पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३३१

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रंडक ४०१० रभा 1 रडक-सज्ञा पुं० [सं० रण्डक ] वह पेड जिसमे फल न पाते हो। र डा'- वि० [ सं० रण्डा ] रांड । विधवा । वेवा। र डा-सञ्ज्ञा स्त्री० १ विधवा महिला। २ एक छद या वृत्ति । ३ रही । वेश्या । ४ मूपिकपर्णी [को॰] । र डापा-सज्ञा पुं० [हिं० राँड+ आपा (प्रत्य॰)] विधवा की दशा । वैधव्य । बेवापन। र डाश्रमी-सचा पुं० [सं० रण्डा श्रमिन् ] वह जो ४८ वर्ष की अवस्था के उपरांत रंड्डया हुअा हो । जिसकी स्त्री ४८ वर्ष की उम्र के बाद मृत हो। रडी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० रण्डा ] धन लेकर नाचने, गाने और सभोग करनेवाली स्त्री । वेश्या । कमवी । यौ० - रडीवाज । रडीबाजी । रढीमुडी। मुहा०-रढी रखना = किसी रडी की सभोग यादि के लिये अपने पास रखना। रडीबाज-सज्ञा पुं० [हिं० रडी+ फा० वाज़ ] वह जो रडियो से सभोग करता हो । वेश्यागामी। रडीबाजी-सक्षा स्री० [हिं० रंडी+बाज़ी] रडी के साथ गमन करना । वेश्यागमन । रतव्य -वि॰ [स० रन्तव्य] १ जिसके साथ रति की जा सके । रमण के योग्य । २ क्रीडा योग्य । आनद योग्य । रतव्य-सञ्ज्ञा पुं० पानद । क्रीडा । विलास (को०] । रता-सञ्ज्ञा सी० [स० रन्ता] गौ । गाय [को०] । रता@1-वि० [सं० रन्तु] १ रमण करनेवाला । २ अनुरक्त । लगा हुया । उ०-मुनि मानस रता जगत नियता आदि न अत न जाहि । -केशव (शब्द०)। रति-सज्ञा स्त्री० [सं० रन्ति १ केलि । क्रीडा । २ विराम । रतिदेव-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रन्तिदेव] १ पुराणानुसार एक बड़े दानी राजा जिन्होने बहुत अधिक यज्ञ किए थे। विशेप-एक बार सब कुछ दे डालने पर इन्हे ४८ दिनो तक पीने को जल भी न मिला। उनचासवें दिन ये कुछ खाने पीने का प्रायोजन कर रहे थे कि क्रम से एक ब्राह्मण, एक शूद्र और कुत्ते के लिये हुए एक अतिथि प्रा पहुंचे। सब सामान उन्ही के आतिथ्य मे समाप्त हो गया, केवल जल बच रहा। उसे पीने के लिये ज्यो ही इन्होंने हाथ उठाया कि एक प्यासा चाडाल आ गया और पीने के लिये जल मांगने लगा। राजा ने वह जल भी दे दिया। प्रत में भगवान् ने प्रसन्न होकर इन्हें मोक्ष पाक वंदूक वा तोप चलाई जाती है। मार । उ०-क्या रेनी सदक रंद बडा क्या कोट कंगूरा अनमोला । क्या बुर्ज रहकला तोप किला क्या शीणा दारू और गोला।-नजीर (गन्द०)। रदना-क्रि० स० [हिं० रन्दा + ना (प्रत्य॰)] रदे मे छीलकर लकही को सतह चिकनी करना । रदा फेरना या चलाना। रदा सज्ञा पुं० [सं० रदन (= काटना, रिना)] बढई का एक श्रीजार जिमने वह लकडी की मतह छीलकर वरावर पौर चिकनी करता है। विशेष-इस प्रौजार में एक चौपहल लबी और चिकनी मतहवानी लकडी के बीच में एक छोटा लबा छेद होता है, जिसमें एक तेज घारवाला फन जडा रहता है । इसे हाथ में लेकर किसी लकडो पर वार बार रगडने या चलाने से उसके कार से उभरी हुई सतह उतरने लगती है और थोड़ी देर में लकडी की मतह चिकनी हो जाती है। रध-संशा ५० [सं० रन्ध्र] दे० 'रध्र' । उ०-दसवै द्वार रंच कर वदा । जहाँ काम नित कर अनदा ।-मत० दरिया, पृ० ३६ । रधक-सक्षा पुं० [स० रन्धक] १ रमोई बनानेवाला। रमोइया । २. नष्ट करनेवाला । नाशक । रधन-सा पुं० [सं० रन्धन] १, रसोई बनाने की क्रिया । करना । धिना । २ नष्ट करना । रधि-सशा सी० [सं० रन्धि] दे० 'रघन' [को०] । रधित-वि० [सं० रन्धित] १. पकाया हुमा । रांचा हुप्रा । २. नष्ट | रंध्र-सज्ञा पुं० [सं० रन्ध्र] १. छेद । सूराख । यौ०-ब्रह्मर ध्र । रघय< = मूपक । चूहा । रध्रवश = पोला बाम । २ योनि । भग । ३. नो को सख्या (को०) । ३ दोष । छिद्र । 10-ध्रगुप्ति =दोप या छिद्र छिपाना । कमजोरी छिपाना । रध्रप्रहारी =किसी को कमजोरी पर प्रहार करनेवाला। रधागत-सशा पुं० [सं० रन्ध्रागत] घोडों के गले में होनेवाला एक प्रकार का रोग। रंवा-सज्ञा पुं० [हिं० रम्भा] १. दे० 'रभा'। २ जुनाहो का लोहे का एक अौजार जो लगभग एक गज लवा होता है। विशेष-यह जमीन मे गाड दिया जाता है और इसमे तानी की रस्सी बांधी जाती है। रभ-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रम्भ] १. वास । २ एक प्रकार का वाण । ३, पुराणानुसार महिषासुर के पिता का नाम । विशेष—इसने महादेव से वर पाकर महिषासुर को पुत्र रूप में प्राप्त किया था। यह भी कहा जाता है कि यही दूसरे जन्म मे रक्तबीज हुमा था। ४. भारी शब्द । कलकल । हलचल | उ.-माथे रम समुद जस होई । —जायसी (शब्द०)। ५ घूर । धूलि (को०)। ६ छठी । दह । डहा (को०)। ७ सहारा । आसरा (को०)। ८ एक चानर का नाम (को०) ।६ कदली । केला । भन-सा पुं० [सं० रम्भण] आलिंगन । परिरंभण। रभा-संज्ञा स्त्री० [सं० रम्भा] १. केला। २. गौरी । ३. गो का दिया। २ विष्णु । ३ कुत्ता। रंतिनदी - सक्षा स्त्री॰ [सं० रन्तिनदी ] चबल नदी । रतु-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० रन्तु] १, सडक । २. नदी। रद-सञ्चा पु० [सं० रन्ध्र] १ बडी इमारतो की दीवारो के वे छेद जो रोशनी और हवा पाने के लिये रखे जाते हैं। रोशनदान । २ किले की दीवारो का वह मोखा जिसमे से बाहर की ओर