पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३२८

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रंगदायक ४०६७ रंगमार रंगदायक-पञ्ज्ञा पुं० [सं० रङ्गदायक ] ककुष्ठ नाम की पहाडी रगबिरगा-वि० [हिं. रंग विरंग] १ अनेक २गो का। कई मिट्टी। रगो का । चित्रित । २. तरह तरह का । अनेक प्रकार का । रगढ़ा-सज्ञा स्त्री० [सं० रगदृढा ] फिटकरी, जिससे रग पक्का र गबीज-सज्ञा पुं० [ स० रड गवीज ] रजत । चांदा (को०] । होता है। रंगभरिया-सज्ञा पुं० [हि० रग+ भरमा ] १ छत, किवाडे, रगदेवता-सशा पुं० [स० रङ्गदेवता ] वह कल्पित देवता जो दीवार इत्यादि पर रगो से चित्रकारी करनेवाला। २ रग रगभूमि के अधिष्ठाता माने जाते हैं । करनेवाला। रगसाज। रगद्वार-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रणद्वार ] १ रगमच का प्रवेशद्वार । २ रंगभवन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रडगभवन प्रामोद प्रमोद या भोगविलास नाटक की भूमिका या प्रस्तावना [को०] । करने का स्थान । रगमहल । रगन- सबा पुं० [देश॰] एक प्रकार का मझोला वृक्ष । र गभीनी- वि० [ स० रह ग+हिं० भीनना ] प्रममयी। रस विशेष- इसके हीर की लकडी कडी, चिकनी और मजबूत होनी मे सराबोर । प्रमासक्त । उ०-साँवरे प्रीतम सग राजत रगभीनी भामिनी।-नद० ग्र०, पृ० ३६४ । हैं और इमारत के काम आती है। वगाल, मध्यप्रदेश और मद्रास में यह पेड बहुतायत से होता है। इसे 'कोटा गधल' रंगभूति--सज्ञा सी० [सं० रड गभूति] पाश्विन की पूर्णिमा । कोजागर भी कहते हैं। पूर्णिमा । रंगना'- क्रि० स० [हिं० रग+मा (प्रत्य॰)] १ किसी वस्तु विशेष-कहते हैं, जो लोग इस रात को जागते रहते हैं, पर रग चढाना । रग में डुबाकर अथवा रग चढ़ाकर किसी उन्हें लक्ष्मी आकर धन देती हैं। चीज को रगीन करना । जैसे, कपडा रगना । किवाडे र गना। र गभूमि - सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० रङ्गभूमि] १ वह स्थान जहाँ कोई जलसा हो । उत्सव मनाने का स्थान । उ०—(क) रगभूमि पाए दोउ सयो क्रि०-ढालना ।—देना । भाई। अस सुधि सब पुरबासिन पाई । - - तुलसी (शब्द) (ख) २ किसी को अपने प्रेम मे फंसाना। ३. अपने कार्यसाधन के एहैं रगभूमि चलि जबही। मल्ल युद्ध करि मारव तवही । अनुकूल करने के लिये बातचीत का प्रभाव डालना । अपने -रघुनाथदास (शब्द०)। २. खेल, कूद वा तमाशे आदि भनुकूल करना । अपना सा बनाना। का स्थान | क्रीडास्थल । उ०-रगभूमि रमणीक मधुपुरी रगना-क्रि० प्र० किसी के प्रेम मे लिप्त होना। किसी पर आसक्त बारि चढाइ कहो दह कीजो ।—सूर (शब्द०)। ३ नाटक होना । उ०—-जनम तामु को सुफल जो रगे राम के रंग। खेलने का स्थान । नाट्यशाला । रगस्थल । ४ वह स्थान -रघुनाथदाम (शब्द०)। जहाँ कुश्ती होती हो । अखाडा । ५. रणभूमि । रणक्षेत्र । सयो० कि०-जाना। र गमगल-सञ्ज्ञा पुं० [ स० रह गमड गल ] रगमच की पूजा या अनुष्ठान [को०)। रगानवास-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'रगमहल'। उ०-राखी र गनिवास मै, ते जगमाल जुाण ।~-बांकी० न०, भा० १, र गमडप-संज्ञा पुं० [सं० रड गमण्डप ] रगभू म । रंगस्थल । पृ० ७२। रगमदिर-सचा पुं० [ स० रड,ग+ मन्दिर ] दे० 'रगमहल' । उ०-उस निस्पद रगमदिर के व्योम मे क्षीण गध निरवलब । र पत्रो-सञ्चा स्त्री॰ [ रडगपत्री ] नीली वृक्ष । -लहर, पृ० ८२. रगपीठ-सज्ञा पुं० [स० रड्गपीठ ] नृत्यशाला । नाचघर [को०] । रगमध्य-सञ्ज्ञा पुं० [ सं० रट गमध्य ] र गमच । रगस्थल | रगपुरी-सचा त्री० [हिं० रंगपुर (= वगाल का एक नगर )] र गमल्ली-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० रड गमल्ली ] वीणा । बीन । एक प्रकार की छोटी नाव जिसके दोनो ओर की गलही एक रंगमहल-सज्ञा पुं० [हिं० रग+प्र० महल ] भोगविलाम करने सी होती है। का स्यान । पामोद प्रमोद करने का भवन । 30-बैठी रगपुष्पी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० रड गपुष्पी ] नीली वृक्ष । रगमहल मे राजति । प्यारी फेरि अभूपण माजति ।-सूर रगप्रवेश-सञ्ज्ञा पुं० [म० रड गप्रवेश ] अभिनय करने के लिये (शब्द०)। किसी पात्र का रंगभूमि मे पाना । रगमाता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [मं० रड गमातृ] १ कुटनी कुट्टनी। २ लाख । रगबदल-सज्ञा पुं० [हिं० रँग+ बदलना ] हल्दी । (साधू) । लाक्षा। रगाबर ग-वि० [हिं० रंग+बिरग ( अनु०)] १ कई रगो का । रगमातृका-सशा सी० [सं० रह गमातृका ] लाक्षा । लाख । २ भांति भांति के। तरह तरह के । अनेक प्रकार के । र गमार-सचा पु० [हिं० रग+मारना] ताश का एक खेल । जैसे,—(क) उनके पास रंग बिरग कपडे हैं । (ख) मा टेनी विशेप-ताश का यह खेल दो, तीन अथवा चार प्रादमियो मे और वाप कुलग । उनके बच्चे रग घिरग । खेला जाता है। इसमे एक एक करके सब खेलनेवालो को ५-४० स०