति । उ०—रहति न रन जयमाहि मुग्व विशेष—इस वश का राज्य पूर्व मे मगध तक, दक्षिण में मध्य लखि लाखन की फौज । जाचि निराखर ह चलै लै लाखन की प्रात और प्राध्र तक, उत्तर मे नेपाल तक तथा पश्रिम मे मौज । -दिहारी (शब्द०)। थानेश्वर और मालवे तक था। इसकी राजधानी कन्नौज थी, मौजा-सज्ञा पुं० [अ० मोज़ा ] १. गाँव । ग्राम । २ स्यान । परतु बीच मे उसपर बैस वशी राजा हर्प ने अधिकार कर जगह (को०)। लिया था । इस वश के लोग अपने आप को भद्रराज अश्वपति मौजावारी-सज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] एक प्रथा जिसके अनुसार फसल को के वशज मानते थे। इस वश के बहुत प्राचीन होते के कई स्थिति देखकर मालगुजारी निश्चित की जाती थी। उ०- प्रमाण मिले हैं, पर इनका पुराना इतिहास अभी तक नही मराठा काल मे मीजावारी प्रथा का प्रादुर्भाव हुमा ।-शुक्ल मिला है । हरिवर्मा, ईश्वरवर्मा, शर्ववर्मा, ग्रहवर्मा, यशोवर्मा, अभि० ग्र०, पृ०६। आदि इस वश के प्रसिद्ध राजा थे । मौजिवा-सचा पु० [अ० मूजय ] कारण । रहस्य । सबब । उ०- मौखर्य - सञ्चा पुं० [स०] बहुत अधिक या बढ बढकर बोलना। मौजिव कोई न जान कभी जिसका आज तक ।- वीर म०, मुखरता । वाचालता। प्रगल्भता । पृ०१६५। मौखिक-वि० [सं०] १ मुख सवधी। मुख का । २ जवानी। मौजी-वि० [हिं० मौज +ई (प्रत्य॰)] १ मनमाना काम करने जैसे,-पाप कुछ देते तो हैं नही, केवल मौखिक बातें करते हैं । वाला । जो जी में प्रावे, वही करनेवाला। २ सदा प्रसन्न मौख्य-सज्ञा पु० [ स०] मुख्यता । श्रेष्ठता। महत्ता। प्राधान्य रहनेवाला । प्रानदी। ३ मन मे कभी कुछ और कभी कुछ [को०] । विचार करनेवाला । मौगा-वि० [सं० मुग्ध ] [ वि० स्त्री० मौगी ] १ मूर्ख । दुर्बुद्धि । मौजू-वि० [अ० मौजूं ] १ जो किसी स्थान पर ठीक वैठना या २ जनखा । हिजडा । मेहरा। मालूम होता है। उपयुक्त । उचित । मुनासिव । २ तुला मौगी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० मोगा, मि० व गव मागी (= स्त्री)] हुआ। सतुलित । ३ छद के नियम गण, मात्रा आदि से स्त्री । औरत । शुद्ध (पद्य)। मौग्ध्य---सज्ञा पुं० [ स० ] मुग्धता [को०] । मौजूद-वि० [अ०] १ उपस्थित । हाजिर । विद्यमान । रहता मोध्य-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] मोघता । व्यर्थता । निरर्थकता [को०] । हुआ । उ०--जहाँ हम लोग गए थे, वहाँ शातिपुर का हमारा नायव गुमाश्ता मौजूद था ।--सरस्वती (शब्द०)। २ प्रस्तुत । मौच-सज्ञा पुं॰ [ स० तुल० फा०मौज़(= केला) ] केले का फल । तैयार । कटिवद्ध । जैसे,—आपका काम करने को मैं मौज-सञ्चा स्त्री० [अ० ] १ लहर । तरग । हिलार । मौजूद हूँ। क्रि० प्र०-श्राना ।-ठठना। विशेष—इसका प्रयोग विशेष्य के आदि मे इस मुहा०-मौज मारना = लहराना । बहना । जैसे,—दरिया मौजें में नहीं होता, और यदि होता भी है, तो होना क्रिया का रूप मार रहा है । मौज खाना= लहर मारना। हिलोरा लेना। लुप्त रहता है । जैसे,—वहाँ पर मौजूद सिपाही ने उसे बहुत (लश०) । लवी मौन = दूर तक का बहाव । (लश० ) । रोका। २ मन की उमग । उछग । जोश । उ०---(क) साहब के दरबार मुहा०—मौजूद रहना = (१) उपस्थित रहना। पास रहना । में कमी काहु की नाहिं । बंदा मौज न पावही चूक चाकरी सामने रहना । (२) ठहरे रहना । जैसे,—मौजूद रहो, अभी माहिं । -कवीर । (शब्द॰) । (ख) कहा कमी जाके राम उत्तर मिलेगा। घनी। मनसा नाथ मनोरथ पूरण सुख निधान जाकी मौज मौजूदगी--सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ] सामने रहने का भाव । उपस्यिति । घनी । -सूर (शब्द०)। विद्यमानता। रूप