पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३६४

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म० रमठधनि ४१२३ रमनी रमठध्वनि-सज्ञा सी० [ ] हीग । हिंगु [को॰] । रमनता-मशा सी० [म० रमण + ता (प्रत्य॰)] 7 'रमणीयता' । रमण'-राशा दु० [सं०] शानदोत्पादक क्रिया। विलाम । क्रीडा । उ०-दुति लावन्य रूप मघुराई। याति रमनता शु दरताई।- केलि । २. मैथुन । ३ गमन । घूमना। विचरना। ४. पति । नद० ग्र०, पृ० १२४ । ५ कामदेव । ६ जघन । ७. गधा । ८ अडकोश । ६ सूर्य का रमनसोरा-मझा पुं० [शि०] एक प्रकार की मछली जिरे कंबलगोरा अक्षरण नामक सारथी। १० एक वन का नाम । ११ एक भी कहते है। वणिक छद का नाम । इसके प्रत्येक चरण मे तीन अक्षर होते रमना'-कि० अ. [स० रमण) १ भोग विलास या मुखप्राप्ति के है, जिनमे दो लघु और एक गुरु होता है। जैसे,-दुख वयो। लिये कही रहना या ठहरना । मन लगने के कारण कही रहना। टरि है । हरि जू । हरि हैं । १२ परवल की जड (को०) । उ०—(क) रमि रैन सबै अनते वितई सो कियो इत भावन रमण'- वि० [स्त्री० रमणी] १ मनोहर । सुदर । २ जिसके मिलने से भोर हो को।-केशव (गन्द०)। २ भोग विलाम या रति- मानद उत्पन्न हो । प्रिय । ३, रमनेवाला । क्रीडा करना । उ०—(क) अधिवरणा अरु 'प्रग घटि अत्यज रमणक-सञ्ज्ञा पुं० [स०] जवूद्वीप के शर्तगत एक वर्ष या खड का जनि की नारि । तजि विधवा अरु पूजिता रमियहु रसिक नाम । इसे रम्यक भी कहते है। विशेप दे० 'रम्यक' । २. वीत- विचारि ।-केशव (शब्द॰) । (ख) राति कह रमि पायो घर होत्र के पुत्र का नाम । उर मान नही अपराध किए को ।-पद्माकर (शब्द०)। ३ मानद करना । चैन करना । मजा उडाना। उ०-चहु माग रमणगमना-सशा स्त्री॰ [स०] साहित्य मे एक प्रकार की नायिका वाग तडाग । अब देखिए वड भाग। फल फूल सो नयुक्त । जो यह समझकर दुखी होती है कि सकेत स्थान पर नायक अलि यो रम जनु मुक्त।-केशव (शब्द०)। ४ चारो पार पाया होगा, और मैं वहां उपस्थित न थी। जैसे, छरी भरपूर होकर रहना । व्याप्त होना । भानना। उ०—(क) सपल्लव लालकर लखि तमाल की हाल । कुभिलानी उर साल प्राध्यात्मिक होइ प्रात्मा रमत या सा यह बलराम पुनि ।- धरि फूल माल ज्यो वाल ।-विहारी (शब्द॰) । गोपाल (शब्द॰) । (ख) पाइ पूरण रूप को राम भूम केशव- रमणा- मशा स्त्री॰ [स०] १ एक शक्ति का नाम जो रामतीर्थ मे है । दास ।-केशव (शब्द॰) । (ग) मैं मिरजा में मारहूं में जारी में २ पत्नी (को०) । ३ सुदरी स्त्री (को॰) । खाउँ । जलथल में ही रमि रह्यो मोर निरजन नाउं ।-कबोर रमणी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ नारी । स्त्री। २ सुदर स्त्री । ३ वाला (शब्द०)। ५ अनुरक्त होना । लग जाना । उ०-महादेव या मुगधवाला नामक गधद्रव्य । ४ पत्नी (को॰) । अवगुन भवन विष्णु सकल गुणधाम । जेहि कर मन रम जाहि रमणीक--वि० [स० रमणीय सुदर । मनोहर । उ०--अति रमणीक सन तेहि तेही सन काम । -तुलसी (शब्द०)। ६ किमी क पास पास फिरना । घूमना । उ०—(क) काई पर भंवर जल कदव छांह रुचि परम सुहाई। राजत मोहन मध्य अवलि वाल्फ की पाईं। -सूर (शब्द०)। माहाँ । फिरत रमहि कोइ देइ न वाहा ।-जायसी (शब्द)। (ख) लसत केतकि के कुल फून मो। रमत भौर भर रसमूल रमणीय- वि० [स०] सु दर । रुचिर । मनोहर । रम्य । सो।-गुमान (शब्द०) । ७ चलता हाना । चल दना । गायव रमणीयता-संज्ञा स्त्री० [स०] १ सुदरता। २, साहित्यदर्पण के हो जाना । उ०—झाल उठो झालो जलो सारा फूटम फूट । अनुसार वह माधुर्य जो सब अवस्थाश्री में बना रहे या क्षण जोगी था सो रम गया, पासन रही भभूत क्षण मे नवीन रूप धारण किया करे । सयो० क्रि०-देना ।-जाना । रमण्या-सच्चा स्त्री॰ [स०] नारी । स्त्री । औरत [को०] । ८ आनदपूर्वक इधर उधर फिरना। बिहार करना। मनमाना रमता-वि० [हिं० रमना (= घूमना फिरना) ] एक जगह जमकर न घूमना । विचरना । उ०-(क)ज पद पा रमत वृदावन ग्राह रहनेवाला । घूमता फिरता । जैसे,—रमता जोगी बहता पानी सिर वरि अगनित रिपु मार। यूर (शब्द०)। (व) गापन इनका कही ठिकाना नाहिं। संग निसि सरद की रमत रसिक रम रामि। लहावर प्रति गतिन की सवन लसे सव पाम |-विहारा (सन्द०)। रमति-सज्ञा पुं० [स०] १. नायक । २ स्वर्ग । ३. कौवा । ४ काल । ५. कामदेव । रमना-सज्ञा पुं॰ [स० श्राराम या रमण] १. वह हरा भरा स्वान जहां पशु चरने के लिये छोट दिए जाते है । चरागाह । 50- रमद-सग पुं० [अ०] अांख की एक बीमारी । अखिो का लाल हो इत जमना रमना उतं बीच जहानाबाद । ताम वसन का करी जाना और उससे पानी गिरने का रोग (फो०] । करो न वाद विवाद । -रसनिधि (शब्द०)। २. यह नुरोक्षत रमदी-सशा पुं० [हिं० राम+६० श्राद्य] एक प्रकार का जहहन स्थान या घेरा, जहां पशु शिकार के लिये या पालन के लिय धान जो अगहन के महीने मे पकता है। इसका चावल सालो छांट दिए जाते हैं मोर जहाँ वे स्वच्छतापूर्वक रहते है । ३ तक रह सकता है। घेरा । हाता । ४ वाग । ५ काई गु दर और रमजाफम्यान । रमन--सशा पुं० वि० [स० रमण] दे० 'रमण' '-सक्षा सौ. [० रमणी] दे॰ 'रमा' । उ०-नव रमनों रमनक-सशा पुं० [स० रमणक) दे० 'रमणक' । म राज|-०रा०, ६६३२५५२ । -कवीर (शब्द०)। 1