पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३३५

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रकेवी ४०६४ 2 HO जो किमी प्रेमिका के सबध मे प्रतियोग करता हो। प्रेमिका का दूसरा प्रेमी । सपल । रकेबी-सज्ञा स्त्री॰ [फा० रकाबी, रिकाबी] दे॰ 'रकावी' । रक्कास-सझा पुं० [अ० रक्कास ] [ सी० रक्कासा ] ताडव नृत्य ( पुरुष नृत्य ) करनेवाला । नर्तक । नाचनेवाला व्यक्ति (को०) । रक्खना-क्रि० स० [ स० रक्षण, प्रा० रक्खण, हिं० रखना ] दे० 'रखना'। रक्त-सज्ञा पुं० [सं०] १ वह प्रसिद्ध तरल पदार्थ जो प्राय लाल रग का होता और शरीर की नसो आदि मे से होकर वहा करता है । लहू । रुधिर । खून । विशेप-साधारणत रक्त से ही हमारे शरीर का पोषण और रक्षण होता है। यह हृदय द्वारा परिचालित होता और सदा सारे शरीर मे चक्कर लगाया करता है। शरीर के अगो मे पोषक द्रव्य रक्त के द्वारा ही पहुंचता है, और जब रक्त कही से चलता है, तब उस स्थान के दूपित या परित्यक्त अश को भी अपने साथ ले लेता है। इस प्रकार इसमे जो दूपित अश या विष आ जाता है, वह फुफ्फुम की क्रिया से नष्ट हो जाता है, और फुफ्फुस में आने के उपरात रक्त फिर शुद्ध हो जाता है। हृदय से जो साफ रक्त चलता है, वह लाल होता है। पर फिर जब शरीर के अंगो से वही रक्त फुफ्फुस की ओर चलता है, तब वह काला हो जाता है। रक्त जल से कुछ भारी होता है, स्वाद में कुछ नमकीन होता है और पारदर्शी नहीं होता। साधारणत इसका तापमान १००° फहरन हाइट होता है, पर रोगो मे यह वार घट या बढ़ जाता है। इसमें दो भाग होते हैं-एक तो तरल जिसे 'रक्तवारि' कह सकते हैं, और दूसरे रक्तकरण जो उक्त 'रक्तवारि' में तैरते रहते हैं। ये कण दो प्रकार के होते है-श्वेत और लाल | ये करण वास्तव मे सजीव अरण पिंड है। शरीर से बाहर निकलने पर अथवा मृत्यु के उपरात शरीर के अदर रहकर भी रक्त बिलकुल जम जाता है । प्राय सारे शरीर का वां भाग रक्त होता है। पशुमो का रक्त प्रा. चोनी श्रादि साफ करने और खाद तैयार करने के काम में प्राता है। हमारे यहाँ के वैद्यक शास्त्र के अनुसार यह शरीर की सान मुख्य धातुप्रो में से एक है और यह स्निग्ध, गुरु, चलनशील और मधुर रस कहा गया है । पर्या-रुधिर । लोहित । अस्र । सतज । शोणित । रोहित । रगक । फीलाल | थगज । स्वज | शोण । लोह । चर्मज । मुहा०-के लिये दे० 'खून' के मुहावरे । २ कुकुम । केसर । ३ तांबा । ४ पुराना और पका हुया प्रांवला । ५ कमल । ६ सिंदूर । ७ हिंगुल । शिगरफ । ईंगुर । ८ पतग की लकडी । ६ लाल चदन । कुचदन । १० लाल रग । ११ कुमुभ। १२ नदीतट पर होनेवाला एक प्रकार का वैत । हिज्जल । १३ बधूक । गुलदुपहरिया । १४ एक प्रकार की मछली। १५ एक प्रकार का जहरीला मेढ़क । १६ एक प्रकार का विच्छू। १७ शिव का एक नाम (को०)। १८ मगल ग्रह (को०)। रक्त-वि० [सं० १ चाह या प्रेम मे लीन । अनुरक्त । २ रंगा हुया । ३. लान । सुर्ख। ४ विहारमग्न । ऐयाश । विलासी। ५. साफ किया हुया । शोधित । शुद्ध । रक्त आमातिसार-मझा पुं० [ ] एक प्रकार का रोग जिसमे लहू के दस्त पाते हैं। रक्तक गुमचा पुं० [सं० रक्तकग ] साल का वृक्ष जिससे राल निकलती है। रक्तक टी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० रक्तकण्टा ] विककत वृक्ष । रक्तक ठ-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रक्तकण्ठ ] १ कोयल । २ भाँटा । भटा। बैंगन | उ०-रक्तकठ तांबूल निवारे । पदाभ्यग वसवाहन द्वारे ।-विश्राम (शब्द०)। रक्तक -वि० १ जिसका कठ लाल रंग का हो। २ जिसकी आवाज मीठी हो (को०)। रक्तकठी-वि०, सञ्ज्ञा पुं० [सं० रक्तकण्ठिन् ] दे० 'रक्तकठ' [को०] । रक्त कद- सज्ञा पुं० [ स० रक्तकन्द ] १ चिद्रु म । मूंगा । २ प्याज । ३ रतालू । रक्तकदल-सज्ञा पुं० [सं० रक्तकन्दला ] मूंगा । विद्रुम । रक्तफबल-सज्ञा पुं० [सं० रक्तकम्बल ] नीलोफर । कूई। रक्तक-सज्ञा पुं० [सं०] १ गुलदुपहरिया का पौवा या फूल । वधूक । २ लाल सहिजन का वृक्ष । ३ लाल भडी का वृक्ष । लाल रेड । ४ लाल कपडा । ५ खून । रुधिर । रक्त (को॰) । ६ लाल रग का घोडा । ७ केसर । कु कुम । रक्तक-वि० १ लाल रग का । २ प्रेम करनेवाला । अनुरागी । ३ विनोदी। मसखरा। रक्तकब-सज्ञा पुं० [ स० कदम्ब ] एक प्रकार का कदव का वृक्ष जिसके फूल बहुत लाल रंग के होते हैं । रक्तकदली-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० ] चपा केला। रक्तकमल-सद्या पृ० [सं० ] लाल रग का कमल । विशेप-वैद्यक मे यह कटु, तिक्त, मधुर, शीतल, रक्तदोपनाशक, वलकारक और पित्त, कफ तथा वात को शमन करनेवाला माना गया है। रक्तकरवीर-सञ्ज्ञा पुं० [ ] लाल रग का कनेर । विशेप वैद्यक मे यह कडुआ, तीक्ष्ण विशोवन और व्रण, कडु, कुष्ठ तथा विप का नाशक माना गया है। रक्तकाचन-सज्ञा पुं० [सं० रक्तकाञ्चन] कचनार का वृक्ष । कचनाल । पर्या० -विदज । चमरिक 1 काचनान । ताम्रपुष्प । कुदार । रक्तकाता-सचा स्त्री॰ [सं० रक्तकान्ता] लाल रंग की पुनर्नवा । लाल गदहपूरना। रक्तका-सेबा सी० [सं०] पानी प्रावला । do