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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३२४

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प्राय. यौथिक ४०८३ रंकिनी विशेष-ऐसे धन पर सदा वधू का ही अधिकार रहता है, बाल्यावस्था के उपरात प्रारभ होता है और जिसकी समाप्ति के और लोगो का उसपर कोई अधिकार नहीं होता। यह पर वृद्धावस्था आती है। स्त्रीधन माना जाता है। विशेप-इस अवस्था के अच्छी तरह पा चुकने पर २ अन्नप्राशन आदि सस्कारो के समय जिसका मस्कार होता है शारीरिक वाढ रुक जाती है और शरीर बलवान तथा हट उसको मिलनेवाला धन । हो जाता है। साधारणत यह अवस्था १६ वर्ष से लेकर ६० वर्ष तक मानी जाती है। यौथिक-वि० [ स०] १ यूथ सबधी। समूह का। २ जो यूथ मे २ युवा होने का भाव । तारुण्य । जवानी। ३ दे० 'जोबन'। रहता हो । मुड वाँधकर रहनेवाला । ४ युवतियो का दल । यौथिक'-सञ्ज्ञा पुं० साथी । मित्र [को०] । यौवनकटक-सञ्ज्ञा पुं० [० यौवनकण्टक ] मुहासा, जो युवावस्था यौध-सदा पु० [ ] योद्धा । सिपाही। मे होता है। यौधेय-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ योद्धा । २ एक प्राचीन देश का नाम । यौवनक-स० पु० [सं० ] यौवनि । जवानी । ३ प्राचीन काल की एक योद्धा जाति । यौवनपिड़का-सञ्चा पुं० [ स० यौवनपिढका ] मुहासा । विशेष—यह जाति उत्तरपश्चिम भारत मे रहती थी और यौवलक्षण-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १ लावण्य । नमक । २ स्त्रियो को इसका उल्लेख पाणिनि ने किया है। बौद्ध काल में इस जाति छाती । स्तन । कुच। का बहुत जोर और आदर था। इस जाति के राजाप्रो के यौवनस्थ-वि० [स०] १ युवा। तरुण। जवान । २. विवाह के अनेक सिक्के भी पाए गए हैं। पुराणानुसार यह जाति योग्य । ३ स्वस्थ । तेजस्वी। युधिष्ठिर के वशजो से उत्पन्न हुई थी। यौवनदरूढा-वि० [ स० यौवनाधिरूढा ] युवती । जवान (स्त्री)। ४ युधिष्ठिर का पुत्र जो राजा शव्य का दौहित्र था। यौवनाश्व-सञ्ज्ञा पुं० [०] माघाता राजा का एक नाम । विशेष दे० 'माधाता'। यौन-वि० [ 1 १ योनि सबधी । योनि का । २ वैवाहिक । जैसे, यौन सवध । यौवनिक-वि० [सं० ] यौवन सबघौ । यौवन का । यौ०-यौनवृत्ति = काम या कामुकता की वृत्ति । यौवनोदभव-सक्षा पुं० [सं०] कामदेव । यौन-सञ्ज्ञा पु० १ योनि (को०)। २ विवाह सवध (को०)। 3 यौवनोद्भद - सञ्चा पुं० [सं०] कामोन्माद । जवानी की उमंग [को॰] । उत्तरापथ को एक प्राचीन जाति का नाम जिसका उल्लेख यौवराजिक-वि० [ सं० ] युवराज सबधी । युवराज का । महाभारत मे है । कदाचित् ये लोग यवन जाति के थे। यौवराज्य-सज्ञा पु० [सं०] १ युवराज होने का भाव । २ युवराज यौनानुषध-सज्ञा पु० [ स० यौनानुबन्ध ] खून का सवध [को०] । का पद। यौवत-सचा पु० [स०] १ स्त्रियो का समूह । २. लास्य नृत्य यौवराज्याभिषेक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] वह अभिषेक और उसके सबंध का दूसरा भेद । वह नृत्य जिसमे बहुत सी नटियां मिलकर का कृत्य तथा उत्सव आदि जो किसी के युवराज बनाए जाने नाचती हो। के समय हो । युवराज के अभिषेक का कृत्य । यौवतेय-सज्ञा पुं॰ [स०] युवती का लडका । युवती का पुत्र [को०] । यौषिण्य-सज्ञा पुं० [सं०] १ नारीत्व। २. नारी की भावभगिमा यौवन-सञ्चा पु० [सं०] १ अवस्था का वह मध्य भाग जो या मुखमुद्रा (को०] । र र- हिंदी वर्णमाला का सत्ताईसवां व्यजन वर्ण जिसका उच्चारण जीभ है।-तुलसी (शब्द०)। २. कृपण। कंजूस । ३. सुस्त। के अगले भाग को मूर्वा के माथ कुछ स्पर्श कराने से होता है । काहिल । आलसी। यह स्पर्श वर्ण और ऊष्म वर्ण के मध्य का वर्ण है। इसका रक सशा पुं० १. कृपरण व्यक्ति । २. सुस्त वा काहिल आदमी। ३. उच्चारण स्वर और व्यंजन का मध्यवर्ती है, इसलिये इसे अतस्थ निर्धन व्यक्ति। वर्ण कहते हैं। इसके उच्चारण मे सवार, नाद और घोप नामक रकता-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० रह+हिं० ता (प्रत्य॰)] निर्धनता। प्रयत्न होते हैं। गरीवी। कंगाली। उ०-रकता देख जिसकी रकता लजाती राजसी ठाठ से उसकी मरथी जाती।सुत०, पृ० ८७ | रक'- वि० [ स० रक] [वि॰ स्त्री० रंकिणी ] १ धनहीन । गरीव । दरिद्र । कगाल। उ०—(क) बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै रक रकिनी-वि० सी० [स० रङ्किणी ] निर्धनवती। दरिद्धा। जिसके चल सिर छत्र धराई।-सूर (शब्द॰) । (ख) ऊँचे नीचे बीच पास कुछ न हो। उ०-होकर भी बहु चित्र अकिनी आप 'के धनिक रक राजा राय हठनि बजाय फरि डीठि पीठि दई रंकिनी आशा है 1-साकेत, पृ० ३६६ ।