पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३६२

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४१२१ रवाय रफू-सज्ञा पुं० [अ० रफ ] फटे हुए कपडे के छेद मे तागे भरकर उने वरावर करना। क्रि० प्र०-फरना ।—पनाना ।—होना । मुहा०-रफू करना = कही हुई दो अपरद्ध या विपरीत बातो मे सामजस्य स्थापित करना । वात बनाना । रफूगर - सज्ञा पुं० [फा० रफ गर रफू करने का व्यवमाय करनेवाला । रफू बनानेवाला। रफूगरी (~सशा पी० [फा० रफूगरी] रफू करने का काम । रफूगरो का काम। रफूचक्कर-वि० [अ० रफ + हिं . चक्कर] चपत । गायब । मुहा०-रफूचक्कर बनना या होना = भाग जाना । चलता वनना । गायब हो जाना । जैसे, -वह देखते देखते रफूचक्कर हो गया। रफ्त-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा० रफ्तह, का समासगत रूप] प्रस्थान । जाना । गमन । रवानगी (को०] । रफ्तनी-पझा स्त्री० [फा० रफ्तनी] १ जाने का क्रिया या भाव । २ माल का वाहर भेजा जाना । माल को निकासी। रफ्तार-सज्ञा स्त्री॰ [फा० रफ्तार] चलने का ढग या भाव । चाल । 1 1 गति । रफ्ता रफ्ता-क्रि० वि० [फा० रफ़्तह, रफ्ता] घारे धोरे । फ्रम क्रम से। उ०-अवल मुझे बडगुजर ताखत करना जानि । रफते रगते और भी रहे मुखालिक मान । -सूदन (शब्द॰) । रव--सज्ञा पुं० [अ०] ईश्वर । परमेश्वर । उ० - (क) पीरा पंगबर दिगवग देखाई देत, सिद्ध की सिधाई गई रही बात रब की।- भूषण (शब्द०)। । (ख) अरुन अन्यारे जे भरे अति ही मदन मोज । देखे तुव दृग वार वे रव सुकराना भेज 1-- रसनिधि (शब्द०)। रवकना--क्रि० प्र० [फा० रौ ?] उत्साहित होना । उमग मे होना। जोश मे आना । उ०--(क) रवकि के रचक बदन पसाग्यो । पकरि के चत्रु फारि ही डारची ।--नद० ग्र०, पृ० २५० । (ख) रबयकि चलो भभकत भई, मबतन थागि दिपाइ । --प्रज० ग्र० पृ.४७ । रखड़'-सा पु० [अ० रबर ] १. एक प्रसिद्ध लचीला पदार्थ जिसका व्यवहार गेंद, फोता, पट्टी, वेलन प्रादि बहुत गे पदार्थ वनाने मे होता है। विशेप-यह एक प्रकार के वृक्ष के ऐसे दूध रो बनता है जो पेड से निकलने पर जम जाता है। यह चिमडा और लचीला होता है। इसमे रानायनिक घश कार्वन पौर हाइड्रोजन के होते है। यह २४८ को पाच पाकर पिघल जाता है पौर ६००° की पांच मे भार के रूप में उडन लगता है। आग पाने से यह भक से जलने लगता है। इनकी लौ चमकीलो होती है और इसमे से पूर्मा अधिक निकलता है। जब ममें गधवा का फून (बारीक पूर्ण) या उडाई हुई गधक मिलावर ने धीमी आंच मे पिघलाकर २५० से लेकर ३००° की भाप मे सिद्ध करते हैं, तव इससे अनेक प्रकार की चीजें जैसे,- खिलौने, बटन, कंघी आदि बनाई जाती है, जो देसने मे सीग या हड्डी की जान पाती है। इसपर मब प्रकार के रग भी चढ़ाए जाते है। रबड भफीका, अमेरिका और एशिया के प्रदेशो मे भिन्न भिन्न विशेष पेटो के दूध से बनाया जाता है और वहां इनसे अनेक प्रकार के उपयोगा पदार्थ बनाए जाते है। अब इसे रासायनिक ढग से निम भी बनाया जाता है। २ एक वृक्ष का नाम जो वट वर्ग के प्रतर्गत है। विशेष-यह भारतवर्ष मे भासाम, लखीमपुर आदि हिमालय के पास पास के प्रदेशो तथा वरमा धादि मे होता है। इसकी पत्तियाँ चौडी और बड़ी बड़ी होती हैं तथा इसका पेट ऊंचा और दीर्घाकार होता है। इसकी लकडो मजबूत और भू रग की होती है । इसी के दूध से उपर्युक्त लचीला पदार्थ बनता है। रवड-सञ्ज्ञा सी० [हिं० रगडा] १ व्यर्थ का श्रम । फजूल हैरानी । २ गहरा श्रम । रगड । क्रि० प्र०-खाना-पडना । ३ तं करने के लिये अधिक दूरी । घुमाव । चक्कर । फेर । जैसे,- उधर से जाने मे वडो रवड पडेगी। रवड़ना' ---क्रि० स० [हिं० रपटना या सं० वत्तन, प्रा० वट्टन ] १ घुमाना । चलाना । २ किसी तरल पदार्थ मे काई वस्तु ( करछी श्रादि ) डालकर चारो ओर फेरना । फेंटना । रवड़ना-फ्रि० प्र० घूमना । फिरना । रचड़ी-गया सी० [हिं० रबटना ] शीटाकर गाढा और लच्छेदार किया हुआ दूध जिनमे चीना भी मिलाई जाती है । बतायी। रखदाराचा पु० [हिं० रबडना ] १ वह श्रम जो कही बार बार गमनागमन या पदगचालन से होता है । २ कोचड । करम । मुहा०-रवदा पडना = खूब पानी बरसना | वृष्टि होना। उ.-जेहि चलते रवदे पडा घरती हाइ विहार । सो नावज घाम जर पाडत करी विचार । —कबीर (शब्द॰) । रवर-ससा पु० [अ० दे० 'रबड' । रवरी।-तज्ञा श्री० [हिं० रवडी ] दे० 'रवटी'। रवाना-सरा पु० [श०] एक प्रकार का छोटा डफ जिसमे मंजीरे भी लगे हाते ह और जिसे प्राय कहार आदि बजाते हैं। रखानी-० [ दरा० रवाना+ई ] रवाना नामका डफ बजानवाला । उहा हरवानी मृदगा मितारी । पाहा ह गवय यहां नृत्य- गारी!--भारतेंदु ग्र०, भा॰ २, पृ० ७०२ । रवाब-वजा पुं० [अ०J सारगो का तरह का एक प्रकार का तन- वाद्य गिनम बजाने के लिये तार लगे होते है। 30-(क) नब रग तात रवाव तन विरह बजावै नित्ता और न पाई सुनि सके के साई के पित्त । -पनीर (शब्द०)। (ग) वागत वीन साव फिलरी अमृत कुढलो २५ । गुरमर मस जन तग मिलि करत मोहना मय -सूर (गन्द०)। (क) बरे बजावत कोन ढिग दिन रखाव के तार । उरी जात पार के विरहिन को दरवार ।-रसनिधि (धन्द०)।