पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३३०

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४८८ मन कीन्ही ।-गुदर (शब्द०)। (ख) प्रदुमन लरे सप्तदम दो दिन रच हार नहिं माने।—सूर (शब्द॰) । (ग) रच न माधु गुपै मुख को विन राधिक प्राधिक लाच न डाटे । -केशव (गब्द०)। र चकल-वि० [सं० न्यञ्च, प्रा० रणच ] थोडा। अल्प । रच । 30 क) सग लिए विधु बैनी व रति हूँ जेहि रचक रूप दियो है ।-तुलसी (शब्द॰) । (ख) हिय अचक रीति रची जव रच क लाइ लई उर नाह तही। केशव (शब्द॰) । रंज'-सज्ञा पु० [फा०] [वि० रंजीदा ] १ दुख । खेद । २ शोक । ३ पीडा । कष्ट । दर्द (को०) । क्रि० प्र०-उठाना |- करना ।- झेलना ।-देना ।—पहुंचना । -पहुँचाना ।-सहना । रंज-वि० र जीदा । नाराज । दुखी । रंजक-सना [स. रजक ] १ रंगसाज । २. रंगरेज । ३. हिंगुल । ईगुर। ४ सुश्रु त के अनुसार पेट की एक अग्नि । विशेप-यह पित्त के अतर्गत मानी जाती है। कहते हैं कि यह यकृत और प्लीहा के बीच मे रहती है, और भोजन से जो रस उत्पन्न होता है उसे रजित करती है । ५ भिलावा । ६ मेहदी । ७ लाल चदन (को०)। रजकर-वि० १ रंगनेवाला। जो रंगे। २. पानदकारक । प्रसन करनेवाला । जैसे, मनोरजक । र जक-सभा सी० [हिं० रंचक (= अल्प), फा०] १ वह थोडी सी बारुद जो बत्ती लगाने के वास्ते बंदूक की प्याली पर रखी जाती है। उ०–कैयक हजार एक बार वैरी मारि डारे रजक दगनि मानो अगिनि रिसाने की ।-भूपण (शब्द०)। क्रि० प्र०-देना ।-भरना । मुहा०-रजक उडाना = (१) बदूक या तोप की प्याली मे बत्ती लगाने के लिये वारूद रसकर जलाना । (२) पादना । ( वाजारू)। रजक चाट जाना = तोप या वदूक की प्याली मे रखी हुई वारूद का यो ही जलकर रह जाना और उससे गोला या गोती न टूटना। रजक पिलाना= तोप या वदूक की प्याली मे रज रसना । २ गांजे, तमास्तू या मुलफे का दम । ( वागारू )। मुद्दा-रंजक देना = गांजे यादि का दम लगाना। ३. वह बात जो किगी को भडकाने या उत्तजित करने के लिये गही जाय । १ कोई तीसा या चटपटा चूर्ण । र जकदानी-स पु० [हिं० रजक + फा० दानी] रजक रसनयाला । वक की नली में बारूद जलानवा।। उ०-रंजपदानी, सिंगरा, तूलि, पलीत दानी।-प्रेमघन०, भा० १, पृ० १३ । र जन-सरा पुं० [सं० रन्जन ] १. रंगने की प्रिया । २. चित्त को प्रसन्न करने की झिया। ३ पित्त । सफरा। १. रक्त चदन । लाल चदन । ५. छप्पय छय के पचासवें भेद का नाम । ६.धे पदार्थ जिनसे रंग बनते हैं। जैसे, हल्दी, नील, लाल मरन, कुनुम, मजीठ इत्यादि । ७ मूंज | ८ सोना । ६ जायफल । १० कमीला वृक्ष। रंजन:-वि० [वि० सी० रजनी ] १ रंगनेवाला। २ भानद देन- वाला । रजक (को०] । र जनक-नया पुं० [सं० रजनक ] कटहल । र जनकेशी-सदा ही० [सं० रजनकेगी ] नीली वृक्ष । रंजना-क्रि० स० [सं० रञ्जन ] १. प्रसन करना। यानदिन करना। २ भजना। स्मरण करना। उ०-प्रादि निरजन नाम ताहि रज सब कोळ ।-सूर (शब्द०)। ३. रंगना । उ०--यो मव के तन नानन मे झलकी अरुणोदय की अरनाई। अतर ते जनु रजन को रजपूतन की रज ऊपर प्राई । केशव (शब्द०)। रजनी-सशा सी० [ स० रजनी] १. सगीत मे पभ स्वर को तीन पुतियो मे से दूसरी श्रुति । २. नीली वृक्ष । ३ मजीठी । ४. हलदी। ५. पर्पटी । ६. नागवल्ली। ७ जतुका या पहाड़ी नाम की लता। रंजनीपुष्प-सज्ञा पुं॰ [ स० रञ्जनीपुष्य ] एक प्रकार का करज या कजा । पूतिकरज । रजनीय-वि० [सं० रञ्जनीय ] १. जो रंगने के योग्य हो। २ जो चित्त प्रसन्न कर सके । भानद दे सकनेवाला। र जा-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की मछली जिसे उलवी गो कहते हैं। र जित-वि० [स० रञ्जित ] ? जिसपर रग चढा हो या लगा हो । रंगा हुआ । उ०-रजित अजन काज विलाचन । भ्रानत भाल तिलक गोरोचन | - तुलसी (शब्द०)। २. आनदित । प्रमन्न । ३ प्रेम मे पडा हुा । अनुरक्त । र जिश-सा ली० [फा०] १ रज होने का भाव । २. मनमुटाव । अनवन । ३ वमनस्य । शत्रुता । र जी-ना ली. [ स० रजम् ? ] १ रज । धूल । गर्द । २ दे० 'रजक"। उ०-रजी शास्तर ज्ञान की, यंग रही लपटाय। सतगुर एकहि शब्द से दीन्ही तुरत उडाय । -दरिया० वानी, पृ० १। र जीदगी -सा जी० [फा०] १. रजीदा होने का भाव । २ अनवन । रजिश। र जीदा-वि० [फा० रजीह ] १ जिते रज हो। दुःगित । २. नाराज । अप्रमन्ना जमतुष्ट । रजूर-वि. [ फ़ा० ] रोगी । फन्टवाला । दुनो। गमगीन । उ०- हाजिर बदिने बादल रजूर के प्राग। - याबीर म०, पृ० ४६६ । र जूरी [-ना पुं० [फा०] १ राग । पामर । व्यापि । २. पट । पीटा। दुतको०)। रड'-वि० [म० रण्ड ] १. पूर्त। चालाक । २ विकल। बेचन । ३ यिन्टिनांग (को०)। र'- पुं० १ विना पुत्र पैदा फिर मर जानेवाला व्यक्ति । २. वह वृक्ष जिसमें फल फूल न लगते हो। ३ पुर्न व्यक्ति (०) । -