पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४०६४ यष्टिप्राण यव्य HO GO TO यव्य-मरा पुं० [ ] १. माम । महीना । २ यव का खेत । यवक्य ये जो पांचो पुत्र तुम्हारे हैं, सो महाबली यशी होंगे। लल्लू. क्षेत्र [को०] 1 (शब्द०)। यव्यावती-सा सी० [ ] १ वैदिक काल की एक नदी।२ यशीले -वि० [सं० यश+ईल (प्रत्य॰)] कीर्तिमान् । यशस्वी । वैदिक काल की एक नगरी । उ०-अवर चित्र विचित्र विराजत प्रायो सुशील यशील सभा यश पटह-सशा पुं० [सं० ] कीर्ति का घाँसा । यश की दुदुभी [को०] । मे।-रघुराज (शब्द०)। यश शेप-सहा पु० [सं०] १ मृत्यु । मौत । २ वह जिसका यश यशुमति सज्ञा सी० [सं० यशोवती ] दे० 'यशोदा'। ही वचा हो, मृत व्यक्ति (को०] । यशोद-सज्ञा पुं० [स०] १ पारा। पारद । २ वह जो कीर्तिप्रद यश-सा पु० [ स० यशस्] १ अच्छा काम करने से होनवाला हो (को०)। नान । नेक्नामी । कीर्ति । सुम्याति । उ०—(क) यश अपयश यशोदा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ नद की स्त्री जिन्होंने श्रीकृष्ण को देसत नही देसत श्यामल गात ।-विहारी (शब्द॰) । (ख) पाला था। विशेपट० 'नद' । २ दिलीप की माता का नाम । रक्षहु मुनि जन यश लीजै ।—केशव (शब्द०)। (ग) हा पुत्र ३. एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे एक जगण और दो लक्ष्मण छुडावहु वेगि मोही। मार्त डवश यश की सब लाज गुरु वर्ण होते हैं। जैसे, जपो गुपाला। सुभोर काला । कहै तोही ।-केशव (शब्द०)। यशोदा । लहै प्रमोदा । क्रि० प्र०-पाना ।-मिलना। यशोधर-सज्ञा पुं० [सं०] १ रुक्मिणी के गर्भ से उत्पन्न कृष्ण के मुहा०-यश फ्माना या लूटना = यश वा कीर्ति प्राप्त करना । एक पुत्र का नाम । २ उत्तपिणी के एक अर्हत् का नाम । नाम हासिल करना। (जैन) । ३ कर्म प्रघवा सावन मास का पाचर्वा दिन । २ वडाई । प्रासा । महिमा । यशोधरा-सचा सी० [स०] १ गौतम बुद्ध की पत्नी और राहुल मुहा०-यश गाना = (१) प्रशसा करना । (२) कृतज्ञ होना । को माता का नाम । २ कर्म अथवा सावन मास की एहसान मानना । यश मानना= कृतज्ञ होना । निहोरा मानना । चौथी रात। एहसान मानना। यशोधरेय- सज्ञा पुं० [सं० ] यशोधरा का पुत्र, राहुल । यशद-सा पु० [ ] एक धातु । जस्ता । दस्ता [को०] । यशोभृत् - वि० ] यसी । प्रसिद्ध । ख्यात [को०)। यशव, यशम-संश पु० [ भ० ] एक प्रकार का पत्थर जो हरा सा यशोमति, यशोमती-सा सी० [सं० यशोपती ] २० 'वनोगा' । होता है। यशोमत्य-रमा पु० ॥ ] माकडेयपुराण के अनुसार एक नाति विशेप-यह चीन और लका मे बहुत होता है । इस पत्थर की 'नार्दली' बनती है, जिसे लोग घाती पर पहनते हैं। फलेजे, मेदे यशोमाधव-सहा पुं० [स० ] विष्नु । और दिमाग की बीमारियो को दूर करने का इस पत्थर में यशोहर-पि० [ सं०] फति का अपहरम करमेघाला [को०)। विलक्षण प्रभाव माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि जिसके पास यह पत्थर होता है, उसपर बिजली का कुछ प्रभाव यष्टव्य-वि० [स० ] यज्ञ करने योग्य [ो०। नहीं होता। इसे 'सगे यशव' भी कहते हैं । यष्टा-वि० पु० [ स० वट्ट ] मजकर्ता । यजन करनेवाला [को०] । यशस्कर-वि० [स०] कोनि बढ़ानेवाला । यष्टि-सशा सी० [स०] १ लाठी। छपी। कड़ी। २ पताका का उडा । ध्वज । ३ टहनी। पाखा। हाथ। 8. बठो मधु। यशस्काम-वि० [सं०] १ यश का इच्छुक । २ महत्वाकादी [को॰] । मुलेठी। ५. तांत । ६ गले में पहनने का एक प्रकार का यशस्य-वि० [ स०] १. यशकारी। यशस्कर । कीतिकारी। २ मोतियो का हार। ७ लता। बेल। ८ माह । माहं । ६ ऊख । इच्. (को॰) । यशस्या-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] जीवती नामक पौधा [को॰] । यष्टिक-सा पुं० [सं०] १. तीतर पक्षी । २ डढा । ३ मषीठ । यशस्वान्-वि० [ स० यशस्थत् ] [वि॰ स्रो० यशस्वती ] यशस्वी । यष्टिका - सञ्चा सौ० [स०] १ हाय में रखन की दी। लकही। लाठी । २ जेठी मछु । मुलेठी। ३. वावली। वापी । ४ गले यशस्विनी'-सश सी० [सं०] १ वनकपास । २ महा ज्योतिष्मती । में पहनने का हार । यष्टी। ३ गगा नदी। यष्टिकाभरण-सा पुं० [स०] सुश्रुत के अनुसार जल को ठठा यशस्विनी-वि० सी० जिसे यश प्राप्त हो । फीतिमती। करने का उपाय। यशस्वी-वि० [२० यशस्विन् ] [ वि० लो० यशस्विनी ] जिसका यष्टिमह - सञ्चा पुं० [सं०] यष्टिधारी । दह धारण करनेवाला [को०] । खूब यश हो । कीर्तिमान । यष्टिप्राण-वि० [सं०] बिसफा यष्टि ही माधार हो । क्षीण शरीर । यशी-वि० [सं० चरा+ ई (प्रत्य॰)] यशस्वी। कीर्तिमान् । उ०- अतीव दुर्वल [को०] । HO का नाम। प्रसिद्ध । श्रेष्ठ [को०। कीर्तिमान ।