पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२९९

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थेशीरथ ४०५५ यदाकदा । सच्चापन । स० स० यथारथ-अव्य० [सं० यथार्थ ] दे० 'यथार्थ' । यथासाध्य-अन्य [ म० ] जहाँ तक हो सके। जितना दिया जा यथारुचि-अव्य० [सं०] १ रुचि के अनुसार । पसद के मुताविक । सके। ययाशकि। इच्छानुसार । मरजी के मुताविक । यथास्थान-प्रव्य [ मं० ] ठीक जगह पर । अपने स्थान पर | उचित स्थान पर। यथार्थ-अन्य० [ सं०] १ ठीक । वाजिब । जैसे,—प्रापका कहना यथार्थ है । २ जैसा ठोक होना चाहिए, वैसा । ज्यो का त्यो। यथच्छ-अव्य० [सं० ] जितना या जैना जी में आने, उतना या जैसे का तैसा। वैसा । इच्छा के अनुगार । मनमाना । यथार्थत -क्रि० वि० [सं०] १. सचमुच । सत्यत । २ उचित स्प यथेच्छाचार-मरा पु. [ स० ] जो जी मे यावे वही फरना, घोर से । सही अर्थ में (को०] । उचित अनुचिन का ध्यान न करना । म्वेन्याचा । मनमाना यथार्थता-सज्ञा सी० [ स० ] यथार्थ का भाव । सचाई। सत्यता । काम करना। यथेच्छाचारी-नग पुं० [ म० यथेच्छाचारिन् ] १ मनमाना पाचार यथाई-वि० [ स० ] १ योग्यता या पाग्रता के अनुसार । २. उचित । फरनवाला । ययेच्याचार करनेवाला । जो युर जी में मात्र न्याय्य । ३ मनपसद (को०] । वही करनेवाला। मनमौजी। यथालन्ध-वि० [ ] जितना प्राप्त हो, उसी के अनुसार । जो यथेन्छित-क्रि० [ ] इन्छानुसार । मनमाना । मनचाहा । कुछ मिले, उसी के मुताविक | यथेप्सित-वि० [सं० ] दे० 'योच्छिन' (को०] । यथालव्ध-सशा झो० जैनियों के अनुसार, जो कुछ मिल जाय उसी से यथेष्ट-पी० [ मं० ] जितना इट हो। जितना चाहिए, उतना । सतुष्ट रहने की वृत्ति। गाफी । पूरा। जैसे—(क ) वे वहां ने यथेष्ट धन ले पाए । यथालाभ-वि० [ स० ] जो कुछ मिले, उसी के अनुसार । जा प्राप्त (स) इस विषय मे यथेष्ट कहा जा चुका है। हो, उसी पर निर्भर । उ०—यथालाभ सतोप सदा परगुन नहिं यथेष्टाचरण-संशा पुं० [ म० ] मनमाना काम करना । इच्यानुनार दोष कहींगो।—तुलसी (शब्द॰) । व्यवहार करना । स्वेच्छाचार । यथावकाश-वि० [सं०] १ अवसर के अनुकूल । २ स्थान के यथेष्टाचार-मग पुं० [सं०] दे० 'ययेष्टाचरण' । अनुकूल । ३ उचित स्थान पर [को०] । यथेष्टाचारी-सरा पुं० [ म० यथेष्टाचारिन् ] अपन मन के अनुसार व्यवहार करनेवाला । मनमाना काम करनेवाला । यथावत्-प्रव्य० [सं०] १ ज्यो का त्यो। जैसा था, वैसा ही। जैसे का तैसा'। २ जैसा चाहिए, वैसा । पूर्ण रीति मे । अच्छी यथोक्त-प्रव्य० [ स० ] जमा याहा गया हो। कहे हुए अनुसार । तरह । जैसे, यथावत् सत्कार करना । यथाक्तकारी-वि० [सं० यथोक्तकारिन् ] १ शास्त्रा मे जो कुछ पहा यथावस्थित-प्रव्य० [सं०] १ जैसा था, वैमा ही। २ सत्य । गया हो वही करनेवाला । २ याज्ञाकारी। ठीक । ३ स्थिर । अचल । यथोद्गमन-सशा पु० [ स० ] अवरोही । अनुपात मे उतार का यथाविधि-अव्य० [ स० ] विधि के अनुसार । विधिपूर्वक । क्रम [को०] । विधिवत् । यथोचित - वि० [ स० ] जैसा चाहिए वैसा । मुनानिव । ठोक। यथाविहित-अव्य० [स० ] जैसा विधान हो, वैसा ही। विधि के जैसे—उसे यथोचित दड मिलना चाहिए। अनुसार। यथोत्साह-प्रव्य [ सं०] दे० 'यथाशक्ति' । यथाशक्ति-अव्य० [सं० ] सामर्थ्य के अनुसार। जितना हो सके। यथोदेश-प्रव्य [ स० ] निर्दिष्ट ढग से [को०] । भरसका यथोपदिष्ट-वि० [ म० ] जैसा निर्दिष्ट किया गया हो, वैसा (को०] । यथाशक्य-अव्य० [सं० ] जहाँ तक हो सके । जहां तक सभव हो। यथोपपत्ति-वि० [सं०] जैसा उचित हो, वैसा [को०] । जहाँ तफ मुमकिन हो । सामर्थ्य भर । भरसक । यथोपपन्न-वि० [सं० ] समय पर जैसा कुछ घटित हो गया हो । यथाशास्त्र-अव्य० [सं० ] शास्त्र के अनुसार । शास्त्र के अनुकूल । स्वाभाविक (को०] । जैसा शास्त्रो मे वर्णित है वैसा । यथोपमा-सज्ञा स्त्री॰ [सं० ] यथा शब्द द्वारा अभिव्यक्त उपमा । यथाश्रम-वि० [स० ] १ प्राश्रम जीवन के अनुसार । २ परिश्रम (छद शास्त्र )। के अनुसार। यथोपयोग-वि० [ ] उपयोग के अनुसार। आवश्यकतानुसार। यथासभव-अव्य० [सं० यथासम्भव] जहाँ तक हो सके। जितना यदपि-अव्य० [सं० यदि+अपि] दे० 'यद्यपि' । उ०-जागृत था हो सके । जितना मुमकिन हो । सौंदर्य यदपि वह साती थी सुकुमारी। रूप चद्रिका मे उज्वल यथासमय-अव्य० [ स०] १. ठीक समय पर । ठीक वक्त पर । थी आज निशा की नारी ।-कामायनी, पृ० १२५ । नियत समय पर । २ समय के अनुसार । जैसा समय यदा-अव्य० [सं० ] जिस समय । १ जिस वक्त । जव । २ जहाँ । हो, वैसा। यदाकदा-अव्य० [सं०] जब तव । कभी कभी । HO