पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३३३

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- रंगासियार ४०६२ रॅगा सियार-सञ्ज्ञा पु० [हिं०] ढोगी व्यक्ति । छद्मवेश में रहनेवाला रॅभाना-क्रि० स० गौ से रंभरण कराना । गो को शब्द करने मे प्रवृत्त मादमी। करना। विशेष—इस शब्द के पीछे एक कहानी है। घूमते घामते कोई रहचटा-सज्ञा पुं० [सं० र हस अथवा हिं० रहन+चाटमनोरख सियार रात को बस्ती मे प्रा निकला। वहाँ वह घोवे से नील सिद्धि की लालसा। लालच । चस्का । उ०-(क) यो ज्या की नांद मे गिर पडा । सर्वाग उसका नीला हो गया। सियार प्रावत निकट निसि त्यो त्यो खरी उताल । झमाके कनाक बहुत चालाक था। उसने अपने बदले हुए रग का फायदा टहले कर लगी रहचटे बाल |--विहारी (शब्द॰) । (ख) कन उठाया। जगल मे जाकर उसने अपने को देवताओ द्वारा नियुक्त देवो नौप्यो ससुर वह थुरहथी जानि | रूप रंहचटे लगि लग्या सब जानवरो का राजा घोपित कर दिया। कुछ दिनो वाद भेद मांगन सब जग आनि ।--विहारी (शब्द॰) । खुलने पर उसकी वडी दुर्गति हुई। र'-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ पावक । अग्नि । २ कामाग्नि । ३. सितार रॅगिया -सज्ञा पु० [हिं० ग+इया (प्रत्य॰)] १ कपडे रंगने का एक बोल । ४ जलना । मुलमना। ५ पाच । ताप । वाला । रंगरेज । २ रगसाज । गरमी । ६ सोना । स्वर्ण (को०) । ७. वर्ण (को०) 1८ चालीस रगिली-वि० स्त्री० [हिं० रंगीली ] दे० 'रंगीला' । उ०डारत की संख्या (को०)। ६ छदशास्त्र मे एक गण । रगण जो अतर लगाइ अरगजा रंगिली समधिन देखि ।-भारतेंदु ग्र०, मध्यलधु होता है (को०)। भा० २, पृ० ३८०। र-वि० तीक्ष्ण । प्रखर । रंगीला-वि० [हिं० र ग+ ईला (प्रत्य॰)] [वि॰ स्त्री० रंगीली ] रअय्यत-सज्ञा स्त्री० [अ० रमय्यत ] १. प्रजा । रियाया। २ १ आनदी। मौजी। रसिया । रसिक । उ०-श्याम रंग रंगे काश्तकार । ३ सेवक । मुलाजिम । नौकर (को०) । रंगीले नैन । —सूर (शब्द॰) । २ सुदर । खूबसूरत । जैसे,- रइअत-सज्ञा ली० [श० श्यय्यत ] दे० 'रअय्यत' । रंगीला जवान । 30-कहै पदमाकर एते पै यो रंगीलो रूप रइकौ@-क्रि० वि० [हिं० रची + को (प्रत्य॰) या रचs ] जरा देखे बिन देखे कही कैसे धीर धारिए । —पद्माकर (शब्द॰) । ३. भी । तनिक भी। कुछ भी। उ०-ऐसी अनहोन लाज मानति प्रेमी । अनुरागी। कहो न देव होन कहूं पाप रइको सी होन पाउरी।देव रंगीली टोड़ी -सज्ञा स्त्री॰ [हिं० रंगीली+टोडी (एक रागिनी)] (शब्द०)। सपूर्ण जाति को एक रागिनी जिसमे सब शुद्ध स्वर लगते हैं । रइनि@1-सहा स्त्री० [ ० रजनी, प्रा० रपणो ] रात । रात्रि यह टोडो रागिनी का एक भेद है। निशि । उ०—(क) रइनि रेतु होइ रविहि गामा। मानुन पखि लेहिं फिार वासा ।—जायसी (शब्द०) । (ख) जहाँ जात रँगैया -सझा पुं० [हिं० र ग+ऐया (प्रत्य॰)] रंगनेवाला । रइनियाँ तहवा जाहु । जोरि नयन निरलजवा कस मुमुकाहु ।- रॅडपुरा-सच्चा पु० [हिं० ] दे० 'रंडापा' । उ०-कबहुं न चढ रहिमन (शब्द०)। रंडपुरा जान सब कोई। अजर अमर अविनासिया ताको नास रइवारी-सज्ञा पु० [ देश० या गुज० रवारो ( = ऐ घुमक्कड़ न होई । मलूक०, पृ० ३ । जाति) ] एक जाति जो बोरो को चराने और रखने का काम रॅहरोना-सज्ञा पुं० [हिं० ] राँड का रोना । (पति न होने से करता है। उ०-रइवारी ढोलउ कहइ, करहउ आघउ एक । जिसका कोई प्रभाव नहीं होता। ) रांड की तरह रोना । -ढोला०, दू० ३०६। अरण्यरोदन | उ०-बगैर उसके वस्ल के सब रंडरोना है यह रइयत-सच्चा सी० [अ० रजय्यत ] दे० 'रअय्यत' । उ०-पायो हंसी नही । -भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ५७० । भरथ अवच प्रभग, महे पावडा उतमग । रयत कोध अत रॅडापा-सज्ञा पु० [हिं० रॉड+ श्रापा (प्रत्य॰)] रडापा। वैधव्य । उछरग, इम प्रावास जाय उमग । -रघु० रू०, पृ० १२२ । वेवापन । रई-सहा स्त्री० [सं० रय (= हिलाना ) ] दही मथने की लकडी । मुहा०-ढापा खेना या बिताना = किसी प्रकार वैधव्य जीवन मथनी। खैलर । उ०-वासुका नेति अरु मदराचल व्यतीत करना। रई कमठ में आपनी पीठ पार्यो।—सूर (शब्द०)। रँडुआ, रॅड आ-सज्ञा पु० [हिं० रोड + उपा (प्रत्य॰)] वह पुरुष क्रि० प्र०-चलना।-चलाना ।-फेरना। जिसकी स्त्री मर गई हो। रइ-सञ्ज्ञा ली [ हि० रवा ] १ गेहूं का मोटा पाटा। दरदरा रॅडोरा ---सञ्ज्ञा पुं० [हिं० रोह+ोरा (प्रत्य॰)] [ली० होरी] वह पाटा । २ सूजी । ३ चूर्ण मात्र । उ०-चूरो करिहै रई।- पुरुष जिसकी स्त्री मर गई हो। रंडुवा । हरिश्चद्र (शब्द०)। रॅभाना-क्रि० स० [म० रम्भण] गाय का बोलना। गाय का शब्द रई-वि० स्त्री० [हिं० रयना, रचना>स० रजन] १ डूवी हुई। करना । उ०-बाजत वेणु विपास सर्व अपने रंग गावत । पगी हुई । (क) उरहन देन चली जसुमति को मनमाहन के रूप मुरली धुनि गौ रमि चलत पग धूरि उडावत ।-सुर रई ।—सूर (शब्द०)। (ख) माधा राधा के रंग राचे राधा (शब्द॰) । माधो रग रई।—सूर (शब्द०)। २. अनुरक्त । उ०—(क)