स० देता है। ग्वाविया ४१२२ रमठ रवाविया-तज्ञा पु० [हिं० रबाब + इया (प्रत्य० ) ] वह जो रभेणक-सज्ञा पुं० [सं० ] महाभारत के अनुसार एक राक्षस रवाव बजाता हो । रखाव वजानेवाला । का नाम । रवायी-ना स्त्री० [अ० रवाय ] दे० 'रवाव' । उ०—फील विशेष-कहते हैं, यह राक्षस सांप के रूप मे रहता था। रवावी बलदु पखावज कौया ताल बजावै ।—कबीर ग्र०, रम-सञ्ज्ञा पु० [स० ] १ कामदेव । २ लाल अशोक । ३. प्रेमी। पृ० ३०७ ४ पति । ५ प्रानद । हर्ष (को॰) । रवी-सज्ञा ग्री० [अ० रवीश्र ] १ वसत ऋतु । २ वह फमल जो रम-वि० १ प्रिय । २ सुंदर । ३ पानददायक । हर्पोत्पादक । ४ वसत ऋतु मे काटी जाती है । जैसे,—ोह, चना, मटर आदि । जिससे मन प्रसन्न हो। उ.-जहाँ जायं कदम शरीफ । न रहे रवी, न रहे खरीफ । रम-मज्ञा पुं० [अ० ] एक प्रकार की विलायती शराब जो जो से (कहावत )। बनाई जाती है। ग्बील - मज्ञा स्त्री० [देश॰] एक प्रकार का पक्षी जो पद्रह सोलह रमक-सञ्ज्ञा पु० [ ] १ प्रेमपात्र । प्रिय । कात। प्रेमी । २ अगुल लवा होता है। उपपति | जार । विशेष-इसके डेने भूरे, सिर और छाती सफेद, चोच काली रम- वि० विनोदशील । आनदवाला [को०] । और पैर खाकी रंग के होते हैं। यह हिमालय के किनारे रमक' -मज्ञा स्त्री० । हिं० रमना ] १ झूले की पेंग । २ तरग। गढवाल से प्रासाम तक पाया जाता है। यह झाडियो मे झकोरा । उ०-खेलत फाग भरी अनुराग सुहाग सनी सुख का घोमला बनाता और अप्रैल से जून तक दो से पांच तक अडे रमक। -(शब्द०)। रम'-सज्ञा स्त्री० [अ० रमक ] १ थोडी मी सांस जो मरते समय रन्त-सज्ञा पु० [अ०] १ अभ्यास । मएफ । मुहावरा । रपट । निकलने को शेष रह गई हो। अतिम श्वास । २ हलका प्रभाव । ३ स्वल्प भाग । बहुत थोडा अश | ४ नशे का थोडा क्रि० प्र०- पहना ।—होना। असर जैसे,—जरा सी रमक मालूम हो रही है । २ सवध । मेल। रमक -वि० जरा सा । बहुत थोडा । यो०-रन्त जन्त = मेल जोल । घनिष्ठता। जैसे,- उनसे कुछ रमकजरा-सञ्चा पुं० [हिं० राम + काजल ] एक प्रकार का धान । रन्त जन्त पैदा करो, तो तुम्हारा काम हो जायगा। विशेप -यह भादो मे पकता है। पकने पर काले रग का होता रब्ध-वि० [स० ] [वि॰ स्त्री० रब्धा ] पारव्य । प्रारभ किया हुआ । है और मोटा धान माना जाता है। नेपाल की तराई मे यह शुरू किया हुआ। अधिकता से होता है। बगरी या बछी से इसके चावल कुछ रब्ब-सज्ञा पुं० [अ०] दे॰ 'रब' । लवे होते हैं और कूटने पर सफेद रग के निकलते हैं। रमकना-क्रि० अ० [हिं० रमना ] १ हिंडोले पर झूलना । हिंडोले रव्या-संज्ञा पुं० [फा० अरावा ] १ वह गाडी जिसपर तोप पर पेंग मारना । उ०-कबहुंक निकट देखि वर्षा ऋतु झूलत लादी जाती है। तोपखाने की गाडी। २ वह गाडी या रथ जिसे वैल खीचते हैं। सुरंग हिंडोरे। रमकत झमकत जनकमुता सग हाव भाव चित चोरे । —सूर (शब्द॰) । २ झूमते हुए चलना । इतराते हुए रख्वाब-सज्ञा पुं० [अ० रवाव ] दे० 'रवाव' । रभ-सञ्ज्ञा १० [ स० रभस. ] दे॰ 'रभस' । उ०-सहमा, सत्वर रमक्कना-क्रि० अ० [हिं० रमकना ] झूमते हुए या मस्ती स रभ, तुरा, तुरभ वेग के साज।-नद० ग्र०, पृ० १०७ । चलना । उत्साह वा जोश मे भरकर आगे बढना । उ०-लय रभस-सग पु० [सं०] १ वेग । २ हर्ष । ३ प्रोत्साहन । ४ खग्ग रमविकय प्रेत दिस । पृ० रा०, ११५३० । उत्सुकता । औत्सुक्य । ५ पूर्वापर या कारण कार्य का रमचकरा-मुज्ञा पुं० [हिं० राम+चक्र ] वेसन की मोटी रोटी। विचार । ६ मभ्रम । ७.पछतावा। रज । ८ वाल्मीकि रमचा-सञ्ज्ञा पु० [हिं० चमचा ] छोटी करछी । चमचा । रामायण के अनुसार अस्त्रो का एक सहार, अर्थात् शत्रु के रमजान-सज्ञा पुं० [अ० रमज़ान ] एक अरवी महीने का नाम । चलाए हुए अत्र निष्फल फरने की विवि जो विश्वामित्र ने इस महीने मे मुसलमान रोजा रहते हैं । रामचद्र को सिखलाई थी। ६ रामायण के अनुसार एक रमजानी-वि० [अ० रमज़ान+हि० ई (प्रत्य॰)] रमजान मास राक्षस का नाम । १० विष। जहर (फो०) । २१. कोप । का। रमजान के महीने से सवद्ध (को०] । क्रोध (पो०)। रमझोला-सचा पुं० [हिं० ] दे० 'रमझोला' । रभस'- वि० १. वेगवाला । २ प्रवल । तीव्र । मजबूत । दृढ़। रमझोला–सशा पुं० [हिं० ] पैर मे पहनने के घुघुरू । नूपुर । ३ प्रसन्न । प्रानंदपूर्ण [को०] । रमठ-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ होग । २ एक प्राचीन देश का नाम । रभू-मा पुं० [स. ] दूत । चर (फो०] । ३. इस देश का निवासी। 1 चलना।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३६३
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