पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३०४

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HO 0 HO स० यवनाचार्य ४०६३ यवोद्भव यवनाचार्य-सज्ञा पुं० [ स०] यमन जाति का एक ज्योतिषाचार्य, यवलास-सग पुं० [ स०] जवाखार । जिसका उरलेस वराहमिहिर आदि ने किया है। विद्वानो का यववर्णाभ-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का अनुमान है कि यह संभवत 'टालेमी' था । जहरीला कीडा। यवनानी - वि० [सं० ] यवन देश सवधी । यूनान का । यूनानी । यवशाक-सा पुं०॥ ] एक प्रकार का साग जो वैद्यक के अनुसार यवनानी-सञ्ज्ञा स्त्री० १ यूनान की भापा । २ यूनान की लिपि । मधुर, रूखा, गीतवीर्य और मलभेदक माना जाता है। विशेप-कात्यायन ने यवनानी लिपि का उल्लेख किया है। यशक-संज्ञा पुं० [ ] जनासार। यवनारि 1-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] श्रीकृष्ण, जिनकी कालयवन से कई यवश्राद्ध-मा पु० [ ] एक प्रकार का श्राद्ध जो वैशाग्य के शुक्ल लडाइयां हुई थी। पक्ष मे कुछ विशिष्ट दिनो और योगो मे नौर विपुव गक्राति यवनाल- सज्ञा पु० [ सं०] १ जुयार का पौधा । २ इस पौधे से अथवा तृतीया के दिन होता है और जिसमे केवल जी के प्राटे उत्पन्न अन्न के दाने। जुयार । ३ जौ के इठल जो सूखने पर का व्यवहार होता है। चौपायो को खिलाए जाने है। यवनालज-सज्ञा पुं० [ ] यवक्षार । जवाखार। यवस-संशा पुं० [ म० ] गूगा । यवनाश्व-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] मिथिला देश के एक प्राचीन राजा का यवसुर-सहा पुं० [सं०] जो की शराव । नाम जो बहुलाश्व का पिता था । यवागू- सज्ञा पुं० [सं० ] जो या चावल का वह मांड जो महाकर यवनिका-सशा पुं० [ स० ] १ कनात । २ ताटक का परदा । कुछ खट्टा कर दिया गया हो, अर्थात् जिममे पुछ खमीर पा विशेप-प्राचीन काल मे नाटक के परदे सभवत यवन देश से गया हो । मांड की कांजी। पाए हुए कपडे से बनते थे, इसीलिये इनको यवत्तिका कहते थे। विशेपः -इमका व्यवहार वैद्यक मे पथ्य के लिये होता है, और यह अाधुनिक अनेक पहितो के शोधानुसार शुद्ध संस्कृत शब्द ग्राहक, बलकारक तथा वातनाशक माना जाता है। 'जवनिका' है। 'राजशेखर' की कर्पूरमंजरी' मे प्रयुक्त यवान-सज्ञा पु० [सं०] जौ का भूसा । 'जवनिकातर' के सस्कृतीकरण की भ्राति से 'यवनिका' शब्द यवाग्रज-सञ्चा पुं० [सं०] १ यवक्षार | २ अजवायन । बना और चल पडा । इमका यवन शब्द से सबंध नही मानते । यवान-वि० [ ] वेगवान् । तेज । क्षिप्र। यवनी-सशा स्त्री॰ [सं० ] यवन की या यवन जाति को स्त्री। यवानिका, यवानी-सञ्चा सी॰ [ म० ] अजवायन । यवनेष्ट -सञ्चा पु० [सं०] १ सीसा । २ मिर्च । ३. लहसुन । ४ नीम | ५ प्याज । ६ शलजम । ७ गाजर । यवान्न-सशा पु० [ मं० ] यव, जो पकाया गया हो [को०] । यवनेष्टा-सञ्ज्ञा ली [ ] जगला खजूर । यवाम्ल-सा पु० [ स० ] जो की कांजी जो वैद्यक मे वात पौर यवफल सञ्चा पुं० [ स०] १ इद्र जो। २ कुटज । ३ प्याज । ४ एलेष्मानाशक, रक्तवधक, भेदक तथा रक्तदोपनानक मानी जटामासी । ५ बांस । ६ प्लक्ष वृक्ष । पाकड का पेड़ । यवबिंदु-सशा पुं० [सं० यव वि दु] वह हीरा जिसमे बिंदु महित यवाश-सझा पु० [ मं० ] एक प्रकार का कीडा जो जौ की फगल यवरेखा हो। कहते हैं ऐसा हीरा पह्नने से देश छूट जाता है। यवास, यवासक, यवासा-मज्ञा पुं॰ [ 10 ] जवासा नामक काटेदार यवमड-सश पुं० [सं० यमण्ड ] जी का मांड जो नए ज्वर के क्षुप । वि० दे० 'जवाना' । रोगी को पथ्य के रूप मे दिया जाता है। वैद्यक के अनुसार यह यवाह- उशा पुं० [ 10 ] यवक्षार । यवनालज (को०] । लघु, ग्राहक और शूल तथा त्रिदोप का नाश करनेवाला है। यविष्ठ-सस पुं० [सं०] १ छोटा भाई। २ अग्नि । ३ अग्वेद यवमय-सग पुं० [सं० यवमन्थ ] जो या सत्तू । के एक मग के द्रष्टा प्रापि का नाम जिन्हे अग्नय वठभी यवमता-सज्ञा स्त्री० [सं० ] एक वर्णवृत्त जिमके विपम चरणो मे कहते है। रगण, जगण, जगण होते और सम चरणो मे जगण, रगण और एक गुरु होता है। जमे, त्यागि दे मय जु है, असन्य यविष्ठ -वि० [. ] सब ने बोटा । कनिष्ट। काम । सुधार जन्म प्रापनो, न भूल राम । यवानर-ए-श पुं० [१०] १ पुराणानुसार प्रजनोद के एक पुय का यवमद्य सशा पुं० [सं०] जी का बनाया हुआ मद्य । जो की शराम । नाम । २ भागवत के अनार द्वमाद के एक पुर का नाम । यवमध्य-सशा पुं० [सं०] १, एक प्रकार का चाद्रायण व्रत। २ यवीयान्'-वि० [ म० ययवीस् ] [f० पी० यायसी । १. सय पाच दिनो म समाप्त होनवाला एक प्रकार का यश । ३ एE स छोटा । नधुनम । कानप्छनन । २ हान । गिन्न । प्रकार का नगाडा (को०)। ४ एक ताप (को०) । यवीयान्'-मरा पुं० १ छोटा भाई। मबने घटा नार। २ यवलक- सझा पुं० [सं० ] एक प्रकार का पक्षी जिसका मास, नुश्रुत शूद पो०] । के अनुसार, मधुर, नधु, शानल और मामला होता है। यवोद्भव- पुं० [ म चार । जयासार। स० 119 जाती है। को हानि पहुंचाता है।