बीच का भाग। कामना । प्रीति (को०)। HO ४११० रणस्तंम ३. बार वार शब्द करना। बजना । उ०-कटि तट रटति चारु रणमद-सज्ञा पुं० [सं०] युद्ध का नशा । रणोन्माद । किकिनि रव अनुपम वरनि न जाई । —तुलसी (गव्द०)। रणमत्त-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ हायी । २. वह जो युद्ध मे मत्त हो। रठा--वि० [ 7 ] रूखा। शुष्क । उ०—मेरी कही मान लीजे ग्राजु रणमार्ग कोविद--वि० [सं०] शुद्ध यी कला मे प्रवीण [फो०] । मान माँगे दीजे चित हित कोज तत तीज रोस रछु है । रणमुख-~-मा पुं० [मं०] १ लटाई का अगला मोरचा। २. सेना रघुनाथ (शब्द०)। का अग्रभाग (को०] । रठकठ-वि० [दश० रठ (= शुष्क) + हिं० काठ] उकठे काठ की रणमुष्टि - सना पुं० [सं०] कुचिला। तरह । जड । शुष्क । उ०-सो सठ रठकठ मति का हीना । रणरक-लगा पुं० [सं० रणरट क] हाथी के बाहरी दोना दांतों के साधु संगति नहिं चीन्हे विहीना । - सत० दरिया, पृ० ३८ । रड्डना@t-क्रि० अ० [सं० रटन, हिं० ररना] चिल्लाना | चीसना । रणर ग--सज्ञा पुं० [भ० रणारङ्ग] १ नवाई का उत्साह । उ०- उ०—दोउ ओर उमग्गै समर सु रड्ड वढि वढि तडै नख कु भक ण दुर्भद रणरगा।-तुलसी (शब्द०)। २ युद्ध । खडे । ह० रासो, पृ० १३४ । लडाई। ३ युद्धक्षम । रढ़ना-क्रि० स० [हि० रट] १ दे० 'रटना' । उ०-जव पाहन भे रणर ता-वि० [स० रगा+रत] युद्ध मे अनुरक्त । युद्ध मे लगा बनवाहन से उतरे वनरा जै राम रढं । —तुलसी (शब्द०)। हुआ । उ०-मुनिगण प्रतिपालक रिपुकुल घालक बालक ते २ वहकाना । फुपलाना । उ -पुनि पीवत ही कच टकटोरत रणरता ।-कशव (शब्द॰) । झूठहिं जननि रहें । सूर निरखि मुख हमति जमोदा सो सुख उर रणरण-संशा पुं० [सं०] १. व्ययता। घराहट । व्याकुलता । २ न कळे । —सूर०, १०।१७४ । खेद । पछतावा । रज । ३ मच्छड । मशक (को०) । रढिया --सक्षा सी० [श० या राद ( देश ) ?] एक प्रकार की देशी कपास जो साधारण कोटि की होती है। रणरणक-सज्ञा पुं॰ [ स०] १. कामदेव का एक नाम । २ प्रबल उत्कठा। ३ व्यग्रता । घबराहट । प्रेम। रण-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ लडाई । युद्ध । जग । यौ०-रणकर्म = युद्ध । लडाई । सग्राम । रणकामी = युद्धेप्सु । युद्ध रणरसिक-वि० [ ] युद्धप्रेमी [को०] । का इच्छुक । रणकारी% युद्ध करनेवाला। रणक्षिति, रणक्षोणी = रणलक्ष्मी-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० ] युद्ध की देवी जो विजय करानेवाली दे० 'रणक्षेत्र' । रणक्षेत्र । रणधीर । रणभूमि । रणस्थान । मानी जाती है । विजयलदमी । २ रमण । ३ शब्द । ४ गति । ५ दुवा नामक भेडा जिसकी रणवाद्य-सञ्ज्ञा पुं० [ ] लडाई का बाजा । रणर्य । दुम मोटी और भारी होती है। रणवासन सशा सी० [हिंरनिवास ] दे० 'रनिवास' । उ०- रणक्षेत्र--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] वह भूमि जहाँ युद्ध हो। लडाई का मैदान । निठुर वचन मुख तै जु कहि । तनि रणवाम रिमाय । ह० रणखेत--सञ्ज्ञा पुं० [सं० रणक्षेत्र] दे० 'रणक्षेत्र' । रामो, पृ० १२० । रणगोचर-वि० [सं०] युद्धमलग्न । सग्राम में लगा हुअा [को॰] । रणवृत्ति-सज्ञा पुं० [ सं० ] सैनिक । योद्वा । राछोड़-मज्ञा पुं० [स० रण + हिं• छोढना] श्री कृष्ण का एक रणशिक्षा-सञ्ज्ञा पु० [ ] युद्ध करने की शिक्षा (को०] । रणशूर - सशा पुं० [सं० ] युद्धवीर । योद्धा [को०] । विशेप-जरासध की चढाई के समय श्रीकृष्ण रणभूमि त्याग कर रणशौंड-वि० [स० रणशौ ढ ] युद्धकुशल । द्वारका की ओर चले गए थे, इसी से उनका यह नाम पड़ा है। दक्ष [को०] । रणतृय--सशा पुं० [सं०] लडाई का वाजा । मारू वाजा [को०] । रणसकुल-सज्ञा पुं० [सं० रणयकुल ] घमासान लडाई । धनघोर सग्राम । भयकर युद्ध (को॰] । रणत्कार-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ झनझनाहट । २ गूंज (को०] । रणसज्जा-सशा स्त्री० [स० रण+हिं० मज्जा युद्ध की तैयारी को॰) । रणदुदुभी-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० रण + दुन्दुभि] दे० 'रणतूर्य' । रणसहाय सज्ञा पुं० [सं० ] लडाई मे मददगार, मित्र [को०] । रणन--क्रि० अ० [स०] शब्द करना । बजना । रणपडित--सञ्ज्ञा पुं० [सं० रणपण्डित] १ योद्धा । वीर । २ युद्ध मे रणसिंहा सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'रणसिंघा'। उ०-रणसिंहों का रणसिघा-सञ्ज्ञा पुं० [ स० रण+हिं० सिंघा] तुरही । नरसिंघा । कुशल व्यक्ति (को०)। जो शब्द होता था, सो अति ही सुहावना लगता था।- रणप्रिय-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १ विष्णु । २ वाजपक्षी । ३ खस । लल्लूलाल (शब्द०)। रणभू , रणभूमि-सञ्ज्ञा जी० [सं०] वह स्थान जहाँ युद्ध हो । लडाई रणस्तभ-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रणस्तम्भ ] वह स्तंभ जो किसी रण मे का मैदान। विजय प्राप्त करने के स्मारक मे बनवाया जाता है। विजय रणमडा- सज्ञा स्त्री॰ [सं०रण+मण्डन] पृथ्वी । (हिं० ) । का स्मारक। to to नाम। नग्राम करने मे
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३५१
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