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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३२७

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४०६६ रंगदा करती है। राज के वृथा करत हो दोष । ताकी मरजी को तक करत रग यारो है हमारे । इन होठो ने बोसो के बडे रग हैं मारे | प्रो रोष ।-गुमान (शब्द०)। २० प्रेम । अनुराग । उ०- -नजीर (शब्द०)। (ख) इश्कबाजी के लिये हमने विदाई (क) जब हम रंगी श्याम के रगा। तब लिखि पठवा ज्ञान चौसर । पासा गिरते ही गोया रग हमारा मारा। (शब्द॰) । प्रसगा।-रघुनाथदास (शब्द०) । (ख) देखु जरनि जड नारि रगई। -सञ्ज्ञा पुं० [हिं० रग+ ई ( प्रत्य० ) ] घोवियो के अतर्गत की जरत प्रेम के राग । चिता न चित फीको भयो रची जु पिय एक जाति जो केवल छपे हुए कपडे धोने का काम के रग।—सूर (शब्द॰) । (ग) ऐसे भए तो कहा तुलसी जो पं जानकीनाथ के रग न राते । —तुलसी (शब्द॰) । रगकार-सझा पुं० [ स० रङ्गकार ] रग आदि का काम करने मुहा०-रंग देना=किसी को अपने प्रेमपाश मे फंसाने के लिये वाला । रगसाज । रंगरज [को०] । उसके प्रति प्रेम प्रकट करना । (बाजारू)। रग (में) भींजना = अनुराग मे सराबोर होना । उ०-गोरिन के रंग भीजिगो र गकाष्ठ-सञ्ज्ञा पुं० [स० रङ्गकाष्ठ ] पतग नाम की लकडी । वक्कम। सांवरो साँवरे के रंग भीजी सु गोरी ।-पद्माकर (शब्द॰) । २१ ढग । ढव । चाल । तर्ज । उ०—(क) राजभवनाभ्यतर तो र गक्षार-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० रङ्गक्षार ] टकण । मोहागा [को॰] । यह उपकरण था और बाहर नभमडल का और ही रग दिखलाई र गक्षेत्र-मज्ञा पुं॰ [ सं० रङ्गत्र] १ अभिनय करने का स्यान । देता था।-अयोध्यासिंह (शब्द॰) । (ख) जो तुम राजी हो रगस्थल । नाट्यभूमि । २ किसी उत्सव प्रादि के लिये इस रंग । तो खेलो फाग हमारे संग ।—लल्लूलाल (शब्द०)। सजाया हुआ स्थान । (ग) त्यौं पदमाकर यौँ मग में रग देखत हो कब की रुख राखे। र गगृह-सज्ञा पुं० [स० रङ्गगृह ] १ रगभूमि । नाट्यम्यल । -पद्माकर (शब्द०)। २ क्रीडागृह । ३ केलिमदिर। यौ०-कुरग = बुरा ढब या हग । बुरा लक्षण । उ०-सुनु र गचर-सज्ञा पु० [सं० रगचर ] १ नाटक मे अभिनय करने- वाला। जानकी कुरगनैनी होय न कुरग यह बढोई कुर ग है।- नट। २ प्रासयुद्ध करनेवाला योद्धा । तलवार- हृदयराम (शब्द०)। रंग ढग= (१) दशा। हालत । (२) वाज (को०)। चाल ढाल | तौर तरीका । उ०—हमारा प्रधान शासक न र गज-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रङ्गाज ] सिंदूर । विक्रम के रग ढग का है न हारूं या अकबर के । उसका रग र गजननी-सदा स्त्री॰ [ सं० रङ्गजननी ] लाक्षा । लाख । ही निराला है। वालमुकुद (शब्द०)। (३) व्यवहार । बरताव । जैसे—माजकल उसके रग ढग अच्छे नहीं दिखाई रगजीवक-सज्ञा पुं० [सं० रगजीवक ] १ चित्रकार । मुसव्वर । देते । ४ ऐसी वात जिससे किसी दूसरी बात का अनुमान २ वह जो अभिनय करता हो । नट। हो । लक्षण । जैसे,—पासमान के रग ढग से तो मालूम होता रगजोविक-सज्ञा पुं॰ [स० रङ्गजीविक ] दे० 'रगकार' (को०] । है कि आज पानी बरसेगा। रगड़ा@f-सज्ञा पुं० [हिं० रग+डा (प्रत्य॰)] दे॰ 'रंग' । उ० तेरे प्रेम की माती रे, रगई राती रे ।-दादू०, मुहा०-रग काछना = चाल चलना । ढग अख्तियार करना। पृ० ५०४। उ०—सूर श्याम जितने रंग काछन युवती जन मन के गोऊ हैं ।—सूर (शब्द॰) । ( किसी को अपने ) रग में रंगना = रगण-सज्ञा पु० [ स० रङ्गण ] नर्तन । नाचना । नाच करना (को॰] । किसी को अपने ही विचारो का बना लेना। अपना सा रगत-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० रग+त ( प्रत्य० )] १ रग का भाव । कर लेना। जैसे,—इसकी रगत कुछ काली पड गई है। २ मजा । २२. भांति । प्रकार । तरह । उ०-दूरि भजत प्रभु पोठि दै गुन अानंद । जैसे,—जब आप वहां पहुचेंगे, तभी रगत श्रावेगी। विस्तारन काल । प्रगटत निरगुन निकट रहि चग रग भूपाल | क्रि० प्र०-खिलाना।-खुलना ।-जमना । बिहारी (शब्द०)। २३ चौपड की गोटियो के, खेल के काम मुहा० रगत पाना = मजा होना। आनद होना। के लिये किए हुए, दो वृत्रिम विभागो मे से एक । ३ हालत । दशा। अवस्था। जैसे, आजकल उनकी रगत विशेष-चौपड की कुल गोटियाँ १६ होती हैं, जो घार र गो में अच्छी नहीं है। विभक्त होती हैं। इनमे से विशिष्ट दो रग की भाठ गोटियां 'रंग' और शेप दो रगो की पाठ गोटिया 'बदरग' रगतरा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० ] एक प्रकार की बडी और मीठी नारगी सगतरा। कहलाती हैं। मुहा०-रंग जमना = चौरड मे रग की गोटी का किसी अच्छे रगद-सशा पुं० [सं० रङ्गद ] १ सोहागा। २ खदिरसार । और उपयुक्त घर मे जा बैठना, जिसके कारण खेलाडी को रगदलिका--सज्ञा स्त्री॰ [ से० रङ्गदलिका ] नागवल्ली लता। जीत अधिक निश्चित हो जाती है। रंग मारना = बाजी नागवेल । जीतना। विजय पाना । उ०—(क) यह होंठ जो कि पोपले रगदा-सझा स्त्री॰ [ सं० रङ्गदा ] फिटकिरी।