पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२८२

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- ao स० मोहोपमा ४०४१ भौक्य मोहोपमा-सञ्ज्ञा स्त्री० [ ] एक अलंकार का नाम जो केशवदास के मिलना, या मौका हाय लगना = (१) अवकाश मिलना भनुसार उपमा का एक भेद है, पर और प्राचार्य जिसे 'भ्राति' समय या अवसर मिलना। (२) घात मिलना । दाँव पाना । अलकार कहते हैं । विशेष दे० 'भ्राति'। मौके पर = उपयुक्त अवसर पर । आवश्यकता के समय । मौके सेठीक समय पर । उचित अवसर पर । मौंगी@-वि० स्त्री० [सं० मौन ] मौन । चुप । उ०-सुनि खग कहत अंब माँगी रहि समुझि प्रेमपथ न्यारो। तुलसी मौकुल, मौकुलि-सशा पुं० [ ] कोना। (शब्द०)। मौकूफ-वि० [अ० मौकूफ़] १. रोका हुआ । बद किया हुआ । स्थगित मोहौर :-सज्ञा पुं० [हिं० मोहर । स्वर्णमुद्रा । अशरफी । मोहर । किया हुआ । उ०—(क) सरकार ने अब इस मती होने की २०-पो एक एक मोहोर और एक एक पाग दै उनको विदा बुरी रस्म को मौकूफ कर दिया है । -शिवप्रसाद (शब्द०)। करे। -दो सौ बावन०, मा० १, पृ० १०६ । (ख) एक भुनगा पास न पावेगा मौकूफ हुआ जब अन्न पो जल -नजीर (शब्द०)। २ काम करने से रोका गया। नौकरी मौज-वि० [से० मौज] [वि० सी० मौजी ] मूज का से अलग किया गया। बरखास्त । उ०--सन् १६१० ई० मे वना हुमा। बादशाह ने मुसलमान मुगलो को, जो नौकर हो गए थे, यक- मौजकायन-सज्ञा पुं० [ स० मौञकायन ] मुजक ऋषि के गोत्र मे कलम मौकूफ कर दिया। शिवप्रसाद (शब्द०)। ३ रद्द उत्पन्न पुरुष । किया गया। ४ अधिष्ठित । मुनहसर । अवलवित । आश्रित । मौजवान-वि० [सं० मौजवत्] १ मुंजवान नामक पर्वत में उत्पन्न । निर्भर । उ०—(क) दु ख और सुख तवीअत पर मौकूफ है।- २ मुजवान नामक पर्वत सवधी। शिवप्रसाद (शब्द॰) । (ख) मा सस्ता हो या महंगा नहीं मौजिवधन-सज्ञा पुं० [सं० मौञिबन्धन ] यज्ञोपवीत सस्कार । मौकूफ गल्ले पर। य सब खिरमन उसी के हैं खुदा है जिसके प्रतवध । जनेऊ । पल्ले पर ।-कविता को०, भा०४, पृ० २५ । मौंजी -मक्षा झी० [सं० मौजी ] मूज की बनी हुई मेखला । क्रि० प्र०—रहना ।—होना । यौ०-मौजिबधन । मौकूफी -सज्ञा [अ० मौकूफ़+ ई ] १. मौकूफ होने की क्रिया या मौजी--वि० [सं० मौजिन् ] १ जो मुंज को मेखला धारण किए भाव । २. प्रतिवध । रुकावट । ३. काम से अलग किया जाना । हुए हो । जो मूज की मेखला पहने हो । २ दे० 'मौंजीय' । बरखास्तगी। मौंजीपत्रा-सा वी० [सं० मौजीपत्रा ] वल्यजा । मौक्तिक -सञ्ज्ञा पुं० [सं०] मोती । मौंजीय--वि० [ सं० मौजीय ] {ज का बना हुआ । मौक्तिक-वि० मुक्ति के लिये प्रयत्नशील । मोड़ा -सञ्ज्ञा पुं० [ स० माणवक ] [ सी० मोडी] लडका। मौक्तिकतडुल-सज्ञा पुं० [ स० मौक्तिकतण्डुल ] सफेद मका । बडी उ०-(क) मैया वहुत बुरो बलदाऊ । कहन लगे बन बडो तमासो सब मौंडा मिलि पाक ।-सूर (शब्द॰) । (ख) बाट मौक्तिकदाम-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] बारह अक्षरो का एक वणिक छद ही गोरस बेच री आज तू मायके मूंड चढं मति मौंटी। जिसके प्रत्येक चरण मे दूसरा, पांचवां, पाठवाँ, और ग्यारहवाँ -रसखानि । (शब्द०)। वर्ण गुरु और शेष लघु होते हैं, अर्थात् जिसके प्रत्येक चरण मौड़ा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० मुह+डा | दे० 'मोहडा' । मे चार जगण होते हैं। उ०-दुख्यो हिय केतिक देखत भूप । मोआसा -सञ्ज्ञा पुं० [ स० मवास ] दे० 'मवास' । उ०-रैयत एक करयो तब तापर रोष अनूप। वियोगिनि के उर भेदत रोजु । पाँच ठकुराई, दस दिसि है मौमासा । रजो तमो गुन खरे कर तुमको निज बाण मनोजु ।-गुमान (शब्द०)। २ सिपाही करहिं भवन मे वासा ।-पलटू ०, भा० ३, पृ०६८ । मोतियो की लडी। मौका-सञ्ज्ञा पुं० [अ० मौका ] १ वह स्थान जहाँ कोई घटना मौक्तिकप्रसवा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] मुक्ताशुक्ति । सीपी जिसमे से घटित हो। घटनास्थल । वारदात की जगह । उ०-बार्नस मोती निकलती है [को॰] । साहब ने मौके पर जाकर, अच्छी तरह तहकीकात की। मौक्तिकमाला-सञ्चा स्त्री० [ १० ] ग्यारह अक्षरो की एक वणिक -द्विवेदी (शब्द०)। २ देश। स्थान । जगह । जैसे,- वृत्ति का नाम जिसके प्रत्येक चरण का पहला, चौथा, पाँचवाँ, मकान का मौका अच्छा नहीं है। ३ अवसर । समय । उ०- दसवां और ग्यारहवां अक्षर गुरु और शेष लघु होते हैं तथा तव से बबई जाने का हमे मौका ही न पाया । द्विवेदी पांचवें और छठे वर्ण पर यति होती है। इसे 'अनुकूला' भी (शब्द०)। कहते है। उ०-भीति न गंगा जग तुव दाया। सेवत तोही मुहा०—मौका देना = अवकाश देना। समय देना। मौका देखना मन वच काया । नासह बेगी मम भव’ला । हो तुम माता जग या ताकना= दांव मे रहना। उपयुक्त अवसर की ताक में अनुकूला।-छद०, पृ० १६३ । रहना । मौका पाना = (१) अवकाश पाना । फुरसत पाना । मौक्तिकावलो-सज्ञा स्त्री० [सं० ] मोती को माला । (२) उपयुक्त समय या भवसर पाना । मोफा पाना, मौका मौक्य-सज्ञा पुं॰ [सं०] मूकता । मौनता। ज्वार।