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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३२५

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४०८४ रंग परिपूरक कहलाते हैं। जैसे-यदि हरितपीत रग के प्रकार के साथ ही लाल रंग का प्रकाश भी पहुंचने लगे, तो उस दशा में हमे सफेद रग दिखाई पडेगा। इसलिये लाल और हरित पीत दोनो एक दूसरे के परिपूरक रग हैं । प्राय दो रगो के मिलने से एक नया तीसरा रग भी पैदा हो जाता है, जैसे-लाल और पीले के मिलने से नारगी रग बनता है । परतु ये सब बातें केवल प्रकाश की किरणो के सबध में है, बाजार में मिलनेवाली बुकनियो के सबध मे नहीं है। दो प्रकार की बुकनियों को एक साथ मिलाने से जो परिणाम होगा, वह दो रगों की प्रकाश किरणो को मिलाने के परिणाम से कभी कभी बिलकुल भिन्न होगा । इनका कारण यह है कि जब हम दो प्रकार की वुकनियों को एक म मिलाते है, उस समय हम वास्तव मे एक रग मे दूसरा रग जोडते नहीं है, बल्कि एक रग मे ते दूसरा रग घटाते है । जिस रग की किरण को एक वुकनी परावर्तित करती है, उसे दूसरी बुकनी सोख लेती है । इसा लिये बुकनियो के सवध म जो नियम हैं, वे प्रकाश की किरणो के सवध के नियम रकु-सशा पुं० [स० रख ] एक प्रकार का हिरन जिसकी पीठ पर सफेद चित्तियां होती हैं। रग-सञ्चा पुं० सं० रङ्ग, फा० रग] १ रांगा नामक धातु । २ नृत्य गीत आदि । नाचना गाना । यौ०-नाच रग । जैसे,-वहाँ आजकल खूब नाच रग हो रहा है । ३ वह स्थान जहाँ नृत्य या अभिनय होता हो। नाचने गाने, नाटक करने आदि के लिये बनाया हुआ स्यान । यौ०-रगमच । रगभूमि । रगद्वार । रंगदेवता । रगस्थल मादि । ४ युद्धस्थल । रणक्षेत्र । लडाई का मैदान । ५ खदिरसार । ६. किसी दृश्य पदार्थ का वह गुण जो उसके आकार से भिन्न होता है और जिसका अनुभव केवल प्रांखो से ही होता है। वर्ण। विशेष-जब किसी पदार्थ पर पहले पहल हमारी दृष्टि जाती है, तव प्राय हमे दो ही बातो का ज्ञान होता उसके आकर का और दूसरा उसके रग का। वैज्ञानिको ने सिद्ध किया है कि रग वास्तव में प्रकाश की किरणो में ही होता है, और वस्तुप्रो के भिन्न भिन्न रासायनिक गुणो के कारण ही हमारी आँखो को उनका अनुभव वस्तुओ मे होता है। जब किसी वस्तु पर प्रकाश पडता है, तब उस प्रकाश के तीन भाग होते हैं। पहला भाग तो परावर्तित हो जाता है, दूसरा वर्तित हो जाता है, और तीसरा उस वस्तु के द्वारा सोख लिया जाता है। परतु सब वस्तुमो मे ये गुण समान रूप मे नहीं होते, किमी मे कम और किसी मे अधिक होते हैं। कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं, जिनमे से प्रकाश परावर्तित होता ही नहीं, या तो वर्तित होता है या सोख लिया जाता है, जैसे, शुद्ध जल। ऐसे पदार्थ प्राय विना रग के दिखाई देते हैं। जिन पदार्थो पर पडनेवाला सारा प्रकाश परावर्तित हो जाता है, वे श्वेत दिखाई पड़ते हैं। और जो पदार्थ अपने ऊपर पडनेवाला समस्त प्रकाश सोख है, वे काले होते या दिखाई देते है। । एक तो भिन्न है। ७. कुछ विशिष्ट रामायनिक क्रियानो से बनाया हुआ वह पदार्थ जिसका व्यवहार किसी चीज को रंगने या रगीन बनाने के लिये होता है। वह चीज जिसके द्वारा कोई चीज रंगी जाय या जिससे किसी चीज पर रग चढ़ाया जाय । विशेप बाजारो मे प्राय. अनेक प्रकार के कार्यों के लिये भनेक रूपो मे बने वनाए रग मिलते हैं, जिनका व्यवहार चीजो को रँगने या चित्रित करने के लिये होता है । जैसे, कपडे रंगने का रग, लकडी पर चढ़ान का रग, तसवीर बनाने का रग आदि । क्रि० प्र०—करना ।-चढ़ना।--चढ़ाना ।—पोतना । —होना । यौ०-रंगविरग, रगविरगा = जिसमें अनक प्रकार के रग हो। तरह तरह के रगोवाला। उ०-रगबिर ग एक पक्षो बना । छाटा चोच और काटे धना । ( पहेली)। मुहा०-रग माना या चदना = रग अच्छी तरह लग जाना या प्रकट होना । रग उदना या उतरना = धूप या जल प्रादि के ससग से रंग का विगह जाना या फीका पड जाना। रग खेलना =होला के दिना म पानी मे रग घोलकर एक दूसरे पर डालना । रग ढालना या फेंकना %3D (होली मे) पाना मे रग घालकर किसी पर डालना । रंग निखरना=रग का शोख या चटकीला हाना । या-रंगदार। ८. शरीर का ऊपरी वर्ण । वदन और चेहरे की रंगत । वर्ण। मुहा०-(चेहरे का ) रग उढ़ना या उतरना = भय या लज्जा से चेहरे की रौनक का जाता रहना। चेहरा पीला पडना । कातिहीन होना। रग निकलना = दे० 'रग निखरना' । रंग निखरना = चेहरे के रंग का साफ होना । चेहरा सा और चमकदार होना । चेहरे पर रौनक माना। रंग फक होना= दे० 'रग उडना' । रग बदलना = (१) लाल पीला होना । खफा प्रकाश का विश्लेषण करने से उसमे अनेक रगो की किरणें मिलती हैं, जिनमे ये सात रग मुख्य हैं-वैगनी, नील, श्याम या आसमानी, हरा, पीला, नारगी और लाल । जब ये सातो रग मिलकर एक हो जाते हैं, तब हम उसे सफेद कहते हैं, और जब इन सातो में से एक भी रग नहीं रहता, तब हम उसे काला कहते हैं । अब यदि किसी ऐसे पदार्थ पर श्वेत प्रकाश पडे, जिसमे लाल किरणो को छोडकर और सब रगो की किरणो को सोख लेने की शक्ति हो, तो स्वभावत. प्रकाश का केवल लाल ही अश उसपर वच रहेगा, और उस दशा मे हम उस पदार्थ को लाल रग का कहेगे । अर्थात् प्रत्येक वस्तु हमे उसी रग की देख पडती है, जिस रग को वह न तो सोख सकती है और न वर्तित करती है, बल्कि जिसे वह परावर्तित करती है। कुछ रग ऐसे भी होते हैं, जिनके मिलने से सफेद रंग बनता है। ऐसे रंग एक दूसरे के