पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३०

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भेनुम्मृति ३७९७ मनोग्राही मनुस्मृति-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० ] धर्मशास्त्र के एक प्रसिद्ध प्र थ का नाम मनुहारि-मज्ञा झी० [हिं॰] दे० 'मनुहोर'। उ०—करत लाल जो मनुप्रणीत है । मनुसहिता । मानव धर्मशास्त्र । मनुहारि, पं तू न लखति इहि पोर ।-मति० ग्र., पृ० ४०८ । विशेप कहा जाता है, पहले मनुस्मृति मे एक लाख श्लोक मनुहारी-स० सी० [हिं० मनुहार ] २० 'मनुहार'। उ०—तुम थे। फिर उसका सक्षेप १२ हजार श्लोको मे किया गया न विहारी नेकु मानो मनुहारी हम पायं परि हारो अरु करि और अंत मे उसका सक्षप चार हजार श्लोको मे किया गया। हारी नयिा । —तोप (शब्द )। अाजकल की मनुस्मृति मे ढाई हजार से कुछ ही अधिक श्लोक मनें --अव्य० । हि० ] ने० 'मानो'। उ०-चह तेज मनू ऊगत मिलते हैं। यह भृगुप्रोक्त कहलाती है और इसमे बारह मूर -ह. रासो०, पृ०६१ । अध्याय है। इसमे सृष्टि की उत्पत्ति, मस्कार, नित्य मौर नैमित्तिक कर्म, पाश्रमधर्म, राजधर्म, वर्णधर्म, प्रायश्चित्त मनूरी-सशा स्त्री० [अ० मुनौवर ] एक प्रकार की बुकनी जो आदि विषयो का वर्णन है। इसके अतिरिक्त एक नारदप्रोक्त मुरादाबादा कलई के बर्तनो को उजला करने मे काम पाती है । मनुसहिता का भी पता चलता है, पर वह पूरी नहीं मिलती। यह वातुप्रो को गलाने की पुरानी घरियो को कूटकर बनाई जाती है। मनुहर-वि० [ स० मनोहर ] ८० 'मनोहर' । उ -मनुहरि कटि- मने -वि० [अ० मनश् , हि० मना । थल मेखला, पग झाझर झरणकार ।-ढोला, दू. ४८१ । २० ‘मना' । उ —(क) जानि नाम अजान लीन्हे नरक जमपुर मने । –तुलमी (शब्द॰) । मनुहार'-सज्ञा स्त्री० [हिं० मान + हरना ] १ वह विनती जो किसी (ख) शिव सुपूजन माह मन कर । मनहु मो अकोरति मो का मान छुडाने या क्रोध शात क के उसे प्रसन्न करने के लिये भरे ।-गुमान (शब्द )। की जाती है। मनौना। खुशामद । उ०-मारी मनुहारन मनेजर-सञ्ज्ञा पु० [अ० मेनेजर ] किमी कार्यालय आदेि का वह भरी गारिउ भरी मिठाहिं । वाको प्रति अनखाहटो मुसुकाट प्रधान अधिकारा जिसका काम सव प्रकार की व्यवस्था और विनु नाहिं । -विहारी (शब्द॰) । देख रेख करना हो । प्रवधकर्ता। मुहा०—कसी को मनुहार कराना = विनती करना । खुशामद करना । मनाना। उ०—(क) तुम्हरे हेतु हरि लियो अवतार । मनों-अव्य [हिं. मानना ] मानो। जैसे । उ०-(क) मनो अब तुम जाइ करो मनुहार ।—सूर (शब्द॰) । (ख) दुसह सर्व स्त्रीन मे कामवामा। हनूमान ऐसी लखी रामरामा।- रोप मूरति भृगुपति मति नृपति निकर पयकारी । क्यों केशव (शब्द॰) । (ख) मकरात गोपाल के कुडल सोहत कान । मोपेउ सारग हारि हिय करिहै बहु मनुहारी ।तुलमी वस्यो मनो हिय घर समर ड्योढी लसत निसान ।—बिहारी (शब्द०)। (ग) कहत रुद्र मन माहिं विचारि । अब हरि की (शब्द०)। कीज मनुहारि ।- लल्लू (शब्द०)। (घ) जो मेरो कृत मानहु मनोकामना-मज्ञा स्त्री॰ [हिं० मन + कामना ] इच्छा । अभिलापा। मोहन करि लामो मनुहारि । सूर रसिक तबही पै बदिही मनोगत'-वि० [ म० ] १ जो मन मे हो। मन मे पाया हुया । मुरली मकी न संभारि ।—सूर (शब्द॰) । २ विनय । दिली । २ इच्छित । प्रार्थना। उ०—(क) तापसी करि कहा पठवति नृपनि को मनोगत-सशा पुं० [ स० ] १ कामदेव । २ श्राकाक्षा। इच्छा मनुहारि । बहुरि तेहि विधि माइ कहिहै साधु कोउ हितकारि । (को०) । ३ विचार (को०)। -तुलसी (शब्द०)। (ख) मबै करति मनुहारि अधो कहियो हो जैसे गोकुल पावें ।—सूर (शब्द०)। ३ मत्कार । भादर । मनोगति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ म० ] १ मन की गति । चित्तवृत्ति । उ०- उ०—सौहें किए हू न सौ हैं करे मनुहार करेहू न सूव निहारे । तीखे तुरग मनोगति चचल पौन के गौन हुँ ते वढि जाते ।- -केशव (शब्द०)। तुलसी ग्र०, पृ० २०७। २ इच्छा। प्रातरिक अभीष्ट । खाहिश । उ०—किंतु विधिना को यही मनोगति थी।- मनुहार'-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ हिं० मन+हरना ] शाति । तृप्ति | उ.- कुरला काम केरि मनुहारी। कुरला जेहिं नहिं सो न मुनारी। दुर्गेशनदिनी (शब्द०)। -जायसी न०, पृ० १४० । मनोगवी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] इच्छा । अभिलाया। मनुहारना-क्रि० स० [हिं० मान + हारना ] १ मनाना। मनोगुप्त-वि० [स०] मन में छिपाया हुया । अव्यक्त (विचार आदि) । खुशामद करना। उ०—(क) पूजा करेउ बहुत मनुहारी। मनोगुप्ता-मज्ञा स्त्री० [ म० ] मैनमिल | वोले मीठे वचन विचारी ।—सबलसिंह (शब्द॰) । (ख) के मनोगृहोत-वि० [ म० मन + गृहीत ] मन मे गृहीत या ग्रहण पटुता परवीन तिया मनुहारि सुवाल कहै मन माने । –प्रताप किया हुआ। (शब्द०)। २ विनय करना । प्रार्थना करना। उ०—निग्रहा- नुग्रह जो करे अरु देइ आशिष गारि। सो सर्व सिर मान लीज मनोगुप्ति- -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० J जैन शास्त्रानुमार मन को अशुभ प्रवृत्ति से हटाने की क्रिया या भाव । सर्वथा मनुहारि ।-केशव (शब्द०)। ३. सत्कार करना । आदर करना। उ०—सुरभी ऐन कुभ सम धार । नदिनि धेनु मनोनाही-वि० [ म० मन +प्राहिन् ] मन को ग्रहण करनेवाला । सरिम मनुहार । -मन्नालाल (शब्द०)। १. खुशामद करना । मन को अपनी ओर खीचनेवाला । आकर्पक ।